आपातकाल को ‘‘पूरी तरह असंवैधानिक’’ घोषित करने के लिये याचिका पर न्यायालय का केन्द्र को नोटिस

By भाषा | Updated: December 14, 2020 16:39 IST2020-12-14T16:39:55+5:302020-12-14T16:39:55+5:30

Notice to Court Center on petition to declare Emergency "completely unconstitutional" | आपातकाल को ‘‘पूरी तरह असंवैधानिक’’ घोषित करने के लिये याचिका पर न्यायालय का केन्द्र को नोटिस

आपातकाल को ‘‘पूरी तरह असंवैधानिक’’ घोषित करने के लिये याचिका पर न्यायालय का केन्द्र को नोटिस

नयी दिल्ली, 14 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने 1975 में देश में लागू किये गये आपातकाल को ‘‘पूरी तरह असंवैधानिक’’ घोषित करने के लिये दायर याचिका पर सोमवार को केंद्र को नोटिस जारी किया।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने 94 वर्षीय महिला की याचिका पर सुनवाई के लिये सहमति व्यक्त करते हुये कहा कि वह इस पहलू पर भी विचार करेगी कि क्या 45 साल बाद आपातकाल लागू करने की वैधानिकता पर विचार करना ‘‘व्यावहारिक या आवश्यक’’ है।

पीठ ने इस याचिका पर सुनवाई के दौरान टिप्पणी की, ‘‘हमारे सामने परेशानी है। आपातकाल कुछ ऐसा है, जो नहीं होना चाहिए था।’’ पीठ सोच रही थी कि इतने लंबे समय बाद वह किस तरह की राहत दे सकती है।

वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने वयोवृद्ध वीरा सरीन की ओर से बहस करते हुये कहा कि आपातकाल ‘छल’ था और यह संविधान पर ‘सबसे बड़ा हमला’ था क्योंकि महीनों तक मौलिक अधिकार निलंबित कर दिये गये थे।

देश में 25 जून, 1975 की आधी रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी। यह आपातकाल 1977 में खत्म हुआ था।

साल्वे ने कहा कि याचिकाकर्ता ने आपातकाल के दौरान बहुत दुख झेले हैं और न्यायालय को देखना चाहिए कि उस दौर में इस वृद्धा के साथ किस तरह का व्यवहार हुआ।

साल्वे ने कहा, ‘‘दुनिया में, युद्ध अपराध के लिये सजा दी जा रही है। लैंगिक अपराधों के लिये सजा हो रही है। इतिहास को खुद को दोहराने की अनुमति नहीं दी जा सकती। महीनों तक नागरिकों के अधिकार निलंबित रखे गये। यह संविधान के साथ छल था।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह हमारे संविधान पर सबसे बड़ा हमला था। यह ऐसा मामला है जिस पर हमारी पीढ़ी को गौर करना होगा। इस पर शीर्ष अदालत को फैसला करने की आवश्यकता है। यह राजनीतिक बहस नहीं है। हम सब जानते हैं कि जेलों में क्या हुआ। हो सकता है कि राहत के लिये हमने बहुत देर कर दी हो लेकिन किसी न किसी को तो यह बताना ही होगा कि जो कुछ किया गया था वह गलत था।’’

साल्वे ने कहा कि यह मामला ‘काफी महत्वपूर्ण’ है क्योंकि देश ने देखा है कि आपातकाल के दौरान सिर्फ सत्ता का दुरूपयोग हुआ है।

वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान पीठ ने सवाल किया, ‘‘क्या न्यायालय इस प्रकरण पर विचार कर सकता है जो 45 साल पहले हुआ था। हम क्या राहत दे सकते हैं?’’

पीठ ने कहा, ‘‘हम मामले को बार-बार नहीं खोद सकते। वह व्यक्ति भी आज नहीं है।’’

साल्वे ने कहा कि राज्य में सांविधानिक मशीनरी विफल होने की स्थिति में संविधान के अनुच्छेद 356 से संबंधित प्रावधानों पर 1994 में एस आर बोम्मई प्रकरण में न्यायालय के फैसले के बाद यह सिद्धांत विकसित किया गया जो सरकार के गठन या अधिकारों के हनन के मामले में लागू किया जा सकता है।

उन्होंने कहा, ‘‘न्यायालय ने 45 साल बाद आदेश पारित किये हैं। पद के दुरूपयोग के मामले में विचार किया जा सकता है और जहां तक यह सवाल है कि इसमें क्या राहत दी जा सकती है तो एक दूसरा पहलू है।’’

वीरा सरीन ने याचिका में इस असंवैधानिक कृत्य में सक्रिय भूमिका निभाने वालों से 25 करोड़ रुपए का मुआवजा दिलाने का भी अनुरोध किया है।

याचिकाकर्ता वीरा सरीन ने अपनी याचिका में दावा किया है कि वह और उनके पति आपातकाल के दौरान तत्कालीन सरकार के प्राधिकारियों और अन्य की ज्यादतियों के शिकार हैं, जो 25 जून, 1975 को आधी रात से चंद मिनट पहले लागू की गयी थी।

सरीन ने याचिका में कहा है कि उनके पति का उस समय दिल्ली में स्वर्ण कलाकृतियों का कारोबार था लेकिन उन्हें तत्कालीन सरकारी प्राधिकारियों की मनमर्जी से अकारण ही जेल में डाले जाने के भय के कारण देश छोड़ना पड़ा था।

याचिका के अनुसार, याचिकाकर्ता के पति की बाद में मृत्यु हो गयी और उनके खिलाफ आपातकाल के दौरान शुरू की गयी कानूनी कार्यवाही का उन्हें सामना करना पड़ा था।

याचिका के अनुसार, आपातकाल की वेदना और उस दौरान हुयी बर्बादी का दंश उन्हें आज तक भुगतना पड़ रहा है। याचिकाकर्ता के अनुसार उनके परिवार को अपने अधिकारों और संपत्ति पर अधिकार के लिये 35 साल दर-दर भटकना पड़ा।

याचिका के अनुसार उस दौर में याचिकाकर्ता से उनके रिश्तेदारों और मित्रों ने भी मुंह मोड़ लिया क्योंकि उनके पति के खिलाफ गैरकानूनी कार्यवाही शुरू की गयी थी और अब वह अपने जीवनकाल में इस मानसिक अवसाद पर विराम लगाना चाहती हैं, जो अभी तक उनके दिमाग को झकझोर रहा है।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि अभी तक उनके आभूषण, कलाकृतियां, पेंटिंग, मूर्तियां और दूसरी कीमती चल सम्पत्तियां उनके परिवार को नहीं सौंपी गयी हैं और इसके लिये वह संबंधित प्राधिकारियों से मुआवजे की हकदार हैं।

याचिका में दिसंबर 2014 के दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश का भी जिक्र किया गया है जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता के पति के खिलाफ शुरू की गयी कार्रवाई किसी भी अधिकार क्षेत्र से परे थी।

याचिका में कहा गया है कि इस साल जुलाई में उच्च न्यायालय ने एक आदेश पारित करके सरकार द्वारा गैर कानूनी तरीके से उनकी अचल संपत्तियों को अपने कब्जे में लेने के लिये आंशिक मुआवजा दिलाया था।

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Web Title: Notice to Court Center on petition to declare Emergency "completely unconstitutional"

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