आठ दौर की वार्ता में भी नतीजा न निकलना प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत असफलता: हन्नान मोल्लाह

By भाषा | Updated: January 10, 2021 16:40 IST2021-01-10T16:40:06+5:302021-01-10T16:40:06+5:30

Prime Minister's personal failure not to result in eight rounds of talks: Hannan Mollah | आठ दौर की वार्ता में भी नतीजा न निकलना प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत असफलता: हन्नान मोल्लाह

आठ दौर की वार्ता में भी नतीजा न निकलना प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत असफलता: हन्नान मोल्लाह

नयी दिल्ली, 10 जनवरी तीन कृषि कानूनों को लेकर आंदोलनरत किसान संगठनों और सरकार के प्रतिनिधियों के बीच अब तक हुई आठ दौर की वार्ता में भी गतिरोध खत्म नहीं होने को अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्लाह ने बृहस्पतिवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘‘व्यक्तिगत असफलता’’ करार दिया और दावा किया कि भूमि अधिग्रहण विधेयक के बाद यह आंदोलन उनकी दूसरी हार का कारण बनेगा।

भाषा को दिए एक साक्षात्कार में पश्चिम बंगाल के उलूबेरिया संसदीय क्षेत्र का लोकसभा में आठ बार प्रतिनिधित्व कर चुके मोल्लाह ने आरोप लगाया कि पिछली वार्ता ‘‘अच्छे माहौल’’ में नहीं हुई और सरकार अपनी बात किसानों पर थोपने के लक्ष्य पर आगे बढ़ती रही।

उन्होंने कहा कि कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने तक किसानों का आंदोलन जारी रहेगा और इसी क्रम में देशभर के जिलाधिकारी कार्यालयों और फिर ‘‘गवर्नर हाउस’’ का घेराव करने के बाद 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस की आधिकारिक परेड के बाद ‘‘किसान परेड’’ निकाली जाएगी।

मोल्लाह ने कहा, ‘‘अब तक समाधान नहीं निकल पाना सही मायने में सरकार की असफलता तो है ही, प्रधानमंत्री मोदी की निजी असफलता भी है। वह इतने बड़े नेता हैं। उनके सामने किसी को कुछ बोलने की हिम्मत नहीं होती। वह जो कहेंगे वही होगा। तो क्या वह किसानों की समस्या का समाधान नहीं कर सकते...।’’

उन्होंने कहा कि मोदी जब पहली बार सत्ता में आए थे तो वह 2014 में भूमि अध्यादेश लेकर आए थे और उसके खिलाफ भी किसानों ने जबरदस्त लड़ाई लड़ी थी। तमाम कोशिशों के बावजूद सरकार वह विधेयक संसद में पारित कराने में नाकाम रही थी।

मोल्लाह ने कहा, ‘‘आज भी वह विधेयक पड़ा हुआ है। वह मोदी जी की जिंदगी की पहली हार थी। किसानों ने उन्हें मजबूर किया था। भूमि अधिग्रहण विधेयक के खिलाफ जो बड़ा आंदोलन हुआ था, उससे उन्हें पहली बार चुनौती मिली थी। हमारे पास आंदोलन के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। भूमि अधिग्रहण आंदोलन में उनकी पहली हार हुई थी और अब इस आंदोलन में उनकी दूसरी हार होगी। हम लड़ेंगे और अपनी लड़ाई जारी रखेंगे।’’

ज्ञात हो कि भूमि अधिग्रहण विधेयक को संसद से पारित कराने के लिए केंद्र सरकार लगातार प्रयत्नशील रही है लेकिन अभी तक यह मामला ठंडे बस्ते में है। किसानों और विपक्षी दलों के भारी विरोध के चलते यह विधेयक कानून का स्वरूप नहीं ले सका।

किसान नेता मोल्लाह ने आरोप लगाया कि कृषि कानूनों को लेकर सरकार का रवैया सहयोगात्मक नहीं है और वह अपनी बात किसानों पर थोपने के लक्ष्य पर काम कर रही है।

