प्रदूषण: केंद्र आपात बैठक बुलाए, पराली जलाने को लेकर तथ्यात्मक आधार नहीं: न्यायालय

By भाषा | Updated: November 15, 2021 21:00 IST2021-11-15T21:00:16+5:302021-11-15T21:00:16+5:30

Pollution: Center calls emergency meeting, no factual basis for stubble burning: Court | प्रदूषण: केंद्र आपात बैठक बुलाए, पराली जलाने को लेकर तथ्यात्मक आधार नहीं: न्यायालय

प्रदूषण: केंद्र आपात बैठक बुलाए, पराली जलाने को लेकर तथ्यात्मक आधार नहीं: न्यायालय

नयी दिल्ली, 15 नवंबर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को केंद्र को निर्देश दिया कि वह प्रदूषण संकट पर आपात बैठक बुलाए और स्थिति से निपटने के लिए मंगलवार तक गैर जरूरी निर्माण, परिवहन, ऊर्जा संयंत्रों पर रोक लगाने तथा कर्मियों को घर से काम करने देने जैसे कदमों पर निर्णय करे। इसने कहा कि ‘‘तथ्य अब सामने आ गया है’’ और किसानों द्वारा पराली जलाए जाने पर किसी वैज्ञानिक और तथ्यात्मक आधार के बिना ही ‘हल्ला’ मचाया जा रहा है।

केंद्र को दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के संबंधित सचिवों के साथ बैठक करने का आदेश देते हुए प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमण, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने कहा, ‘‘वास्तव में, अब तथ्य सामने आ गया है, प्रदूषण में किसानों के पराली जलाने का योगदान चार प्रतिशत है... इसलिए, हम कुछ ऐसा लक्षित कर रहे हैं जिसका कोई महत्व नहीं है।"

न्यायालय ने संकट से निपटने के लिए आवश्यक कदम न उठाने की जिम्मेदारी नगर निकायों पर थोपने और ‘बहानेबाजी’ बनाने को लेकर दिल्ली सरकार की खिंचाई की।

पीठ ने कहा कि निर्माण, उद्योग, परिवहन, बिजली और वाहन यातायात प्रदूषण पैदा करने के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं तथा केंद्र को इन कारकों के संबंध में कदम उठाने चाहिए।

इसने कहा, "हालांकि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आस-पास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग द्वारा कुछ निर्णय लिए गए, लेकिन इसने यह स्पष्ट रूप से संकेत नहीं दिया है कि वे वायु प्रदूषण पैदा करने वाले कारकों को नियंत्रित करने के लिए क्या कदम उठाने जा रहे हैं।’’

न्यायालय ने कहा, "इसके मद्देनजर, हम भारत सरकार को कल एक आपातकालीन बैठक बुलाने और उन क्षेत्रों पर चर्चा करने का निर्देश देते हैं जिनका हमने संकेत दिया था और वायु प्रदूषण को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिए वे कौन से आदेश पारित कर सकते हैं।’’

पीठ ने कहा, ‘‘जहां तक ​​पराली जलाने का सवाल है, मोटे तौर पर हलफनामे में कहा गया है कि उसका योगदान दो महीने की अवधि को छोड़कर इतना अधिक नहीं है। हालांकि, वर्तमान में हरियाणा और पंजाब में काफी संख्या में पराली जलाने की घटनाएं हो रही हैं। किसानों से आग्रह है कि दो सप्ताह तक पराली न जलाएं।’’

इसने केंद्र और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) राज्यों को कर्मचारियों के लिए घर से काम करने की संभावना तलाशने को कहा।

शुरुआत में, याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि वह कुछ सुझाव देना चाहते हैं और निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने के बजाय इन्हें विनियमित किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि केंद्र पंजाब में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कड़े कदम उठाने को तैयार नहीं है और इस प्रक्रिया की निगरानी के लिए एक स्वतंत्र आयोग का गठन किया जाना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने कहा, "हम संकट की स्थिति में हैं, हम समिति के गठन जैसे नए मुद्दों से नहीं निपट सकते हैं। सरकार ने एक विस्तृत हलफनामा दायर किया है। उन कदमों के संदर्भ में आप सुझाव दे सकते हैं।"

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उनका विरोध करते हुए कहा, "मेरे दोस्त (सिंह) का एक अलग एजेंडा है।"

पीठ ने हस्तक्षेप किया, "आप लड़ना चाहते हैं या आप बहस करना चाहते हैं। हमें चुनाव और राजनीति से कोई सरोकार नहीं है। कल भी हमने स्पष्ट किया था कि हमें राजनीति से कोई सरोकार नहीं है, हम केवल प्रदूषण कम करना चाहते हैं ... चुनाव क्यों लाएं ... हम संकट की स्थिति के बीच में हैं। हम नए समाधान नहीं निकाल सकते।"

पीठ ने तब मेहता से दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकारों के सचिवों के साथ पूर्व में हुई बैठक के नतीजे के बारे में पूछा।

