One Nation-One Election: वन नेशन-वन इलेक्शन पर समिति, लोकसभा और विधानसभा चुनाव होंगे एक साथ!, जानें इसका इतिहास
By सतीश कुमार सिंह | Updated: September 1, 2023 12:35 IST2023-09-01T12:33:58+5:302023-09-01T12:35:18+5:30
One Nation-One Election: सरकार ने ‘‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’’ की संभावनाएं तलाशने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है।

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One Nation-One Election: ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को लेकर पक्ष और विपक्ष आमने-सामने है। मोदी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है। सरकार इसके लिए संसद विशेष सत्र का आयोजन कर रही है। सरकार द्वारा 18 सितंबर से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने के एक दिन बाद यह कदम सामने आया है।
'एक राष्ट्र, एक चुनाव' लागू होता है तो इसका मतलब है कि पूरे भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे और मतदान भी एक ही समय पर होगा। 1967 तक राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के लिए एक साथ चुनाव होते रहे थे। हालाँकि, 1968 और 1969 में कुछ विधानसभाओं को समय से पहले भंग कर दिया गया और 1970 में लोकसभा को भंग कर दिया गया।
नवंबर-दिसंबर में पांच राज्यों- मिजोरम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और इसके बाद अगले साल मई-जून में लोकसभा चुनाव होने हैं। सरकार के इस कदम से आम चुनाव एवं कुछ राज्यों के चुनाव को आगे बढ़ाने की संभावना है, जो लोकसभा चुनावों के बाद में या साथ होने हैं।
आंध्र प्रदेश, ओडिशा, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ होने हैं। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी और ओडिशा में उनके समकक्ष नवीन पटनायक के साथ भाजपा के अच्छे संबंध हैं, भले ही वे औपचारिक रूप से इसके गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं।
अरुणाचल प्रदेश में भाजपा सत्ता में है जबकि सिक्किम में सहयोगी दल का शासन है। दो राज्यों - महाराष्ट्र और हरियाणा में भाजपा सहयोगियों के साथ सत्ता में है और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो)-कांग्रेस शासित झारखंड में लोकसभा चुनाव के बाद चुनाव होने वाले हैं।
इससे लोकसभा चुनाव का समय आगे बढ़ने की संभावनाओं के द्वार खुल गए हैं ताकि इन्हें कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के साथ ही संपन्न कराया जा सके। सूत्रों ने शुक्रवार को बताया कि कोविंद इस कवायद और तंत्र की व्यवहार्यता का पता लगाएंगे कि देश में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ कैसे कराये जा सकते हैं।
देश में 1967 तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव एकसाथ हुए थे। उन्होंने बताया कि उम्मीद है कि कोविंद इस संबंध में विशेषज्ञों से बात करेंगे और विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ विचार विमर्श करेंगे। सरकार द्वारा 18 सितंबर से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने के एक दिन बाद यह कदम सामने आया है।
सरकार ने हालांकि संसद के विशेष सत्र का एजेंडा घोषित नहीं किया है। वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगभग निरंतर चुनाव चक्र से वित्तीय बोझ पड़ने और चुनाव के दौरान विकास कार्य को नुकसान पहुंचने का हवाला देते हुए लोकसभा चुनाव और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के विचार पर जोर देते रहे हैं, जिनमें स्थानीय निकायों के चुनाव भी शामिल हैं।
कोविंद ने भी मोदी के विचारों को दोहराया और 2017 में राष्ट्रपति बनने के बाद इसका समर्थन किया था। वर्ष 2018 में संसद को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था, ‘‘लगातार चुनाव से न सिर्फ मानव संसाधन पर अत्यधिक बोझ पड़ता है बल्कि चुनाव आचार संहिता लागू हो जाने से इन विकास कार्यों को पूरा करने की प्रक्रिया भी बाधित होती है।
मोदी की तरह ही उन्होंने इस विषय पर निरंतर चर्चा करने का आह्वान किया था और इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों के एक मत पर पहुंचने की उम्मीद जताई थी। मोदी के नेतृत्व वाली सरकार का दूसरा कार्यकाल खत्म होने वाला है और पार्टी के शीर्ष स्तर की राय है कि वह इस मुद्दे को अब और लंबा नहीं खिंचने दे सकती है और इस विषय पर वर्षों तक बहस करने के बाद इसकी उद्देश्यपूर्णता को रेखांकित करने के लिए निर्णायक रूप से आगे बढ़ने की जरूरत है।
पार्टी के नेताओं का मानना है कि मोदी के नेतृत्व में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) हमेशा लोकप्रिय समर्थन जुटाने के लिए बड़े विषयों के विचारों से प्रेरित रहती है और यह मुद्दा राजनीतिक रूप से भी पार्टी के लिए अनुकूल होगा और विपक्ष को चौंकाने वाला होगा।
(इनपुट एजेंसी)