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Nirbhaya Case: दोषी पवन गुप्ता की याचिका पर फूटा निर्भया की मां का गुस्सा, कहा-इसके लिए सरकार है जिम्मेदार

By स्वाति सिंह | Updated: January 20, 2020 09:56 IST

निर्भया गैंगरेप: दोषी पवन ने दावा किया है कि वारदात के वक्त उसकी उम्र 18 साल से कम थी और वह नाबालिग था। हालांकि, इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने उसकी इस दलील को खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट ने पवन के वकील पर 25 हजार का जुर्माना भी लगाया है।

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ठळक मुद्देनिर्भया गैंगरेप-हत्याकांड मामले में दोषी पवन कुमार गुप्ता की याचिका पर सुनवाई होने जा रही है इस पर निर्भया की मां आशा देवी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।

निर्भया गैंगरेप-हत्याकांड मामले में सोमवार को चारों दोषियों में से एक पवन कुमार गुप्ता की याचिका पर सुनवाई होने जा रही है। इस याचिका में दोषी पवन ने सुप्रीम कोर्ट में उच्च न्यायालय द्वारा उसके नाबालिग होने के दावे को खारिज किए जाने के फैसले को चुनौती दी है। इस पर निर्भया की मां आशा देवी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा है कि अपराधी जानबूझ कर केस को बढ़ाने के लिए ये सब कर रहे हैं और सब सिर्फ मुजरिमों की ही सुन रहे हैं।

इसके साथ ही निर्भया की मां ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि जब दोषी के नाबालिग होने वाले दावे को एक बार खारिज किया जा चुका है तो फिर बार-बार इसे क्यों बीच में लाया जा रहा है। कहीं ना कहीं सरकार भी इसके लिए जिम्मेदार है। मुझे तो इस मामले में सरकार भी मुजरिम लग रही है, क्योंकि वह मामले को और लंबा खींच रही है। यह ड्रामा दूसरी बार हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश है कि आज (20 जनवरी 2020) एक गाइडलाइन जारी करे और सभी मुजरिमों को मर्सी और क्यूरेटिव पिटीशन एकसाथ दाखिल करने को कहे। सभी दोषियों को 1 फरवरी को ही फांसी दी जानी चाहिए।।'

बता दें कि दोषी पवन ने दावा किया है कि वारदात के वक्त उसकी उम्र 18 साल से कम थी और वह नाबालिग था। हालांकि, इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने उसकी इस दलील को खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट ने पवन के वकील पर 25 हजार का जुर्माना भी लगाया है।

वकील ए पी सिंह के जरिए दायर अपनी याचिका में, पवन ने दावा किया कि 16 दिसंबर, 2012 को हुए अपराध के दौरान वह नाबालिग था। पवन कुमार गुप्ता ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष मामले में मृत्युदंड के खिलाफ अपनी पुनर्विचार याचिका में नाबालिग होने का दावा किया था।

शीर्ष न्यायालय ने पिछले साल नौ जुलाई को उसकी याचिका खारिज कर दी थी। उच्च न्यायालय के समक्ष दायर याचिका में उसने दावा किया था कि उसके स्कूल प्रमाण-पत्र में उसकी जन्मतिथि आठ अक्टूबर, 1996 है। पवन ने इससे पहले निचली अदालत में भी अपने नाबालिग होने के दावे संबंधी याचिका दायर की थी जिसे पिछले साल 21 दिसंबर को खारिज कर दिया गया था।

न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ पवन कुमार गुप्ता की याचिका पर सुनवाई करेगी। गुप्ता ने अपनी याचिका में दावा किया था कि दिसंबर 2012 में अपराध के वक्त वह नाबालिग था, जिसे उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था। इसके बाद गुप्ता ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। इसके साथ ही उसने अधिकारियों को फांसी की सजा पर अमल रोकने का निर्देश देने की भी अपील है।

दोषियों को फांसी देने के लिये एक फरवरी की तारीख तय की गई है। उसने उच्च न्यायालय के 19 दिसंबर के आदेश को चुनौती दी है जिसमें गुप्ता के वकील को फर्जी दस्तावेज दायर करने और अदालत में पेश नहीं होने के लिए फटकार भी लगाई गई थी। दिल्ली की एक अदालत ने मामले के चार दोषियों - विनय शर्मा (26), मुकेश कुमार (32), अक्षय कुमार (31) और पवन (25) के खिलाफ एक फरवरी के लिए शुक्रवार को फिर से मृत्यु वारंट जारी किए। इससे पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मुकेश की दया याचिका खारिज कर दी। अन्य तीन दोषियों ने दया याचिका दायर करने के संवैधानिक उपाय का फिलहाल इस्तेमाल नहीं किया है।

शीर्ष अदालत ने 14 जनवरी को विनय और मुकेश की सुधारात्मक याचिकाएं खारिज कर दी थी। दो अन्य दोषियों - अक्षय और पवन ने शीर्ष अदालत में अब तक सुधारात्मक याचिकाएं दायर नहीं की है।

क्या है निर्भया गैंगरेप-हत्याकांड का पूरा मामला?दिल्ली में सात साल पहले 16 दिसंबर 2021 की रात को एक नाबालिग समेत छह लोगों ने चलती बस में 23 वर्षीय छात्रा से सामूहिक बलात्कार किया था और उसे बस से बाहर सड़क के किनारे फेंक दिया था। सिंगापुर में 29 दिसंबर 2012 को एक अस्पताल में पीड़िता की मौत हो गयी थी। मामले में एक दोषी राम सिंह ने यहां तिहाड़ जेल में कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी। आरोपियों में से एक नाबालिग था, जिसे किशोर न्याय बोर्ड ने दोषी ठहराया था और तीन साल की सजा के बाद उसे सुधार गृह से रिहा किया गया था। शीर्ष अदालत ने अपने 2017 के फैसले में दिल्ली उच्च न्यायालय और निचली अदालत द्वारा मामले में सुनाई गई फांसी की सजा को बरकरार रखा था।

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