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रौशनी कानून निरस्त करने के खिलाफ न्यायालय में दायर हुयीं याचिकायें

By भाषा | Updated: November 26, 2020 20:20 IST

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नयी दिल्ली, 26 नवंबर रौशनी कानून निरस्त करने के जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ पूर्व नौकरशाहों, कारोबारियों और सेवानिवृत्त न्यायाधीशों आदि ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर की हैं। इस कानून के तहत सरकार की जमीन पर कब्जा धारकों को ही मालिकाना हक देने का प्रावधान था।

याचिकाकर्ताओं का दावा है कि उन्होंने कभी भी सरकारी जमीन का अतिक्रमण नहीं किया और इस मामले में उन्हें कभी पक्षकार नहीं बनाया गया।

उच्च न्यायालय ने नौ अक्टूबर को रौशनी कानून को गैरकानूनी और असंवैधानिक करार देते हुये इस कानून के तहत भूमि आबंटन के मामलों की सीबीआई जांच का आदेश दिया है।

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि उनके खिलाफ किसी भी तरह के कथित गैरकानूनी कृत्य का आरोप नहीं है और उन्होंने किसी भी सार्वजनिक जमीन का अतिक्रमण नहीं किया है।

न्यायालय में 26 याचिकायें दायर की गयी हैं। इनमें पूर्व मुख्य वन संरक्षक आर के मट्टू, पूर्व न्यायाधीश खालिक-उल-जमां, पूर्व मुख्य सचिव मोहम्मद शाई पंडित, पूर्व ऊर्जा विकास आयुक्त निसार हुसैन, कारोबारी भरत मल्होत्रा और विकास खन्ना तथा सेवानिवृत्त आयुक्त बशीर अहमद भी शामिल हैं।

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वे इस जमीन के अधिकृत बाशिंदे हैं और उच्च न्यायालय ने बगैर किसी आधार या औचित्य के ही सभी के लिये एक आदेश पारित कर दिया है।

याचिका में दावा किया गया है कि वे सामान्य नागरिक हैं और उन्होंने पैसा देकर इसे खरीदा है। यही नहीं, विधिवत निर्वाचित विधान मंडल द्वारा बनाये गये और कार्यपालिका द्वारा इस पर किये गये अमल में उनकी कोई भूमिका नहीं है। याचिका में जोर देकर कहा गया है कि वे कानून का पालन करने वाले नागरिक हैं जिन्होंने किसी भी सरकारी जमीन का अतिक्रमण नहीं किया है।

जम्मू कश्मीर में रौशनी कानून, 2001 में दो उद्देश्यों से लागू किया गया था। पहला तो विद्युत परियोजनाओं के लिये वित्तीय संसाधन जुटाना और सरकारी जमीन पर बसे लोगों को मालिकाना हक देना। प्रारंभ में करीब 20.55 लाख कनाल (102750 हेक्टर) भूमि पर बसे लोगों को मालिकाना हक देना था जिसमे से सिर्फ 15.85 प्रतिशत भूमि ही मालिकाना हक के लिये मंजूर की गयी थी।

याचिकाओं में कहा गया है कि उच्च न्यायालय के एक समान आदेश ने उन्हें प्रभावित किया है क्योंकि अदालत ने सभी लाभान्वितों के विवरण सरकारी वेबसाइट पर प्रकाशित करने , इस कानून के तहत शुरू से की गयी सारी कार्रवाई रद्द करने और इसकी सीबीआई जांच तथा जमीन का कब्जा वापस लेने के आदेश दिये हैं। याचिका के अनुसार इससे याचिकाकर्ताओं के रिहाइशी स्थानों के लिये खतरा पैदा हो गया है।

याचिका के अनुसार, उच्च न्यायालय के आदेश से याचिकाकर्ता सीधे तौर पर प्रभावित हैं और इसीलिए राहत के लिये यह याचिका दायर की गई है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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