नयी दिल्ली, 24 सितंबर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार को कहा कि धान की पराली अब कोई समस्या नहीं है और उन्होंने पड़ोसी राज्यों से फसलों के अवशेष का प्रबंधन करने के लिए अपने किसानों को पूसा द्वारा बनाए गए जैव अपघटक उपलब्ध कराने का अनुरोध किया।
उन्होंने यह भी कहा कि इस सूक्ष्मजीवी घोल का दिल्ली में 844 किसानों की 4,300 एकड़ से अधिक भूमि पर छिड़काव किया जाएगा। पिछले साल 310 किसानों ने 1,935 एकड़ भूमि पर इसका इस्तेमाल किया था। यह घोल पराली को खाद में बदल सकता है।
केजरीवाल ने दक्षिण पश्चिम दिल्ली के खरखड़ी नहर गांव में पूसा जैव अपघटक की तैयारियों की शुरूआत करते हुए कहा, ‘‘धान की पराली अब कोई समस्या नहीं है...हम सभी राज्यों से अपने किसानों को यह सस्ता घोल उपलब्ध कराने की अपील करते हैं, जैसा दिल्ली ने किया है।’’
जैव अपघटक का ऑडिट करने वाली केंद्र सरकार की एजेंसी डब्ल्यूएपीसीओएस ने पाया कि जिन जगहों पर पिछले वर्ष इनका इस्तेमाल किया गया वहां की मिट्टी में कार्बन एवं नाइट्रोजन तत्वों में काफी बढ़ोतरी हुई है।
उन्होंने कहा कि केंद्र के वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने भी जैव अपघटक की सफलता को माना है और पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश को इसका इस्तेमाल करने का निर्देश दिया।
अधिकारियों ने बताया कि उत्तर प्रदेश 10 लाख एकड़, पंजाब पांच लाख एकड़ और हरियाणा एक लाख एकड़ की भूमि पर जैव अपघटक का इस्तेमाल करेंगे। उन्होंने कहा कि धान की पराली के प्रबंधन के लिए अन्य महंगे विकल्पों की तुलना में जैव अपघटक की लागत प्रति एकड़ एक हजार रुपये से कम आती है।
पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि दिल्ली सरकार पांच अक्टूबर से खेतों में इस घोल का छिड़काव करना शुरू करेगी।
उन्होंने कहा, ‘‘अधिकतर पराली पंजाब, हरियाणा एवं पड़ोसी राज्यों में होती है। इसलिए हम कह रहे हैं कि सभी राज्य एकसाथ मिलकर पराली अपघटन के समाधान की दिशा में काम करें, अन्यथा समस्या का समाधान करना कठिन हो जाएगा।’’
पूसा इंस्टीट्यूट के जैव अपघटक प्रबंधन के नोडल अधिकारी इंद्रमणि मिश्रा ने कहा कि जैव अपघटक का कैप्सूल बनाने का लाइसेंस दस कंपनियों को दिया गया है।
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