उन्होंने कहा कि दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए लॉकडाउन सबसे कठोर उपाय होगा।

मेहता ने कहा कि अन्य उपाय जो किए जा सकते हैं, वे वाहनों की आवाजाही के लिए एक सम-विषम योजना और राजधानी में ट्रकों के प्रवेश पर प्रतिबंध है।

उन्होंने पीठ को बताया कि हरियाणा सरकार ने कर्मचारियों के लिए ‘वर्क फ्रॉम’ होम लागू करने सहित वही कदम उठाए हैं।

मेहता ने कहा, ‘‘हमने पार्किंग शुल्क को तीन-चार गुना बढ़ाने का सुझाव दिया है, इसलिए बिना वजह यात्रा करने वाले ऐसा करने से बचेंगे। यदि हवा की गुणवत्ता बहुत खराब होती है, तो अस्पतालों जैसे आपातकालीन मामलों को छोड़कर डीजल जनरेटर का उपयोग बंद कर दिया जाएगा। बस और मेट्रो सेवाओं में वृद्धि सहित सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना होगा। हमने दिल्ली सरकार को यही सुझाव दिया था।"

उन्होंने आगे कहा कि अब पराली जलाने का प्रदूषण में कोई बड़ा योगदान नहीं है।

मेहता ने कहा, "मुझे यह स्वीकार करना होगा कि अब पराली जलाने का प्रदूषण में कोई बड़ा योगदान नहीं है, क्योंकि अब तक यह 10 प्रतिशत है जो मुझे बताया गया है। सड़क की धूल प्रदूषण में प्रमुख योगदान देती है। राज्यों और इसकी एजेंसियों को आपात उपाय लागू करने के लिए पूरी तरह से तैयार होना चाहिए। सड़कों की मशीनीकृत सफाई और सड़कों पर पानी के छिड़काव की आवृत्ति बढ़ाएं। दिल्ली एनसीआर में स्टोन क्रशर को बंद करना सुनिश्चित करें। जहां तक ​​बदरपुर संयंत्र का संबंध है, हमने इसे बंद करने का निर्देश नहीं दिया है। होटलों या भोजनालयों में कोयले या जलाऊ लकड़ी का उपयोग बंद किया जाए।’’

मेहता के अभिवेदन प्रस्तुत करने पर पीठ ने कहा, " पिछली तारीख पर हमने बताया था कि आपातकालीन कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। आप जिन सुझावों की ओर इशारा कर रहे हैं, वे दीर्घकालिक योजना का हिस्सा हो सकते हैं। दिल्ली में सड़कों की सफाई करने वाली कितनी मशीनीकृत मशीन उपलब्ध हैं।"

पीठ ने कहा, "क्या आप सहमत हैं कि पराली जलाना मुख्य कारण नहीं है? उस हंगामे का कोई वैज्ञानिक या तथ्यात्मक आधार नहीं है।" इसने यह दिखाने के लिए एक चार्ट का उल्लेख किया कि पराली जलाने का समग्र वायु प्रदूषण में चार प्रतिशत का योगदान है।

केंद्र के हलफनामे का हवाला देते हुए, इसने कहा कि 75 प्रतिशत वायु प्रदूषण तीन कारकों- उद्योग, धूल और परिवहन के कारण होता है।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘इससे पहले (शनिवार को) हुई सुनवाई में हमने कहा था कि पराली जलाया जाना मुख्य कारण नहीं है, शहर संबंधी कारक भी इसके पीछे है, इसलिए यदि आप उनके संबंध में कदम उठाते हैं, तो स्थिति में सुधार होगा।’’

मेहता ने अदालत को बताया कि सभी राज्य अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहे हैं और दिल्ली में कुल 85,000 किलोमीटर लंबे सड़क क्षेत्र की सफाई की है।

पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार के अनुसार, उसके द्वारा सड़क साफ करने वाली 69 यांत्रिक मशीन लगाई गई हैं। इसने पूछा कि पूछा कि क्या वे पर्याप्त हैं।

दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा ने कहा कि यह सब नगर निगम (एमसीडी) देखता है क्योंकि वह "स्वतंत्र और स्वायत्त निकाय" है।

पीठ ने इस पर कहा कि आप फिर एमसीडी पर जिम्मेदारी थोप रहे हैं। इसने कहा कि यह बहानेबाजी लोगों की देखभाल करने के बजाय लोकप्रियता के नारों पर आपके द्वारा एकत्रित और खर्च किए जा रहे कुल राजस्व का पता लगाने और ऑडिट जांच कराने के लिए अदालत को मजबूर करेगी।

शीर्ष अदालत पर्यावरण कार्यकर्ता आदित्य दुबे और कानून के छात्र अमन बांका द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने छोटे और सीमांत किसानों को मुफ्त में पराली हटाने वाली मशीन उपलब्ध कराने का निर्देश देने का आग्रह किया है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Web Title: Pollution: Center calls emergency meeting, no factual basis for stubble burning: Court

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे