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प्रधानमंत्री ने संविधान को जानने के लिए ‘केवाईसी’ मुहिम की आवश्यकता पर दिया जोर

By भाषा | Updated: November 27, 2020 00:51 IST

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केवडिया (गुजरात)/नयी दिल्ली, 26 नवंबर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बृहस्पतिवार को संविधान दिवस के अवसर पर ‘केवाईसी’ (अपने संविधान को जानो) को संवैधानिक सुरक्षा की गारंटी बताया।

मोदी ने केवडिया में वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पीठासीन अधिकारियों के 80वें अखिल भारतीय सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि जिस तरह ‘‘केवाईसी- नो योर कस्‍टमर’’ डिजिटल सुरक्षा की कुंजी है, उसी तरह केवाईसी-नो योर कांस्टिट्यूशन’’, संवैधानिक सुरक्षा की बड़ी गारंटी हो सकता है।

मोदी ने कहा, ‘‘हमारे कानूनों की भाषा बहुत सरल और आम जन की समझ में आने वाली होनी चाहिए ताकि वे हर कानून को ठीक से समझ सकें।’’

उन्‍होंने कहा कि पुराने पड़ चुके कानूनों को निरस्‍त करने की प्रक्रिया भी सरल होनी चाहिए।

इस बीच, उच्चतम न्यायालय और उच्चतम न्यायालय बार संघ ने संविधान को स्वीकार करने के 71 वर्ष पूरे होने के अवसर पर डिजिटल माध्यम से दो पृथक समारोह आयोजित किए।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बृहस्पतिवार को कहा कि ‘‘सब लोगों तक न्याय की पहुंच’’ में आना वाला खर्च ‘सबसे बड़ी’ बाधा है।

कोविंद और केंद्रीय विधि मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने नागरिकों के लिए न्याय सुनिश्चित करने के कर्तव्य के निर्वहन में कोरोना वायरस वैश्विक महामारी को बाधा नहीं बनने देने के लिए न्यायपालिका और बार की प्रशंसा की।

राष्ट्रपति कोविंद ने न्यायालय द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि उन्हें इस बात से खुशी है कि वीडियो कॉन्फ्रेंस और ई-फाइलिंग जैसे तकनीकी उपायों का उपयोग कर शीर्ष अदालत ने महामारी के बीच भी अपना कामकाज जारी रखा और वह न्याय मुहैया कराती रही।

कोविंद ने संविधान स्वीकार किए जाने की 71वीं वर्षगांठ पर कहा, ‘‘मुझे प्रसन्नता है कि उच्चतर न्यायपालिका ने अधिक से अधिक क्षेत्रीय भाषाओं में अपने आदेश उपलब्ध कराने शुरू कर दिए हैं। निश्चित रूप से इससे अधिक से अधिक नागरिकों को आदेश की जानकारी हो सकेगी और इस प्रकार संस्था बड़े पैमाने पर नागरिकों के करीब आ सकेगी।’’

केंद्रीय कानून, आईटी और संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने महामारी के दौरान बाधक परिस्थितियों के बावजूद अपना कामकाज जारी रखने और समय के अनुसार कदम उठाने के लिए न्यायपालिका को बधाई दी।

उन्होंने उच्चतम न्यायालय की उसके न्यायिक कार्यों के लिए आलोचना पर नाराजगी जतायी और लोगों से कहा कि वे निर्णय या आदेशों की आलोचना में आपत्तिजनक शब्दों का उपयोग नहीं करें।

प्रसाद ने कहा, ‘‘ हाल में परेशान करने वाली प्रवृत्ति सामने आयी है। कुछ लोग विचार करते हैं कि किसी खास मामले पर फैसला कैसा होना चाहिए। उसके बाद अखबारों में विमर्श बनाए जाते हैं और सोशल मीडिया में अभियान चलता है कि किस तरह का निर्णय आना चाहिए था...।’’

प्रसाद ने कहा कि महामारी के दौरान डिजिटल संवाद सामान्य चीज हो गयी है। उन्होंने अदालतों द्वारा डिजिटल रूप से सुने गए मामलों का जिक्र किया और कहा कि उच्चतम न्यायालय ने करीब 30,000 मामलों की डिजिटल तरीके से सुनवाई की या उसका निपटारा किया।

उन्होंने कहा कि भारत के उच्च न्यायालयों ने 13.74 लाख मामलों की डिजिटल तरीके से सुनवाई की वहीं जिला अदालतों ने 35.93 लाख मामलों की इस तरीके से सुनवाई की।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे ने कहा कि न्यायपालिका ने महामारी के दौरान कड़ी मेहनत की है और सभी नागरिकों तक न्याय की पहुंच सुनिश्चित करने की उसकी प्रतिबद्धता कायम है।

उन्होंने कहा कि भारत के उच्चतम न्यायालय ने अन्य देशों की अदालतों की तुलना में कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है।

न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा कि अभिव्यक्ति का अधिकार निरंकुश नहीं है और न्यायपालिका को सरकार के हितों और लोगों को संविधान द्वारा दी गई स्वतंत्रता को संतुलित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

उन्होंने कहा कि बोलने की आजादी पर प्रतिबंध व्यक्तियों और संस्थानों की प्रतिष्ठा के हित में हैं।

अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सुझाव दिया कि सब लोगों तक न्याय की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए देश के चार कोनों में 15 न्यायाधीशों के साथ चार मध्यवर्ती अपीली अदालतें होनी चाहिए।

वेणुगोपाल ने निचली अदालतों में रिक्तियों को भरने और लंबित मामलों की समस्याओं के समाधान पर जोर देते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि न्यायपालिका ‘सबके आंसू पोंछ’ सके, इसके लिए सबको मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है।

वेणुगोपाल ने कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के अनुसार, देश की विभिन्न अदालतों में करीब 3.61 करोड़ मुकदमे लंबित हैं और सबसे दुख की बात तो यह है कि करीब 4.29 लाख मुकदमे 30 साल से भी ज्यादा समय से लंबित हैं।

न्यायाधीशों के पद की स्वीकृत संख्या में भी वृद्धि करने पर जोर देते हुए देश के शीर्ष विधि अधिकारी ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि राज्य सरकारों को तुरंत इस समस्या पर विचार करना चाहिए और केन्द्र सरकार को भी यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि राज्य सरकारें निचली अदालतों में रिक्तियों को भरें।’’

राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि देश धन्य है कि उसे स्वतंत्रता आंदोलन के महान दूरदर्शी नेताओं द्वारा तैयार किए गए दस्तावेज मिले हैं।

उन्होंने कहा कि प्रस्तावना में अपने सभी नागरिकों के लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुरक्षित करने का संकल्प लिया गया है।

उन्होंने कहा, ‘‘सभी तक न्याय की पहुंच में सुधार, निश्चित रूप से, प्रगति हो रही है... रास्ते में कई बाधाएं हैं, खर्च उनमें से सबसे ऊपर है। मुझे खुशी है कि जब मैं वकालत करता था, उस दौरान मुझे जरूरतमंदों को मुफ्त परामर्श देने का अवसर मिला।’’’

राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘एक और बाधा भाषा की रही है, और इस मामले में मुझे खुशी है कि उच्चतर न्यायपालिका ने अधिक से अधिक क्षेत्रीय भाषाओं में अपने फैसले उपलब्ध कराना शुरू कर दिया है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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