नयी दिल्ली, 22 दिसंबर केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने कहा है कि राजनीतिक दलों को चंदा देनों वालों के विवरण का खुलासा करने में कोई जनहित नहीं है। इसके साथ ही उसने विवरण सार्वजनिक करने की मांग संबंधी एक याचिका को खारिज कर दिया।
आयोग ने भारतीय स्टेट बैंक की उस दलील को बरकरार रखा कि पुणे स्थित आरटीआई कार्यकर्ता विहार धुर्वे द्वारा मांगी गई जानकारी व्यक्तिगत प्रकृति की है।
सूत्रों ने कहा कि धुर्वे ने चुनावी बॉन्ड बेचने के लिये निर्धारित भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की शाखाओं के बहीखातों से इन बॉन्ड को खरीदने वालों और इन्हें प्राप्त करने वालों की जानकारी का विवरण मांगा था।
एसबीआई द्वारा जानकारी दिए जाने से इनकार करने के बाद धुर्वे ने आयोग का रुख किया, जहां उन्होंने दलील दी कि एसबीआई को जनहित को आगे रखना चाहिए न कि राजनीतिक दलों के हितों को।
उन्होंने कहा कि एसबीआई किसी राजनीतिक दल की प्रत्ययी क्षमता में नहीं थी इसलिये उसका कोई वैधानिक दायित्व नहीं है कि वह किसी सार्वजनिक या निजी क्षेत्र के बैंक के लाभ को अधिकतम करे, इसलिये उनके बीच “विश्वास” का कोई रिश्ता नहीं है।
धुर्वे ने कहा था पारदर्शिता और जवाबदेही के लिये इस जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए।
एसबीआई ने चुनावी बॉन्ड योजना, 2018 का हवाला देते हुए कहा कि बॉन्ड के खरीदारों की जानकारी गोपनीय रहनी चाहिए और किसी भी प्राधिकार से किसी भी उद्देश्य के लिये साझा नहीं की जाएगी।
धुर्वे की दलील को खारिज करते हुए सूचना आयुक्त सुरेश चंद्र ने कहा, “यहां दानदाता और दान प्राप्त करने वाले की निजता के अधिकार के संबंध में कोई व्यापक जनहित नहीं नजर आता।”
आयोग ने एसबीआई की दलील को बरकरार रखा।
धुर्वे ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि यह सीआईसी का ‘अतार्किक आदेश’ है क्योंकि इसमें चुनाव आयोग, भारतीय रिजर्व बैंक और विधि मंत्रालय की आपत्तियों का उल्लेख नहीं है। उन्होंने कहा कि छह राष्ट्रीय दलों को सूचना के अधिकार अधिनियम के दायरे में लाने वाला सीआईसी ही था।
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