श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में श्री माथुर चतुर्वेद परिषद के फैसले से असहमत संरक्षक ने त्यागपत्र दिया

By भाषा | Updated: November 13, 2020 01:11 IST2020-11-13T01:11:14+5:302020-11-13T01:11:14+5:30

Patron resigned disagreeing with the decision of Shri Mathur Chaturved Church in Sri Krishna Janmabhoomi case | श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में श्री माथुर चतुर्वेद परिषद के फैसले से असहमत संरक्षक ने त्यागपत्र दिया

श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में श्री माथुर चतुर्वेद परिषद के फैसले से असहमत संरक्षक ने त्यागपत्र दिया

मथुरा, 12नवम्बर श्री माथुर चतुर्वेद परिषद के संरक्षक गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी ने श्रीकृष्ण विराजमान की ओर से जन्मभूमि के मालिकाना हक को लेकर जिला जज की अदालत में चल रहे वाद में पक्षकार बनने के लिए परिषद द्वारा प्रार्थना पत्र दिए जाने पर असहमति जताते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।

अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा व माथुर चतुर्वेद परिषद ने बुधवार को जिला जज की अदालत में प्रार्थना पत्र देकर श्रीकृष्ण विराजमान के वाद में पक्षकार बनने की अपील की थी। दाखिल किए गए प्रार्थना पत्र में 1991 में 15 अगस्त 1947 से लागू किए गए उपासना स्थल (विशेष प्राविधान) अधिनियम 1991 का भी हवाला दिया गया है। जबकि शाही मस्जिद ईदगाह करीब साढ़े तीन सौ साल से कायम चली आ रही है।

परिषद की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि 17वीं सदी में निर्मित शाही ईदगाह मस्जिद को श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर से नहीं हटाया जाना चाहिए और चतुर्वेदी संगठन के इस फैसले से इत्तेफाक नहीं रखते हैं।

अदालत में दायर याचिकाओं में कहा गया है कि जब देश के अन्य मंदिरों के समान ही मथुरा का श्रीकृष्ण जन्मभूमि स्थित मंदिर व शाही ईदगाह भी उक्त अधिनियम से बाधित है, इसीलिए इस मामले में वाद दायर ही नहीं किया जा सकता है। वाद इन्हीं आधारों पर भी इसी स्तर पर निरस्त होने योग्य है।

श्री माथुर चतुर्वेद परिषद के संबंधित प्रार्थना पत्र पर असहमति जताते हुए संरक्षक चतुर्वेदी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। श्रीकृष्ण विराजमान के वाद में श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संस्थान प्रतिवादी है और चतुर्वेदी संस्थान के सदस्य हैं।

चतुर्वेदी का कहना है कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान ईदगाह वाली जमीन का एकमात्र मालिक है। सभी सरकारी अभिलेखों में मालिक का नाम श्रीकृष्ण जन्मस्थान का ही दर्ज है। ईदगाह का कब्जा अवैध है, फिर भी सामाजिक संगठनों को इस तरह के विवाद में नहीं पड़ना चाहिए।

उनका यह भी कहना है कि मंदिर तो कहीं भी बन सकता है लेकिन जन्मस्थान तो एक होता है एक ही रहेगा, जबकि ईदगाह मंदिर के मलबे से बनाई गई थी।

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