शायद कोरोना वायरस कभी जाएगा ही नहीं या हो सकता है कि वह बहुत मामूली रूप ले ले : वैज्ञानिक

By भाषा | Updated: February 14, 2021 20:50 IST2021-02-14T20:50:15+5:302021-02-14T20:50:15+5:30

Perhaps the corona virus will never go away or it may take a very minor form: scientific | शायद कोरोना वायरस कभी जाएगा ही नहीं या हो सकता है कि वह बहुत मामूली रूप ले ले : वैज्ञानिक

शायद कोरोना वायरस कभी जाएगा ही नहीं या हो सकता है कि वह बहुत मामूली रूप ले ले : वैज्ञानिक

(अनिरूद्ध घोसाल और क्रिस्टिना लार्सन)

नयी दिल्ली, 14 फरवरी यदि कोविड-19 कभी खत्म नहीं होता है तो क्या होगा? विशेषज्ञों का मानना है कि इस बीमारी के कुछ रूप सालों तक बने रहेंगे लेकिन भविष्य में यह कैसा होगा, यह अभी लगभग अस्पष्ट है।

दुनिया भर में पहले ही 20 लाख से अधिक लोगों की जान ले चुके कोरोना वायरस का वैश्विक टीकाकरण अभियान के जरिए क्या चेचक की भांति आखिरकार पूरा सफाया कर लिया जाएगा? या फिर यह वायरस हल्की परेशानी के रूप में अपने आपको तब्दील करके सर्दी- जुकाम की तरह लंबे समय तक बना रहेगा।

वायरस का अध्ययन करने वाले और पोलियो एवं एचआईवी/एड्स से निपटने के भारत के प्रयास का हिस्सा रहे डॉ. जैकब जॉन का अनुमान है कि सार्स-कोव-2 नाम से चर्चित यह वायरस उन कई अन्य संक्रामक रोगों की फेहरिस्त में शामिल हो जाएगा जिसके साथ इंसान ने जीना सीख लिया है।

लेकिन पक्के तौर पर किसी को कुछ पता नहीं है। यह वायरस तेजी से पनप रहा है और कई देशों में नयी किस्में सामने आ रही हैं।

इन नयी किस्मों के जोखिम की बातें तब प्रमुख रूप से सामने आयी थीं जब नोवावैक्स इंक ने पाया कि उसका टीका ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका में सामने आयी नयी किस्मों पर कारगर साबित नहीं हुआ। विशेषज्ञों का कहना है कि यह वायरस जितना फैलेगा , उतनी ही ऐसी संभावना है कि नयी किस्म वर्तमान जांच, उपचार और टीकों को छकाने में समर्थ हो जाएगी।

लेकिन फिलहाल वैज्ञानिकों के बीच इस तात्कालिक प्राथमिकता पर सहमति है कि यथासंभव लोगों को टीका लगाया जाए और अगला चरण कुछ कम पक्का है एवं यह काफी हद तक टीकों द्वारा प्रदत्त प्रतिरोधकता और प्राकृतिक संक्रमण पर निर्भर करता है और यह भी कि वह कब तक रहता है।

कोलंबिया विश्वविद्यालय में वायरस का अध्ययन करने वाले जेफ्री शमन ने कहा, ‘‘क्या लोग थोड़े- थोड़े समय पर बार-बार संक्रमित हाने जा रहे हैं? हमारे पास यह जानने के लिए पर्याप्त आंकड़े नहीं हैं।’’

अन्य अनुसंधानकर्ताओं की भांति उनका भी मानना है कि इस बात की बहुत ही क्षीण संभावना है कि टीके से जीवनपर्यंत प्रतिरोधकता मिलेगी।

क्या मानव को कोविड-19 के साथ रहना सीख लेना चाहिए, लेकिन उस सह अस्तित्व की प्रकृति बस इस बात पर निर्भर नहीं करती है कि कब तक प्रतिरोधकता रहती है, बल्कि इस पर भी निर्भर करती है कि यह वायरस आगे पनपता कैसे है? क्या यह हर साल अपने आपमें बदलाव कर लेगा और फ्लू की भांति हर साल टीके की जरूरत होगी या कुछ सालों में टीके की जरूरत पड़ेगी?

अब आगे क्या होता है, यह सवाल एमोरी विश्वविद्यालय में विषाणुविद जेन्नी लेवाइन को भी आकर्षित करता है । हाल ही में विज्ञान में उनके सहलेखन से प्रकाशित हुए शोधपत्र में अपेक्षाकृत आशावादी तस्वीर पेश की गयी: जब ज्यादातर लोग इस वायरस के सम्मुख आ जायेंगे-- या टीकाकरण के जरिए या फिर संक्रमण से निजात पाने के बाद, तब यह संक्रमण जारी तो रहेगा लेकिन वह सर्दी- जुकाम की भांति बस मामूली रूप से बीमार करेगा।

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