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प्रताप भानु मेहता : इस्तीफे पर उठ रहे सवाल

By भाषा | Updated: March 28, 2021 12:30 IST

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नयी दिल्ली, 28 मार्च देश के बेहतरीन राजनीतिक टीकाकार और अभिव्यक्ति की आजादी के प्रबल समर्थक डॉ. प्रताप भानु मेहता ने अशोका विश्वविद्यालय से इस्तीफा दे दिया और अब दुनियाभर के शैक्षणिक संस्थान इस घटनाक्रम पर सवाल उठा रहे हैं। अशोका विश्वविद्यालय के छात्र उनकी वापसी की मांग कर रहे हैं और भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर एवं शिकॉगो विश्वविद्यालय, बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस के प्रोफेसर रघु राजन ने इसे देश में अभिव्यक्ति की आजादी के लिए गंभीर झटका बताया है।

इस बात को बमुश्किल चार बरस गुजरे हैं, जब प्रताप भानु मेहता को अशोका विश्विवद्यालय का कुलपति बनाए जाने पर इस संस्थान के ही एक शीर्ष अधिकारी ने कहा था, ‘‘इस पद को भरने के लिए दुनियाभर में योग्य उम्मीदवार की तलाश की गई और हमें बेहद खुशी है कि यह खोज डॉ. मेहता पर आकर खत्म हुई।’’

हालांकि उन्होंने दो साल बाद ही यह पद छोड़ दिया, लेकिन प्रोफेसर के तौर पर इस शिक्षण संस्थान से जुड़े रहे और अब उन्होंने यह पद भी छोड़ दिया।

वर्ष 2014 में हरियाणा के सोनीपत में शुरू की गई इस यूनिवर्सिटी से मेहता के इस्तीफे पर राजन ने कहा, ''सच्चाई यह है कि प्रोफेसर मेहता संस्थान के लिए कांटा थे। वह कोई साधारण कांटा नहीं हैं, बल्कि वह सरकार में उच्च पदों पर बैठे लोगों के लिए अपनी जबरदस्त दलीलों से कांटा बने हुए थे।''

दुनिया के कई ख्यात विश्वविद्यालय जैसे हार्वर्ड और येल जैसे संस्थान प्रताप भानु मेहता के इस्तीफे को दुखद बता रहे हैं।

जोधपुर में एक राजस्थानी जैन परिवार में जन्मे प्रताप भानु मेहता की प्रारंभिक शिक्षा शिमला के सेंट एडवर्ड्स स्कूल और जयपुर के सेंट जेवियर्स स्कूल से हुई। उनके दादा जसवंतराज मेहता पहले लोकसभा चुनाव में जोधपुर निर्वाचन क्षेत्र से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार निर्वाचित हुए थे।

प्रताप भानु मेहता ने ऑक्सफर्ड के सेंट जोन्स कालेज से दर्शनशास्त्र, राजनीति और अर्थशास्त्र में बी.ए. की डिग्री ली और प्रिंसटन विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में पीएचडी की। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कई संस्थानों में शिक्षक के तौर पर अपनी सेवाएं दीं, वह न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के स्कूल आफ लॉ में प्रोफेसर रहे। वह हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर रहे।

मेहता कुछ समय के लिए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी प्रोफेसर रहे। वह प्रधानमंत्री के नेशनल नॉलेज बैंक के संयोजक सदस्य रहे और भारतीय विश्वविद्यालयों में चुनावों पर उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित लिंगदोह समिति के भी सदस्य रहे।

इसके अलावा वह कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से जुड़े रहे और देश-विदेश के अखबारों तथा पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख छपते रहे। देश और समाज के प्रति उनकी सेवाओं को देखते हुए उन्हें 2010 में मेलकम आदिशेषैया पुरस्कार और 2011 में इन्फोसिस पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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