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स्कूलों को वार्षिक शुल्क लेने की अनुमति संबंधी आदेश: अदालत ने लिखित दलील दाखिल करने को कहा

By भाषा | Updated: July 12, 2021 15:55 IST

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नयी दिल्ली, 12 जुलाई दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को दिल्ली सरकार और अन्य पक्षों को एकल न्यायाधीश के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर लिखित दलीलें दाखिल करने के लिए कहा, जिसमें निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को पिछले साल राष्ट्रीय राजधानी में लॉकडाउन समाप्त होने के बाद की अवधि के लिए विद्यार्थियों से वार्षिक और विकास शुल्क लेने की अनुमति दी गई थी।

सभी अधिवक्ताओं ने कहा कि मामले की अंतिम सुनवाई बुधवार को की जाये। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने मामले को 14 जुलाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया। पीठ ने कहा, ‘‘पक्षकार सुनवाई की अगली तारीख से पहले अपने लिखित दलीलें दाखिल कर सकते हैं। मामले को 14 जुलाई के लिए सूचीबद्ध किया जाता है।’’

दिल्ली उच्च न्यायालय ने गत सात जून को 450 निजी स्कूलों का प्रतिनिधित्व करने वाले ‘ऐक्शन कमेटी अनएडेड रिकॉग्नाइज्ड प्राइवेट स्कूल्स’ को नोटिस जारी किया था और उससे एकल न्यायाधीश के 31 मई के आदेश के खिलाफ आम आदमी पार्टी (आप) सरकार और छात्रों की अपीलों पर जवाब मांगा था। हालांकि, खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।

अदालत ने ऐक्शन कमेटी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान और वकील कमल गुप्ता का बयान दर्ज किया था कि अगली सुनवाई की तारीख तक वे विद्यार्थियों से फीस लेने के संबंध में वर्तमान सिद्धांतों का पालन करते रहेंगे। दिल्ली सरकार, विद्यार्थियों और ‘जस्टिस फॉर ऑल’ नामक एनजीओ ने दलील दी थी कि एकल न्यायाधीश का फैसला गलत तथ्यों पर आधारित था।

एकल पीठ ने 31 मई के अपने आदेश में दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय द्वारा अप्रैल और अगस्त 2020 में जारी दो कार्यालय आदेशों को निरस्त कर दिया था, जो वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क लेने पर रोक लगाते हैं तथा स्थगित करते हैं। अदालत ने कहा था कि वे ‘अवैध’ हैं और दिल्ली स्कूल शिक्षा (डीएसई) अधिनियम एवं नियमों के तहत शिक्षा निदेशालय को दी गयी शक्तियों से परे हैं।

एकल न्यायाधीश ने 31 मई के अपने आदेश में कहा था कि दिल्ली सरकार के पास निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों द्वारा लिए जाने वाले वार्षिक और विकास शुल्क को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि यह अनुचित रूप से उनके कामकाज को सीमित करेगा।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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