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राजस्थान चुनावः जानिए, इस बार कौन-कौन दोहरा पाएगा 2013 की जीत?

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: December 10, 2018 07:26 IST

पिछले विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करवाने वाले कांग्रेस के नेताओं में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की जीत पक्की मानी जा रही है. पिछली बार भी वे सरदारपुरा से ही लड़े थे और भाजपा की लहर में भी उन्होंने भाजपा के शंभूसिंह को 18 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था.

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राजस्थान विस चुनाव में इस बार उन प्रमुख उम्मीदवारों पर भी खास नजर है, जो पिछले विस चुनाव- 2013 में जीते थे और इस बार फिर चुनावी मैदान में हैं. हकीकत के नतीजे तो 11 दिसंबर को आएंगे, लेकिन अभी इनके नाम इसलिए चर्चा में हैं कि इस बार की राजनीतिक तस्वीर बदली हुई है. जहां कांग्रेस प्रत्याशियों के लिए यह चुनाव आसान माना जा रहा है, वहीं भाजपा उम्मीदवारों के लिए थोड़ा मुश्किल.

पिछले विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करवाने वाले कांग्रेस के नेताओं में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की जीत पक्की मानी जा रही है. पिछली बार भी वे सरदारपुरा से ही लड़े थे और भाजपा की लहर में भी उन्होंने भाजपा के शंभूसिंह को 18 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था.

राजस्थान के प्रमुख ब्राह्मण नेता और सरदार शहर से कांग्रेस के उम्मीदवार पं भंवरलाल शर्मा की जीत भी आसान मानी जा रही है, वे पिछली बार सरदार शहर से 7 हजार से ज्यादा वोटों से जीते थे.

इसी तरह, कांग्रेस के पूर्व कैबिनेट मंत्री महेन्द्रजीत सिंह मालवीया की भी जीत पक्की मानी जा रही है, वे बागीदौरा से कांग्रेस उम्मीदवार हैं और पिछली बार उन्होंने भाजपा के खेमराज को 14 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था.

कांग्रेस के पूर्व मंत्री, लेकिन पिछली बार बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़े राजकुमार शर्मा को भी विजयी माना जा रहा है. उन्होंने 2013 के चुनाव में बतौर निर्दलीय उम्मीदवार 76 हजार से ज्यादा वोट हांसिल कर 33 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव जीत लिया था. शर्मा इस बार नवलगढ़ से बतौर कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं.

हालांकि झालरपाटन में सीएम वसुंधरा राजे के सामने कांग्रेस ने मानवेन्द्र सिंह को उम्मीदवार बना कर मुकाबला रोचक जरूर बना दिया है, परन्तु माना जा रहा है कि यहां से सीएम राजे को हराना आसान नहीं है. पिछली बार राजे यहां से 60 हजार से ज्यादा वोटों से जीती थी.गंगानगर से पिछली बार कामिनी जिंदल जीती थी. उन्होंने 37 हजार से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज करवाई थी और माना जा रहा है कि इस बार भी उनकी जीत की राह आसान है.

बीकानेर वेस्ट का चुनाव बड़ा दिलचस्प है जहां दो रिश्तेदार ही आमने-सामने हैं. पिछली बार यहां कांग्रेस के बीडी कल्ला को 6 हजार से ज्यादा वोटों से हरा कर भाजपा के गोपाल जोशी एमएलए बने थे, परन्तु इस बार जोशी के लिए जीतना आसान नहीं है.

कांग्रेस के रामेश्वर डूडी पिछली बार 30 हजार से ज्यादा वोटों से जीते थे और इस बार भी उनकी जीत आसान मानी जा रही है.भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी पिछली बार ही करीब 4 हजार वोटों से जीते थे, इस बार उनकी जीत पर प्रश्नचिन्ह हैं.

वैसे तो भावापा के अध्यक्ष घनश्याम तिवाड़ी पिछली बार भाजपा से सांगानेर से चुनाव लड़े थे और 62 हजार से ज्यादा वोटों से जीत कर एमएलए बने थे, लेकिन अब वे अपनी पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं और उन्हें कांग्रेस और भाजपा, दोनों ओर से चुनौती मिल रही है.

कुछ समय पहले ही भाजपा में पुनः शामिल हुए डॉ. किरोड़ीलाल मीणा खुद तो विस चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन उनकी पत्नी गोलमा देवी चुनाव लड़ रही हैं. पिछली बार गोलमा देवी राजगढ़-लक्ष्मणगढ़ से 8 हजार से ज्यादा वोटों से जीती थीं, लेकिन इस बार उनकी जीत पर सवालिया निशान है.

शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी पिछली बार अजमेर उत्तर से चुनाव लड़े और 20 हजार से ज्यादा वोटों से जीते थे, परन्तु इस बार उनकी जीत की राह आसान नहीं है. नए जाट नेता के तौर पर उभरे हनुमान बेनीवाल पिछली बार खींवसर से चुनाव लड़े और 23 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव जीते थे. इस बार भी उनका पलड़ा भारी माना जा रहा है.

उदयपुर से गृहमंत्री गुलाबचन्द कटारिया की सीट काफी चर्चा में है, जहां एक ओर वे अपनों की बगावत से लड़ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री गिरिजा व्यास उन्हें चुनौती दे रहीं हैं. पिछली बार कटारिया 24 हजार से ज्यादा वोटों से जीते थे, किन्तु इस बार उनकी जीत मुश्किल मानी जा रही हैं.

कोटा उत्तर में प्रहलाल गुंजन पिछली बार 14 हजार से ज्यादा वोटों से जीत गए थे, परन्तु इस बार वे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री शांति धारीवाल को मात दे पाएंगे, ऐसा लगता नहीं है.

बहरहाल, मतदान के बाद जनता की सोच ईवीएम में बंद है, जो 11 दिसंबर को सबके सामने आएगी, लेकिन तब तक हार-जीत की चर्चाओं का दौर चलता रहेगा.

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