किसान प्रदर्शन: असंतुष्टों को चुप कराने के लिये राजद्रोह का कानून नहीं लगा सकते : अदालत

By भाषा | Updated: February 16, 2021 21:34 IST2021-02-16T21:34:23+5:302021-02-16T21:34:23+5:30

Peasant demonstrations: Cannot impose sedition law to silence dissidents: court | किसान प्रदर्शन: असंतुष्टों को चुप कराने के लिये राजद्रोह का कानून नहीं लगा सकते : अदालत

किसान प्रदर्शन: असंतुष्टों को चुप कराने के लिये राजद्रोह का कानून नहीं लगा सकते : अदालत

नयी दिल्ली, 16 फरवरी दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि उपद्रवियों का मुंह बंद कराने के बहाने असंतुष्टों को खामोश करने के लिये राजद्रोह का कानून नहीं लगाया जा सकता।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राना ने किसानों के प्रदर्शन के दौरान फेसबुक पर फर्जी वीडियो डालकर कथित रूप से राजद्रोह और अफवाह फैलाने के आरोप में दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार दो व्यक्तियों- देवी लाल बुरदक और स्वरूप राम- को जमानत देने के दौरान यह टिप्पणी की।

अदालत ने कहा कि उसके समक्ष आए मामले में आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह) लगाया जाना “गंभीर चर्चा का मुद्दा” है।

अदालत ने कहा कि समाज में शांति व व्यवस्था कायम रखने के लिये सरकार के हाथ में राजद्रोह का कानून एक शक्तिशाली औजार है।

न्यायाधीश ने 15 फरवरी को दिये गए अपने आदेश में कहा, “हालांकि, उपद्रवियों का मुंह बंद करने के बहाने असंतुष्टों को खामोश करने के लिये इसे लागू नहीं किया जा सकता। जाहिर तौर पर, कानून ऐसे किसी भी कृत्य का निषेध करता है जिसमें हिंसा के जरिये सार्वजनिक शांति को बिगाड़ने या गड़बड़ी फैलाने की प्रवृत्ति हो।”

आदेश में कहा गया कि हिंसा, अथवा किसी तरह के भ्रम अथवा तिरस्कारपूर्ण टिप्पणी या उकसावे के जरिये आरोपियों के द्वारा सार्वजनिक शांति में किसी तरह की गड़बड़ी या अव्यवस्था फैलाने के अभाव में संदेह है कि आरोपियों पर धारा 124 (ए) के तहत कार्रवाई की जा सकती है।

न्यायाधीश ने कहा, “मेरे विचार में, आरोपियों को जिस टैगलाइन के लिये जिम्मेदार बताया गया है उसे सीधे तौर पर पढ़कर भादंसं की धारा 124ए लगाना बहस का गंभीर मुद्दा है।”

पुलिस के मुताबिक बुरदक ने अपने फेसबुक पेज पर एक जाली वीडियो “दिल्ली पुलिस में विद्रोह है और करीब 200 पुलिसकर्मियों ने सामूहिक इस्तीफा दिया” टैगलाइन के साथ पोस्ट किया था। अभियोजन ने कहा, पोस्ट किया गया वीडियो हालांकि खाकी पहने कुछ लोगों (होम गार्ड कर्मियों) का है जो झारखंड सरकार से अपनी कुछ शिकायतों को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे।

इस फेसबुक पोस्ट में राम ने एक अलग वीडियो साझा किया था जिसमें ऐसी ही टैगलाइन थी।

अभियोजन के मुताबिक, पोस्ट किया गए वीडियो में दिल्ली पुलिस का एक वरिष्ठ अधिकारी प्रदर्शन स्थल पर पुलिस कर्मियों को कुछ बताते नजर आ रहा है और उन्हें स्थिति से समुचित तरीके से निपटने के लिये प्रेरित कर रहा है।

राम द्वारा पोस्ट किये गए वीडियो के संदर्भ में न्यायाधीश ने कहा, “मैंने खुद अदालत में वीडियो देखा है जहां यह जाहिर हो रहा है कि दिल्ली पुलिस का एक वरिष्ठ अधिकारी बेहद आक्रोशित सुर में नारे लगा रहा है और दिल्ली पुलिस के कर्मियों का एक समूह उसके बगल में खड़ा है।”

उन्होंने कहा, “पृष्ठभूमि में आ रही आवाजें भी माहौल के बेहद गरम होने का संकेत देती हैं। जांच अधिकारी द्वारा यह बताया गया है कि आरोपियों ने यह पोस्ट खुद नहीं लिखीं हैं बल्कि उन्होंने सिर्फ इसे अग्रेषित किया है।”

अदालत ने दोनों आरोपी व्यक्तियों को 50 हजार की जमानत और इतनी ही रकम के दो मुचलकों पर जमानत देते हुए कहा कि पुलिस ने अब उन्हें हिरासत में लेकर पूछताछ की आवश्यकता जाहिर नहीं की है।

अदालत ने दोनों आरोपियों को जांच अधिकारी द्वारा आगे की जांच के लिये बुलाए जाने पर पेश होने का निर्देश भी दिया। अदालत ने उनसे जांच को बाधित करने या उसे टालने अथवा मौजूदा आरोपों जैसे ही किसी दूसरे कृत्य में शामिल नहीं होने को लेकर भी आगाह किया।

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Web Title: Peasant demonstrations: Cannot impose sedition law to silence dissidents: court

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