राजस्थान विधानसभा चुनाव विश्लेषण: कांग्रेस-बीजेपी में कांटे की टक्कर, इन चुनौतियों से जुझ रही हैं दोनों पार्टियां
By अनुभा जैन | Updated: November 11, 2018 16:12 IST2018-11-11T16:12:01+5:302018-11-11T16:12:01+5:30
ये चुनाव राज्य की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, कांग्रेस महासचिव अषोक गहलोत, कांग्रेस प्रदेष अध्यक्ष सचिन पायलट के लिये कई मायनों में महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं।

राजस्थान विधानसभा चुनाव विश्लेषण: कांग्रेस-बीजेपी में कांटे की टक्कर, इन चुनौतियों से जुझ रही हैं दोनों पार्टियां
सत्ता का सेमीफाइनल माने जाने वाले राजस्थान विधानसभा के आगामी 2018 चुनाव भाजपा व कांग्रेस के लिये कांटे की टक्कर बनते जा रहे हैं। ये चुनाव राज्य की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, कांग्रेस महासचिव अषोक गहलोत, कांग्रेस प्रदेष अध्यक्ष सचिन पायलट के लिये कई मायनों में महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। फिलहाल राजस्थान में जनता भाजपा विरोधी ही है कहा नहीं जा सकता क्योंकि कांग्रेस के सम्मुख भी मीणा समुदाय की बेरूखी, एस.सी.एस.टी एक्ट व आरक्षण के मुददों को लेकर कड़ी चुनौतीयां हैं।
वहीं नोटबंदी, बुद्वीजीवी वर्ग की भाजपा से दूरी, राफेल स्कैम जैसे कई घोटाले, पेटोल डीजल के दामों में बेहताषा वृद्वि, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और बढती महंगाई आदि मुददों पर भाजपा से जनता बेहद नाखुष है।
कांग्रेस और भाजपा में भाई-भतीजवाद की होड़
इधर राजस्थान में जहां भाजपा व कांग्रेस पार्टियां जो वंशवाद का विरोध करती हैं किंतु पार्टी नेता इससे अछूते नहीं दिखायी दे रहे हैं। कई नेता, मौजूदा विधायक व मंत्री अपने बेटे, पोतों व रिश्तेदारों को टिकट दिलाने की जुगाड में है। रिश्तेदारों को टिकट दिये जाने के मापदंड पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदनलाल सेैनी स्पष्ट कर चुके हैं कि ऐसा कोई नियम नहीं है कि जिसमें परिवार के अन्य सदस्य को टिकट नहीं दिया जाये। राजस्व मंत्री अमराराम के पुत्र अरुण बाड़मेर में सक्रिय नजर आ रहे हैं। जहां केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल अपने बेटे के लिए टिकट मांग रहे हैं वहीं अशोक गहलोत भी पीछे नहीं हैं और अपने पुत्र को टिकट दिलाने के लिये प्रयासरत हैं। मंत्री अमराराम चैधरी अपने पुत्र अरूण चैधरी के लिये तो श्रम मंत्री जसवंत यादव तो पहले ही अपनी सीट से अपने बेटे मोहित यादव को चुनाव जितवाने की अपील कर चुके हैं।
नरपत सिंह राजवी बेटे अभिमन्यू सिंह राजवी के लिए, गोपाल जोशी बीकानेर विधायक अपने पोते विजय मोहन जोशी, गुरजंट सिंहा भी पोते गुरूवीर सिंह के लिए, सुंदरलाल काका बेटे कैलाश मेघवाल के लिए, गुडामलानी से लादूराम विशनोई अपने पुत्र व पौत्र के लिये, देवी सिंह भाटी अपनी पुत्रवधु पूनम कंवर, किशनाराम नाई अपने पोते नितिन नाई के लिए टिकट मांग रहे हैं। हांलाकि यह बात देखने में आ रही है कि ज्यादातर नेता और विधायक अपने बेटे व पोतों को टिकट दौड में आगे कर रहे हैं जिन्हें लगता है कि अधिक उम्र के कारण उनका टिकट कट सकता है।
