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राजस्थान चुनाव: मुख्यमंत्री पद को छोड़ लंबी सियासी पारी की भूमिका लिख दी सचिन पायलट ने!

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: December 14, 2018 17:50 IST

राजस्थान के बड़े नेताओं की दिलचस्पी हमेशा सीएम की कुर्सी में ही रही है। केन्द्र के बड़े-बड़े पद उन्हें रास नहीं आते हैं और यही वजह है कि अशोक गहलोत केन्द्र सरकार में संभावित बड़े पद के बजाय राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने पर अड़े रहे।

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कहते हैं, राजनीति में जो कुछ होता है, वह आज होता है, न बीता हुए कल और न ही आने वाले कल का कोई मतलब होता है। राजस्थान में मुख्यमंत्री पद से एक कदम पीछे हटते हुए सचिन पायलट ने जो उपमुख्यमंत्री पद स्वीकार कर लिया है, उसने उनकी लंबी सियासी पारी की भूमिका लिख दी है।

दरअसल, राजस्थान के बड़े नेताओं की दिलचस्पी हमेशा सीएम की कुर्सी में ही रही है। केन्द्र के बड़े-बड़े पद उन्हें रास नहीं आते हैं और यही वजह है कि अशोक गहलोत केन्द्र सरकार में संभावित बड़े पद के बजाय राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने पर अड़े रहे।

राजस्थान में सचिन पायलट के युवा समर्थक अच्छेखासे हैं, परन्तु वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत के साथ इसलिए थे कि एक तो यदि पायलट सीएम बन जाते तो प्रदेश के शेष वरिष्ठ नेताओं के लिए सीएम बनने के रास्ते हमेशा के लिए बंद हो जाते और दूसरा, सचिन के मंत्रिमंडल में शामिल होना भी उनके लिए सहज नही होता। 

इन हालातों में सचिन पायलट ने उपमुख्यमंत्री का पद ले कर सियासी समझदारी का प्रदर्शन ही किया है। अशोक गहलोत उनसे वरिष्ठ हैं इसलिए उनके साथ काम करने में वरिष्ठता का कोई प्रश्न नहीं है। पायलट ने उपमुख्यमंत्री का पद लेकर भविष्य के लिए सीएम की दावेदारी और भी मजबूत कर ली है, दूसरे शब्दों में कहें तो सीएम पद के तमाम दूसरे दावेदारों के लिए भविष्य के रास्ते बंद कर दिए हैं।

सचिन को एक बड़ा फायदा यह भी है कि उन्हें इस दौरान प्रादेशिक सरकार चलाने का खासा अनुभव भी हो जाएगा। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सचिन बहुत जल्दी मुख्यमंत्री भी बन सकते हैं, क्योंकि हो सकता है लोकसभा चुनाव के बाद यदि केन्द्र में कांग्रेस की सरकार बनती है तो अशोक गहलोत को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में बड़ा पद दे दिया जाए!

अशोक गहलोत का सीएम बनना कोई नई उपलब्धि नहीं है, क्योंकि वे पहले भी मुख्यमंत्री रह चुके हैं, लेकिन उपमुख्यमंत्री बन कर पायलट ने अपने सियासी खाते में एक और बड़ी उपलब्धि जरूर जोड़ ली है।

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