आठवें दौर की वार्ता विफल होने के बाद, उन्होंने कहा कि उन्हें सरकार से कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है।

उन्होंने कहा, ‘‘पिछली बैठक अच्छे माहौल में नहीं हुई। माहौल गरम था और ऊंची आवाज में बात की गई। अब तक की वार्ता में ऐसा पहली बार हुआ। सरकार पीछे हटने को तैयार नहीं है। सरकार का रवैया कहीं से भी सहयोगात्मक नहीं है। वह अपनी बातें किसानों पर थोपना चाह रही है और वह इसी लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रही है।’’

किसान नेता ने कहा, ‘‘अब सरकार हमें उच्चतम न्यायालय जाने को कह रही है। हमने उन्हें स्पष्ट कह दिया कि हम अदालत नहीं जाएंगे। क्योंकि किसानों का सीधा संबंध सरकार से है। सरकार ही किसानों की समस्या दूर कर सकती है। यह नीतिगत मामला है। इसमें अदालत का कोई स्थान नहीं है। सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि वह किसानों के साथ है या उद्योगपतियों के साथ। हम तो चर्चा चाहते हैं लेकिन सरकार उस चर्चा को नतीजे की ओर नहीं ले जाना चाहती। पिछले सात महीने से हम जो मांग कर रहे हैं, सरकार उसपर चर्चा तक करने को तैयार नहीं है। एक लोकतांत्रिक सरकार को जनता की आवाज सुननी चाहिए लेकिन यह सरकार नहीं सुन रही है। वह अपनी डफली बजा रही है।’’

यह पूछे जाने पर कि किसान टस से मस होने को तैयार नहीं हैं और सरकार अपने रुख पर कायम है, ऐसे में रास्ता कैसे निकलेगा, मोल्लाह ने कहा कि जब तक सरकार किसानों के हित में कुछ करने का मन नहीं बनाएगी तब तक समाधान का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘हम किसानों के लिए यह जिंदगी और मौत का सवाल है। इस कानून को हमने स्वीकार कर लिया तो देश का किसान खत्म हो जाएगा। इसलिए हमने तय किया है कि 20 जनवरी तक सभी जिलों में जिलाधिकारी कार्यालय का घेराव किया जाएगा। उसके बाद 23 से 25 जनवरी तक पूरे देश में ‘गवर्नर हाउस’ का घेराव किया जाएगा और उसके बाद 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस की परेड समाप्त होने के बाद ‘किसान परेड’ निकाली जाएगी। संविधान ने हमें अपनी आवाज उठाने का हक दिया है। इसलिए लोकतांत्रिक तरीके से हमारा आंदोलन जारी रहेगा।’’

मोल्लाह ने उन आरोपों को भी खारिज किया कि किसान समाधान चाहते हैं लेकिन ‘वामपंथी तत्व’ अड़चनें पैदा कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘यह सरासर झूठ है। इस आंदोलन में 500 से अधिक संगठन हैं। इनमें सात-आठ संगठन कुछ ऐसे हैं जो वामपंथी विचारधारा से प्रेरित हैं। हम सात महीने से यह लड़ाई लड़ रहे हैं और किसी भी राजनीतिक विचारधारा को हमने इसमें शामिल होने नहीं दिया। सरकार रोज नया झूठ बोल रही है। कभी हिंदू, मुसलमान तो कभी बंगाली बिहारी। इससे भी बात नहीं बनी तो चीन, पाकिस्तान और खालिस्तान किया गया। फिर कहा गया कि यह पंजाब का आंदोलन है। जब भारत बंद किया गया तो पटना और कोलकाता में पंजाब के किसान थोड़े ही गए थे। यह अखिल भारतीय आंदोलन है और पंजाब भी इसका हिस्सा है। हां, पंजाब सामने जरूर है।’’

उन्होंने कहा कि देश के विभिन्न प्रांतों के किसान और आम आदमी हजारों की संख्या में रोजाना प्रदर्शनों में शामिल हो रहे हैं और अपना समर्थन दे रहे हैं।

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