दोनों ही पार्टियां अल्पसंख्यक वर्ग पर लगा सकती है दांव
दोनों ही प्रमुख दल यानि भाजपा व कांग्रेस इस बार भी अल्पसंख्यक वर्ग के ही उम्मीदवार पर अपना दांव लगा सकते हैं। बहरहाल अधिकांशतय कांग्रेस मुस्लिम तो भाजपा जैन समाज के व्यक्ति को टिकट देती रही है। इस बार भी इसी वर्ग को टिकट मिलने की संभावनाएं जताई जा रही हैं। 1980 से टोंक में कांग्रेस व भाजपा के बीच ही हार-जीत का फैसला होता रहा है। कांग्रेस 1972 से ही इस सीट पर मुस्लिम व्यक्ति को उम्मीदवार बनाती रही है। वहीं भाजपा 1980 से जैन समाज के व्यक्ति को टिकट देती आई है। 1980 से 2008 तक भाजपा ने महावीर प्रसाद जैन को अपना उम्मीदवार बनाया। वहीं कांग्रेस 1993 के चुनाव को छोड़कर 1985 से जकिया को ही टिकट दे रही है। 1993 में आरिफ जुबैरी को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया था, लेकिन वो विजयी नहीं हो सके।
टिकट के प्रबल दावेदार
बहरहाल इस बार भी जकिया और महावीर प्रसाद जैन टिकट के प्रबल दावेदारों में शुमार किए जा रहे हैं। महावीर प्रसाद जैन 1980 से 2008 तक चार बार विजयी रहे तथा जकिया को तीन बार सफलता मिली। टोंक से विधायक बनीं जकिया को चिकित्सा मंत्री एवं महिला एवं बाल विकास मंत्री बनाया गया। वहीं महावीर प्रसाद जैन सरकारी मुख्य सचेतक बने।
कांग्रेस व भाजपा का प्रमुख एजेंडा
भाजपा का मुख्य एजंेडा इस बार पार्टी को ग्रासरूट स्तर पर मजबूती देना है। जावडेकर के मुताबिक ग्रासरूट स्तर पर मजबूत होने पर भाजपा को चुनौती देना बेहद मुश्किल होगा। यह भी देखने में आ रहा है कि कांग्रेस व कुछ हद तक भाजपा भी एक व्यक्ति को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेष करने से बच रहे हैं। केन्द्रीय स्तर पर कांग्रेस ने मध्यप्रदेष की तर्ज पर राजस्थान में भी वरिष्ठ नेताओं को चुनाव मैदान में नहीं उतारने का निर्णय लिया है।
शायद यही कारण है कि अषोक गहलोत, सीपी जोषी और यहां तक कि सचिन पायलट चुनाव ना लड सिर्फ चुनाव प्रचार करते नजर आ रहे हैं। इसी तरह वसुंधरा राजे सुराज गौरव यात्रा व जनसंवाद कार्यकमों के माध्यम से जन जन तक अपनी मौजूदगी और पार्टी द्वारा किये कार्यों को पहुंचाने में जुटी हुयी हैं।
वहीं कांग्रेस बूथ जिताओ भ्रष्टाचार मिटाओ के माध्यम से राजस्थान के 51 हजार बूथ के लक्ष्य के द्वारा आम जन तक पहुंच कर भाजपा का असली चेहरा लोगों तक पहुंचाने में लगा है।
इधर हनुमान बेनीवाल की नवगठित राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी व घनश्याम तिवाडी की भारत वाहिनी पार्टी के द्वारा तीसरा मोर्चा भी प्रबल होता जा रहा है। इन सबके बीच आप और बसपा स्वतंत्र रूप से क्या कुछ कर पायेंगे यह कयास लगाना अभी मुश्किल है। अटकलों का यह दौर अभी तो अंत समय तक कई रूपों में चलेगा।