उच्च पीएम2.5 स्तर वाले राज्यों में लोगों को कोविड-19 होने की आशंका ज्यादा : अध्ययन

By भाषा | Updated: July 2, 2021 16:43 IST2021-07-02T16:43:49+5:302021-07-02T16:43:49+5:30

People in states with high PM 2.5 levels are more likely to get Kovid-19: Study | उच्च पीएम2.5 स्तर वाले राज्यों में लोगों को कोविड-19 होने की आशंका ज्यादा : अध्ययन

उच्च पीएम2.5 स्तर वाले राज्यों में लोगों को कोविड-19 होने की आशंका ज्यादा : अध्ययन

(गौरव सैनी)

नयी दिल्ली, दो जुलाई लंबे समय तक पीएम 2.5 जैसे प्रदूषकोंके संपर्क में रहने के कारण राष्ट्रीय राजधानी था महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में रहने वाले लोगों के कोविड-19 की चपेट में आने का खतरा ज्यादा रहता है। अखिल भारतीय स्तर पर हुए एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है।

इसमें कहा गया कि दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु, कोलकाता, पुणे, अहमदाबाद,वाराणसी, लखनऊ और सूरत समेत 16 शहरों में कोविड-19 के मामले समसे ज्यादा दर्ज किए गए और जीवाश्म ईंधन आधारित मानवजनित गतिविधियोंके कारण इन इलाकों में पीएम2.5 का उत्सर्जन भी ज्यादा है।

पीएम2.5 का मतलब सूक्ष्म कणों से है जो शरीर के अंदर गहराई तक प्रवेश कर जाते हैं और फेफड़ों व सांस की नली में सूजन पैदा करते हैं। इसकी वजह से प्रतिरक्षा तंत्र के कमजोर होने के साथ ही हृदय व सांस संबंधी बीमारियों का भी जोखिम रहता है।

वायु गुणवत्ता एवं मौसम पूर्वानुमान एवं अनुसंधान प्रणाली (सफर) के निदेशक और अध्ययन के लेखकों में से एक गुफरान बेग के मुताबिक यह अध्ययन देश भर के 721 जिलों में किया गया और इसमें पीएम2.5 की उत्सर्जन मात्रा और कोविड-19 संक्रमण व मौत में मजबूत संबंध स्थापित हुआ।

भुवनेश्वर के उत्कल विश्वविद्यालय, पुणे के भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान, राउरकेला स्थित राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भुवनेश्वर के अनुसंधानकर्ताओं ने इन जिलों में पिछले साल पांच नवंबर तक उत्सर्जन, वायु गुणवत्ता और कोविड-19 के मामलों और मौत से संबंधित आंकड़ों का अध्ययन किया।

अध्ययन के नतीजे भारत के लिये पहला व्यवहारिक साक्ष्य हैं कि “जिन शहरों में प्रदूषण के हॉट-स्पॉट (ज्यादा प्रदूषण स्तर वाले क्षेत्र) हैं, जहां जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन अधिक होता है, वे कोविड-19 के मामलों के लिहाज से बेहद संवेदनशील हैं।”

अध्ययन का नाम ‘मानवजनित उत्सर्जन स्रोतों और वायु गुणवत्ता आंकड़े के आधार पर भारत में सूक्ष्म कण पदार्थ (पीएम2.5) क्षेत्रों और कोविड-19 के बीच संबंध स्थापित करना’ रखा गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली और महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, गुजरात, बिहार, कर्नाटक, ओडिशा तथा मध्य प्रदेश में पीएम2.5 की ज्यादा सांद्रता के साथ ही कोविड-19 के मामले भी अधिक संख्या में मिले।

अध्ययन के मुताबिक, यदि अच्छे सहसंबंध गुणक की प्रवृत्ति बनी रहती है तो इन क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों के कोविड-19 से प्रभावित होने की आशंका अधिक है। अध्ययन के मुताबिक खराब वायु गुणवत्ता वाले दिनों का कोविड-19 से होने वाली मौत से संबंध स्पष्ट नजर आता है।

इसमें कहा गया, “खराब वायु गुणवत्ता वाले दिनों का सूचकांक जब 100 से ज्यादा पार करता है तो हताहतों की संख्या में तेजी से वृद्धि देखी जाती है।”

औसतन हर साल 288 खराब वायु गुणवत्ता वाले दिनों का सामना करने वाली दिल्ली में पिछले साल पांच नबंवर तक कोरोना वायरस के 438529 मामले सामने आए थे जबकि 6989 लोगों की महामारी से तब तक यहां जान जा चुकी थी।

वहीं हर साल औसतन 165 खराब वायु गुणवत्ता वाले दिनों का सामना करने वाले मुंबई शहर में इस अवधि के दौरान 264545 मामले सामने आए जबकि 10445 लोगों की जान चली गई। पुणे में हर साल औसतन 117 दिन वायु गणवत्ता सूचकांक खराब श्रेणी में रहता है यहां संक्रमण के 338583 मामले सामने आए जबकि 7060 मरीजों की जान चली गई।

हालांकि इसमें कुछ विसंगतियां भी हैं- श्रीनगर में एक साल में 145 दिन वायु गुणवत्ता खराब श्रेणी में दर्ज की गई लेकिनयहां पांच नवंबर तक 20413 मामले दर्ज किये गए जबकि 375 लोगों की जान गई वहीं बेंगलुरू में एक साल में सिर्फ 39 दिन ही वायु गुणवत्ता सूचकांक खराब श्रेणी में रहा लेकिन यहां संक्रमण के 365959 मामले सामने आए जबकि 4086 मरीजों की जान गई।

बेग ने बताया, “यह अध्ययन पीएमटी उत्सर्जन की मात्रा और कोविड-19 के बीच उच्च सहसंबंध गुणक दर्शाता है, लेकिन 100 प्रतिशत नहीं। ऐसे मामलों में कुछ विसंगतियां होगी जिनके लिये कई भ्रमित करने वाले कारकों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जिनमें परीक्षण की संख्या भी शामिल है।

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