नयी दिल्ली, सात नवंबर जनवरी 2019 से दिल्ली में एक भी बंदर की नसबंदी नहीं की गई है। केंद्र ने उस समय ‘लेप्रोस्कोपिक’ नसबंदी के माध्यम से बंदरों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए शहर के वन विभाग को धन भी जारी किया था। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
वर्ष 2018 में तत्कालीन मुख्य वन्यजीव वार्डन ईश्वर सिंह ने राष्ट्रीय राजधानी में बंदरों की बढ़ती संख्या को नियंत्रित करने के लिए प्रजनन आयु वाले बंदरों की नसबंदी करने की तीन साल की योजना तैयार की थी। केंद्र ने पहले वर्ष में 8,000 बंदरों की नसबंदी के लिए जनवरी 2019 में वन विभाग को 5.43 करोड़ रुपये जारी करने को मंजूरी दी। ढाई साल बाद अधिकारियों का कहना है कि ‘‘दिल्ली में एक भी बंदर की नसबंदी नहीं की गई है।’’
वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘‘वन विभाग ने तीन बार निविदा आमंत्रित की थी लेकिन एक भी एजेंसी (बंदरों को पकड़ने और उनकी नसबंदी करने के लिए) आगे नहीं आई। कोविड-19 महामारी के दौरान बहुत कुछ नहीं किया जा सका। मुझे लगता है कि केंद्र को कोष वापस कर दिया गया है। अभी नसबंदी का कोई प्रस्ताव लंबित नहीं है।’’
वर्ष 2007 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने नगर निगमों को मानव बस्तियों से बंदरों को पकड़ने और उन्हें असोला अभयारण्य में स्थानांतरित करने के लिए कहा था। अदालत ने वन विभाग को बंदरों को भोजन उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था ताकि वे बाहर न निकलें।
अधिकारियों के अनुसार, वर्तमान में अभयारण्य में 25,000 से अधिक बंदर हैं और मानव बस्तियों में मुक्त घूमने वाले बंदरों की कोई गिनती नहीं हुई है। बंदरों के स्थानांतरण के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति की सदस्य सोन्या घोष ने कहा कि समिति की आखिरी बैठक महामारी से पहले हुई थी और तब से कुछ भी नहीं हुआ है।
अधिकारी ने कहा कि समिति की बैठक नवंबर के तीसरे सप्ताह में होनी है।
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