पल्लेदारी अमानवीय गतिविधि, कामगारों की दशा सुधारने की जरूरत : केरल उच्च न्यायालय
By भाषा | Updated: December 14, 2021 16:55 IST2021-12-14T16:55:49+5:302021-12-14T16:55:49+5:30

पल्लेदारी अमानवीय गतिविधि, कामगारों की दशा सुधारने की जरूरत : केरल उच्च न्यायालय
कोच्चि, 14 दिसंबर केरल उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि व्यक्ति द्वारा सिर या शरीर के अन्य हिस्सों पर बोझ उठाना ‘‘अमानवीय गतिविधि’’ है और इससे संबंधित कानून - पल्लेदार अधिनियम- जो इसकी अनुमति देता है इतिहास का अवशेष है। अदालत ने इसके साथ ही राज्य को निर्देश दिया कि वह ऐसे कामगारों की दशा सुधारने के लिए कदम उठाए।
अदालत ने कहा, ‘‘पल्लेदारी को खत्म करना होगा, बोझ नहीं। यह (पल्लेदारी) अमानवीय गतिविधि है। हम अपने नागरिकों को कैसे इस यातना को सहने के लिए छोड़ सकते हैं।’’
न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रण ने कहा कि पल्लेदारों को मशीनों से सुसज्जित करना चाहिए और बोझ उठाने में इस्तेमाल इन उपकरणों के परिचालन के लिए उन्हें प्रशिक्षित करना चाहिए। साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि अदालत की मंशा ऐसे व्यक्तियों के जीविकोपार्जन को उनसे छीनने की नहीं है।
अदालत ने कहा कि पल्लेदार गरीब लोग हैं जिनके पास रोजगार का विकल्प नहीं है और उनकी दशा का दोहन कई राजनीतिक दलों सहित कई निहित स्वार्थों द्वारा अपने हितों के लिए की जाती है।
अदालत ने कहा कि यह क्षेत्र असंगठित है और चूंकि वे प्रशिक्षित नहीं है, निहित स्वार्थ रखने वाले चाहते हैं कि यह सब ऐसे ही चलता रहे। अदालत ने कहा, ‘‘क्या कोई सभ्य समाज इस पर सहमत होगा? हम संभवत: उतने सभ्य नहीं है जितना हम समझते हैं। हम इस गतिविधि को कायम रख रहे हैं एवं और मजबूत कर रहे हैं। कानून भी इस गतिविधि को पुख्ता कर रहा है। इन लोगों का पुनर्वास होना चाहिए, न कि काम से बाहर करना चाहिए। यह कानून 50 साल पुराना है और हालात बदल गए हैं। यह समय है कि सरकार उनकी दशा सुधारने के बारे में सोचे।
अदालत ने कहा कि केरल में सिर पर मैला ढोले पर रोक है लेकिन पल्लेदारी को तय कार्य माना लिया गया है।
उल्लेखनीय है कि अदालत ने यह टिप्पणी एक होटल मालिक की याचिका पर सुनवाई करते हुए की जिसमें उसने अपना कारोबार चलाने के लिए पुलिस सुरक्षा देने और कुछ लोगों को कथित तौर पर मनमाना वेतन मांगने से रोकने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।
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