संसद में गतिरोध खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री हस्तक्षेप करें, मानसून सत्र बढ़ाया जाए: राजद सांसद मनोज झा

By भाषा | Updated: August 8, 2021 14:18 IST2021-08-08T14:18:52+5:302021-08-08T14:18:52+5:30

PM should intervene to end the deadlock in Parliament, extend the monsoon session: RJD MP Manoj Jha | संसद में गतिरोध खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री हस्तक्षेप करें, मानसून सत्र बढ़ाया जाए: राजद सांसद मनोज झा

संसद में गतिरोध खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री हस्तक्षेप करें, मानसून सत्र बढ़ाया जाए: राजद सांसद मनोज झा

(आसिम कमाल)

नयी दिल्ली, आठ अगस्त राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता मनोज कुमार झा ने रविवार कहा कि सरकार संसद में पेगासस गतिरोध पर वार्ता के रास्ते बंद कर रही है और मुद्दे के समाधान के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हस्तक्षेप करना चाहिए। उन्होंने कहा कि संसद के व्यर्थ गए समय के बदले मानसून सत्र का विस्तार किया जाना चाहिए।

राज्यसभा सदस्य झा ने इस बात के लिए भी सरकार की आलोचना की कि वह बार-बार जोर देकर यह कह रही है कि विपक्षी दलों के साथ संवाद कायम करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इसका मतलब यह नहीं होता कि आप ‘‘जेब में हाथ डालकर, चेहरे पर कठोर भाव बनाकर कहें कि हमारे पास देने को बस यही है, कुछ और नहीं।’’

झा ने पीटीआई-भाषा को दिए साक्षात्कार में कहा, ‘‘संवाद कायम करने की आड़ में वे (सरकार)वार्ता के लिए दरवाजे बंद कर रहे हैं। मैंने कई बार यह कहा है कि संवाद बनाने की जिम्मेदारी जिन तथाकथित लोगों को दी गई, संभवत: उनके पास किसी तरह की ठोस पेशकश देने का अधिकार नहीं है।’’

उल्लेखनीय है कि 19 जुलाई को संसद का मानसून सत्र शुरू होने के बाद से ही विपक्षी दलों के विरोध और गतिरोध के कारण सदन की कार्यवाही बाधित रही है। विपक्ष पेगासस जासूसी विवाद पर चर्चा की मांग पर अड़ा है।

कुछ मीडिया संगठनों के अंतरराष्ट्रीय समूह ने कहा था कि भारत में पेगासस स्पाईवेयर के जरिए 300 से अधिक मोबाइल नंबरों की संभवत: निगरानी की गयी। इसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी, दो मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल और अश्विनी वैष्णव, कारोबारी अनिल अंबानी, 40 से अधिक पत्रकारों, तीन विपक्षी नेताओं के अलावा अनेक कार्यकर्ताओं के नंबर भी थे। सरकार इस मामले में विपक्ष के सभी आरोपों को खारिज करती रही है।

पेगासस मामले पर विपक्ष की चर्चा की मांग और संसद में इसे लेकर बने गतिरोध के बारे में सवाल पूछे जाने पर झा ने कहा कि सरकार मीडिया में कहती है कि वह संवाद कायम करने का प्रयास कर रही है लेकिन इस तरह के प्रयासों का मतलब ‘‘केवल सुनना नहीं, बल्कि समझना’’ होना चाहिए।

राजद के वरिष्ठ नेता ने आरोप लगाया कि सरकार ‘‘द्वेषपूर्ण भाषा’’ का प्रयोग कर रही है जिससे ‘‘गतिरोध’’ खत्म होने की संभावना खत्म हो गई है।

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन अगर प्रधानमंत्री स्वयं हस्तक्षेप करें और अपने लोगों से गतिरोध खत्म करने तथा यह बोलने को कहें कि ‘हम किसी भी विषय पर चर्चा के लिए तैयार हैं’ तो चर्चा अब भी संभव है। जो समय व्यर्थ चला गया, उसके बदले अगर संभव हो तो सत्र की अवधि बढ़ाई जाए। हम 15 अगस्त के बाद भी चर्चा कर सकते हैं।’’

उल्लेखनीय है कि संसद का मानसून सत्र 13 अगस्त तक चलेगा।

संसद में कोविड-19 की दूसरी लहर पर विस्तार से चर्चा नहीं होने पर झा ने सरकार पर तथ्यों से खुलेआम इनकार करने का आरोप लगाया।

उन्होंने कहा, ‘‘जिस दिन मैंने भाषण (राज्यसभा में कोविड पर) दिया था, सरकार ने प्रतिक्रिया में कहा कि ऑक्सीजन की कमी के कारण किसी की मौत नहीं हुई। जब आप वैश्विक महामारी से लड़ते हो तो आपको नाकामियों को स्वीकार करना चाहिए और सफलता का श्रेय भी लेना चाहिए। मैं सिर्फ केंद्र सरकार को दोष नहीं देता, बल्कि कई राज्य सरकारों ने भी तथ्यों से साफ इनकार किया।’’

यह पूछे जाने पर कि क्या विपक्ष को मानसून सत्र में पेगासस की जगह कीमतों में वृद्धि, किसान आंदोलन और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर अधिक ध्यान देना चाहिए, झा ने कहा कि ये सभी मुद्दे अहम हैं और विपक्ष इन्हें लगातार उठा रहा है लेकिन पेगासस मामला मीडिया में आईं खबरों में जासूसी का जो स्तर बताया गया है, उसे देखते हुए बेहद महत्वपूर्ण हो गया है।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं यह नहीं कहता कि हमारे लिए पेगासस पहले नंबर पर है लेकिन मीडिया में आईं खबरों के मुताबिक जासूसी के स्तर को देखते हुए यह महत्वपूर्ण हो गया है, दुनिया के कई देश इसकी जांच के आदेश दे रहे हैं लेकिन हमारे यहां तो स्वीकारोक्ति (चर्चा के लिए) तक नहीं हो रही।’’

जासूसी के आरोपों को सरकार द्वारा ‘‘कोई मुद्दा नहीं’’ कहे जाने पर झा ने कहा कि विस्तार से चर्चा के बाद यदि ऐसा साबित हो जाता है तो विपक्ष इसे स्वीकार कर लेगा लेकिन चर्चा ही नहीं कराना तो संसदीय लोकतंत्र के विचार के विपरीत है।

झा ने कहा, ‘‘क्या हम भूल गए कि बोफोर्स (के सामने आने पर) पर चर्चा हुई थी, जवाहरलाल नेहरू के वक्त मूंदड़ा मामले पर भी चर्चा हुई थी जबकि उस वक्त तो विपक्ष लगभग आस्तित्व में ही नहीं था।

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