Jayant Narlikar Passed Away: पद्म विभूषण सम्मानित खगोल वैज्ञानिक जयंत नार्लीकर का निधन, 87 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: May 20, 2025 12:01 IST2025-05-20T11:59:01+5:302025-05-20T12:01:05+5:30

Jayant Narlikar Passed Away: पारिवारिक सूत्रों के अनुसार, डॉ. नारलीकर ने देर रात नींद में ही आखिरी सांस ली

Padma Vibhushan awarded astronomer Jayant Narlikar passed away at the age of 87 | Jayant Narlikar Passed Away: पद्म विभूषण सम्मानित खगोल वैज्ञानिक जयंत नार्लीकर का निधन, 87 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

Jayant Narlikar Passed Away: पद्म विभूषण सम्मानित खगोल वैज्ञानिक जयंत नार्लीकर का निधन, 87 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

Jayant Narlikar Passed Away: प्रख्यात खगोल वैज्ञानिक, विज्ञान संचारक और पद्म विभूषण से सम्मानित डॉ. जयंत विष्णु नारलीकर का मंगलवार को पुणे में निधन हो गया। वह 87 वर्ष के थे। उनके परिवार के सूत्रों ने यह जानकारी दी। भारतीय विज्ञान जगत की जानी-मानी हस्ती डॉ. नारलीकर को व्यापक रूप से ब्रह्मांड विज्ञान में उनके अग्रणी योगदान, विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के उनके प्रयासों और देश में प्रमुख अनुसंधान संस्थानों की स्थापना के लिए जाना जाता था।

पारिवारिक सूत्रों के अनुसार, डॉ. नारलीकर ने देर रात नींद में ही आखिरी सांस ली और मंगलवार सुबह अपनी आंख नहीं खोलीं। हाल में पुणे के एक अस्पताल में उनके कूल्हे की सर्जरी हुई थी। उनके परिवार में तीन बेटियां हैं। 19 जुलाई 1938 को जन्मे डॉ. नारलीकर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) परिसर में ही पूरी की, जहां उनके पिता विष्णु वासुदेव नारलीकर प्रोफेसर और गणित विभाग के प्रमुख थे।

इसके बाद वह उच्च अध्ययन के लिए कैम्ब्रिज चले गए, जहां उन्हें ‘मैथेमैटिकल ट्रिपोस’ में ‘रैंगलर’ और ‘टायसन’ पदक मिला। वह भारत लौटकर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (1972-1989) से जुड़ गए, जहां उनके प्रभार में सैद्धांतिक खगोल भौतिकी समूह का विस्तार हुआ और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त हुई।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने 1988 में प्रस्तावित अंतर-विश्वविद्यालय खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी केंद्र (आईयूसीएए) की स्थापना के लिए डॉ. नारलीकर को इसके संस्थापक निदेशक के रूप में आमंत्रित किया। वर्ष 2003 में अपनी सेवानिवृत्ति तक वह आईयूसीएए के निदेशक रहे। उनके निर्देशन में आईयूसीएए ने खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी में शिक्षण एवं अनुसंधान के क्षेत्र में उत्कृष्टता केंद्र के रूप में दुनिया भर में ख्याति प्राप्त की। वह आईयूसीएए में ‘एमेरिटस प्रोफेसर’ थे।

वर्ष 2012 में ‘थर्ड वर्ल्ड एकेडमी ऑफ साइंसेज’ ने विज्ञान में उत्कृष्टता के उद्देश्य से एक केंद्र स्थापित करने के लिए डॉ. नारलीकर को अपने पुरस्कार से सम्मानित किया। अपने वैज्ञानिक अनुसंधान के अलावा डॉ. नारलीकर अपनी पुस्तकों, लेखों और रेडियो/टीवी कार्यक्रमों के माध्यम से एक विज्ञान संचारक के रूप में भी प्रसिद्ध हुए। वह अपनी विज्ञान आधारित कहानियों के लिए भी जाने जाते हैं।

इन सभी प्रयासों के लिए 1996 में यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) ने उनके लोकप्रिय विज्ञान कार्यों के लिए उन्हें कलिंग पुरस्कार से सम्मानित किया था। डॉ. नारलीकर को 1965 में 26 वर्ष की छोटी उम्र में ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया था।

वर्ष 2004 में उन्हें ‘पद्मविभूषण’ से सम्मानित किया गया और महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें 2011 में राज्य के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘महाराष्ट्र भूषण’ से सम्मानित किया। भारत की प्रमुख साहित्यिक संस्था साहित्य अकादमी ने 2014 में क्षेत्रीय भाषा (मराठी) लेखन में अपने सर्वोच्च पुरस्कार के लिए उनकी आत्मकथा का चयन किया। 

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