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One Nation, One Election: समिति ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ मुद्दे पर 62 पार्टियों से किया संपर्क, 32 ने किया समर्थन, 15 ने कहा ना, देखें लिस्ट

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: March 14, 2024 16:10 IST

One Nation, One Election: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने समर्थन किया।

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ठळक मुद्दे47 राजनीतिक दलों से प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं।विचार पर अमल करने की पैरवी भी की।क्षेत्रीय दलों को हाशिए पर धकेल सकता है।

One Nation, One Election: पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के मुद्दे पर 62 पार्टियों से संपर्क किया था और इस पर जवाब देने वाले 47 राजनीतिक दलों में से 32 ने एक साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन किया, जबकि 15 दलों ने इसका विरोध किया। समिति ने अपनी रिपोर्ट बृहस्पतिवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी। इस रिपोर्ट के अनुसार, कुल 15 पार्टियों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। राष्ट्रीय दलों में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने देश में एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव का विरोध किया, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने इसका समर्थन किया। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘47 राजनीतिक दलों से प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं।

15 राजनीतिक दलों को छोड़कर, शेष 32 राजनीतिक दलों ने न केवल एक साथ चुनाव कराए जाने की व्यवस्था का समर्थन किया, बल्कि संसाधनों को बचाने, सामाजिक सद्भाव की रक्षा करने और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए इस विचार पर अमल करने की पैरवी भी की।"

समिति की रिपोर्ट के अनुसार, जिन राजनीतिक दलों ने एक साथ चुनाव कराए जाने का विरोध किया, उन्होंने आशंका जताई कि इसे अपनाने से संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन हो सकता है, यह अलोकतांत्रिक और संघवाद विरोधी हो सकता है, क्षेत्रीय दलों को हाशिए पर धकेल सकता है।

राष्ट्रीय दलों के प्रभुत्व को प्रोत्साहित कर सकता है और इसका परिणाम देश में शासन की राष्ट्रपति प्रणाली के तौर पर सामने आ सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आप, कांग्रेस और माकपा ने प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह लोकतंत्र और संविधान की बुनियादी संरचना को कमजोर करता है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक, बसपा ने स्पष्ट रूप से इसका विरोध नहीं किया, लेकिन देश की बड़ी क्षेत्रीय सीमा और जनसंख्या के संबंध में उन चिंताओं को उजागर किया, जो इसके क्रियान्वयन को चुनौतीपूर्ण बना सकते हैं। समाजवादी पार्टी ने अपने जवाब में कहा कि यदि एक साथ चुनाव कराए जाते हैं, तो राज्य-स्तरीय पार्टियां चुनावी रणनीति और खर्च में राष्ट्रीय पार्टियों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगी।

जिससे इन दो समूहों के बीच कलह बढ़ जाएगी। क्षेत्रीय पार्टियों में ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ), तृणमूल कांग्रेस, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), द्रमुक, नागा पीपुल्स फ्रंट और समाजवादी पार्टी ने एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव का विरोध किया।

अन्नाद्रमुक, ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन, अपना दल (सोनेलाल), असम गण परिषद, बीजू जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), मिजो नेशनल फ्रंट, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी, शिव सेना, जनता दल (यूनाइटेड), सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, शिरोमणि अकाली दल और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल ने प्रस्ताव का समर्थन किया।

भारत राष्ट्र समिति, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, जम्मू- कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस, जनता दल (सेक्युलर), झारखंड मुक्ति मोर्चा, केरल कांग्रेस (एम), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार), राष्ट्रीय जनता दल, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट, तेलुगु देसम पार्टी और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

अन्य दलों में भाकपा (माले) लिबरेशन, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया ने इसका विरोध किया। राष्ट्रीय लोक जनता दल, भारतीय समाज पार्टी, गोरखा नेशनल लिबरल फ्रंट, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा, राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार) भी विरोध करने वाले राजनीतिक दलों में शामिल हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2019 में एक सर्वदलीय बैठक हुई थी जिसमें शामिल 19 दलों में से 16 ने एक साथ चुनाव के विचार का समर्थन किया था, जबकि सिर्फ तीन दलों ने विरोध किया था।

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