RSS प्रमुख मोहन भागवत ने किया एफडीआई का समर्थन, कहा-अपनी शर्तों पर व्यापार को स्वदेशी कहते हैं
By भाषा | Published: October 9, 2019 07:54 AM2019-10-09T07:54:24+5:302019-10-09T08:20:57+5:30
RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि दूसरे देशों के साथ अपनी शर्तों पर व्यापार को स्वदेशी कहते हैं.
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने विजयादशमी के मौके पर कहा कि ”तथाकथित” अर्थिक मंदी के बारे में ”बहुत अधिक चर्चा” करने की जरूरत नहीं है क्योंकि इससे कारोबारजगत तथा लोग चिंतित होते हैं। साथ ही आर्थिक गतिविधियों में कमी आती है। उन्होंने यह भी कहा कि 'स्वदेशी' पर आरएसएस के जोर का मतलब आत्मनिर्भरता है, न कि आर्थिक अलगाव। भागवत ने कहा कि सरकार स्थितियों में सुधार के उपाय कर रही है और हमें विश्वास रखना चाहिए।
भागवत ने कहा, ”देश बढ़ रहा है। लेकिन विश्व अर्थव्यवस्था में एक चक्र चलता है, जब कुछ कठिनाई आती है तो विकास धीमा हो जाता है। तब इसे सुस्ती कहते हैं।” उन्होंने कहा, ”एक अर्थशास्त्री ने मुझसे कहा कि आप इसे मंदी तभी कह सकते हैं जबकि आपकी विकास दर शून्य हो। लेकिन हमारी विकास दर पांच प्रतिशत के करीब है। कोई इसे लेकर चिंता जता सकता है, लेकिन इस पर चर्चा करने की जरूरत नहीं है।”
उन्होंने कहा, ”इस पर चर्चा से एक ऐसे परिवेश का निर्माण होता है, जो गतिविधियों को प्रभावित करता है। तथाकथित मंदी के बारे में बहुत अधिक चर्चा से उद्योग एवं व्यापार में लोगों को लगने लगता है कि अर्थव्यवस्था में सच में मंदी आ रही है और वे अपने कदमों को लेकर अधिक सतर्क हो जाते हैं।”
उन्होंने कहा, ”सरकार ने इस विषय पर संवेदनशीलता दिखाई है और कुछ कदम उठाए हैं।” संघ प्रमुख ने कहा कि सरकार को अमेरिका और चीन के बीच व्यापार यु्द्ध जैसे कुछ बाहरी कारणों का सामना भी करना पड़ा है। उन्होंने कहा, ”हमें अपनी सरकार पर भरोसा करने की जरूरत है। हमने कई कदम उठाए हैं, आने वाले दिनों में कुछ सकारात्मक असर होंगे।”
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के बारे में भागवत ने कहा आरएसएस स्वदेशी का समर्थन करता है। उन्होंने साथ ही जोड़ा, “कुछ लोग सोचते हैं कि स्वदेशी का अर्थ है कि बाकी दुनिया के साथ संबंध तोड़ लेना। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है।” उन्होंने कहा, “जो चीज मैं घर में बना सकता हूं, उसे बाजार से नहीं खरीदूंगा। अगर मुझे इसे खरीदना ही है तो मुझे स्थानीय बाजार को प्राथमिकता देनी चाहिए और स्थानीय बाजार और उनके रोजगार को संरक्षण देना चाहिए... दूसरे देशों के साथ अपनी शर्तों पर व्यापार को स्वदेशी कहते हैं।”