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हरियाणा, पंजाब, उप्र में गैर-बासमती धान की पराली इस साल 12 फीसदी घटने की संभावना: सीएक्यूएम

By भाषा | Updated: October 8, 2021 20:27 IST

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नयी दिल्ली, आठ अक्टूबर केंद्रीय वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने शुक्रवार को कहा कि हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में गैर-बासमती किस्मों से धान की पराली की मात्रा पिछले साल की तुलना में 12.42 प्रतिशत कम होने की संभावना है।

किसान गैर-बासमती धान की पराली को जलाते हैं क्योंकि इसमें सिलिका की मात्रा होने के कारण इसे चारे के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

आयोग ने एक बयान में कहा, ‘‘गैर-बासमती किस्म से धान की पराली का निर्माण कम होने की उम्मीद है। विशेष रूप से गैर-बासमती किस्म की फसलों से धान की पराली की मात्रा 2020 में पंजाब में 1.782 करोड़ टन से घटकर 2021 में 1.607 करोड़ टन और हरियाणा में 2020 में 35 लाख टन से घटकर 2021 में 29 लाख टन होने की उम्मीद है।

इसमें कहा गया है कि गैर-बासमती किस्म की फसलों से धान की पराली को जलाना प्रमुख चिंता का विषय है।

इसमें कहा गया है, ‘ हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के आठ जिलों में धान का कुल रकबा चालू वर्ष के दौरान पिछले वर्ष की तुलना में 7.72 प्रतिशत कम हो गया है। इसी प्रकार, गैर-बासमती किस्म से धान की पराली की कुल मात्रा पिछले वर्ष की तुलना में चालू वर्ष के दौरान 12.42 प्रतिशत कम होने की संभावना है।’’

केन्‍द्र सरकार और राज्य सरकारें फसलों में विविधता लाने के साथ-साथ धान की पूसा-44 किस्म के उपयोग को कम करने के उपाय कर रही हैं।

आयोग ने कहा कि फसल विविधीकरण और पूसा-44 किस्म के स्‍थान पर कम अवधि तथा अधिक उपज देने वाली किस्में पराली जलाने के मामले में नियंत्रण हेतु रूपरेखा और कार्य योजना का हिस्सा हैं।

आयोग ने कहा, ‘‘इस वर्ष पंजाब में धान की पराली की कुल मात्रा 2020 में 2.005 करोड़ से घटकर 1.874 करोड़ होने, हरियाणा में 2020 में 76 लाख से घटकर 2021 में 68 लाख होने और उत्तर प्रदेश के आठ एनसीआर जिलों में 2020 के 7.5 लाख से कम होकर 2021 में 6.7 लाख होने की संभावना है।’’

आयोग ने पहले राज्य सरकारों को फसलों की कम अवधि वाली और जल्दी पकने वाली किस्मों को बढ़ावा देने का निर्देश दिया था क्योंकि उनसे कुशलता से निपटा जा सकता है।

पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच धान की कटाई के मौसम के दौरान ध्यान खींचते हैं क्योंकि किसानों ने गेहूं और आलू की खेती से पहले पराली को जलाते हैं।

यह दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण में खतरनाक वृद्धि के मुख्य कारणों में से एक है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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