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लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु 21 साल करने की तैयारी, विशेषज्ञों ने चिंता जताई

By भाषा | Updated: December 16, 2021 19:25 IST

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नयी दिल्ली, 16 दिसंबर सरकार ने लड़कियों के विवाह की न्यूनतम कानूनी आयु को 18 साल से बढ़ाकर पुरुषों के बराबर 21 साल करने का फैसला किया है।

बहरहाल, विशेषज्ञों ने इसको लेकर चिंता जताई है। उनका कहना है कि यह बीमारी की जड़ की बजाय लक्षणों का उपचार करने की तरह है।

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को पुरुषों एवं महिलाओं के विवाह की न्यूनतम आयु में एकरुपता लाने के प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान की। सूत्रों ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।

सूत्रों के अनुसार, सरकार बाल विवाह (रोकथाम) अधिनियम, 2006 को संशोधित करने संबंधी विधेयक संसद के मौजूदा शीतकालीन सत्र में ला सकती है।

उन्होंने कहा कि यह प्रस्तावित विधेयक विभिन्न समुदायों के विवाह से संबंधित पर्सनल लॉ में महत्वपूर्ण बदलाव का प्रयास कर सकता है ताकि विवाह के लिए आयु में एकरूपता सुनिश्चित की जा सके।

मौजूदा कानूनी प्रावधान के तहत लड़कों के विवाह लिए न्यूनतम आयु 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल निर्धारित है।

विवाह से जुड़ी न्यूनतम आयु में एकरूपता लाने का यह निर्णय उस समय किया गया है जब इससे एक साल पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि सरकार इस बारे में विचार कर रही है कि महिलाओं के लिए न्यूनतम आयु क्या होनी चाहिए।

यह निर्णय समता पार्टी की पूर्व अध्यक्ष जया जेटली की अध्यक्षता वाले कार्यबल की अनुशंसा के आधार पर लिया गया है।

इस निर्णय के बारे में जया जेटली ने कहा कि दो प्रमुख कारणों पर ध्यान केंद्रित किया गया। उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘यहि प्रत्येक क्षेत्र में लैंगिक समानता और सशक्तिकरण की बात करते हैं तो फिर विवाह में ऐसा क्यों नहीं कर सकते। यह बहुत ही विचित्र बात है कि लड़की 18 साल की आयु में शादी के योग्य हो सकती है, जबकि इस कारण उसके कॉलेज जाने का अवसर खत्म हो जाता है। दूसरी तरफ, लड़के के पास अपने जीवन और जीविका के लिए तैयार होने का 21 साल की आयु तक अवसर होता है।’’

जेटली ने कहा कि लड़कियां को भी कमाने और पुरुषों के बराबर होने का अवसर दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘हमने बहुत सारे लोगों की राय ली, लेकिन इसमें युवा प्रमुख रूप से शामिल थे। हमने विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और ग्रामीण इलाकों में युवाओं से बात की और इनकी राय यही थी कि शादी की आयु 22 या 23 साल होनी चाहिए। सभी धर्म के मानने वालों की समान राय थी और यह बहुत ही सुखद बात थी।’’

जेटली ने बताया कि कार्यबल ने अपनी रिपोर्ट पिछले साल दिसंबर में प्रधानमंत्री कार्यालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और नीति आयोग को सौंपी थी।

इस कार्यबल में नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ. वी.के. पॉल, उच्च शिक्षा, स्कूली शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास, विधायी कार्य विभागों के सचिव, नजमा अख्तर, वसुधा कामत और दीप्ति शाह जैसे शिक्षाविद भी शामिल थीं।

उधर, ‘ऑक्सफैम इंडिया’ की प्रमुख विशेषज्ञ अमिता पित्रे ने कहा कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 की रिपोर्ट से पता चलता है कि अब 18 साल की कम उम्र में लड़कियों के शादी करने की संख्या 23 प्रतिशत हो गई जो इससे पहले के सर्वेक्षण में 27 प्रतिशत थी।

उन्होंने कहा, ‘‘आज भी 50 से 60 प्रतिशत शादियां 21 साल की उम्र से पहले होती हैं। ऐसे में न्यूनतम आयु 21 साल करने से भविष्य में ऐसी सभी शादियां अपराध की श्रेणी में आ जाएंगी। उच्च और मध्य वर्ग में अब शादियां आमतौर पर 21 साल से अधिक उम्र में ही होती हैं।’’

‘पापुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ ने कहा कि इस मामले में कानूनी कदम यह बीमारी की जड़ की बजाय लक्षणों का उपचार करने जैसा है।

उसने एक बयान में कहा, ‘‘कम उम्र की शादियों या जबरन विवाह के पीछे कई प्रमुख कारण मसलन लैंगिक असमानता, पुरातन सामाजिक व्यवस्थाएं, वित्तीय असुरक्षा, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी और रोजगार के अवसर का अभाव हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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