नेहरू ने बौद्धिक वाद-विवाद में गांधी को भी नहीं बख्शा : किताब

By भाषा | Updated: November 21, 2021 18:49 IST2021-11-21T18:49:26+5:302021-11-21T18:49:26+5:30

Nehru didn't even spare Gandhi in intellectual debate: Book | नेहरू ने बौद्धिक वाद-विवाद में गांधी को भी नहीं बख्शा : किताब

नेहरू ने बौद्धिक वाद-विवाद में गांधी को भी नहीं बख्शा : किताब

नयी दिल्ली, 21 नवंबर जवाहरलाल नेहरू, अपने राजनीतिक विरोधियों और सहयोगियों से चर्चा में अक्सर अपनी बात को सही साबित करने के लिए लड़ते थे, इस प्रक्रिया में अपने विचारों को स्पष्ट और संरचित करते थे और इस बौद्धिक लड़ाई में उन्होंने महात्मा गांधी को भी नहीं बख्शा था।

यह बात एक नई किताब में कही गई है।

‘नेहरू: द डिबेस्ट्स दैट डिफाइंड इंडिया’ में त्रिपुरदमन सिंह और अदील हुसैन कहते हैं कि नेहरू ने उन राजनीतिक और बौद्धिक हस्तियों के साथ मंच साझा किया जो खुद को उनका प्रतिद्वंद्वी नहीं तो उनके बराबर और समकक्ष जरूर मानते थे और नेहरू ने सार्वजनिक क्षेत्र में उनके खिलाफ खुद को दृढ़ता से रखा।

उन्होंने दलील दी कि विचारों के इस क्षेत्र में नेहरू को न सिर्फ ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना, और हिंदू महासभा के श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे राजनीतिक विरोधियों का सामना करना पड़ा, बल्कि कांग्रेस नेता सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे सहयोगियों का भी सामना करना पड़ा। पटेल के साथ नेहरू की अक्सर असहमति रहती थी।

पुस्तक के मुताबिक, “ यह एक चुनौती थी जिसे नेहरू ने उत्साह से लिया। उनके साथ संवाद में, बहस में, चर्चा में, और उनको प्रभावित करने की कोशिश में नेहरू अपनी बात के लिए लड़े और इस प्रक्रिया में अपने विचार स्पष्ट और संरचित तरीके से रखे।”

किताब कहती है, “इस बौद्धिक लड़ाई में नेहरू ने महात्मा गांधी तक को नहीं बख्शा, हालांकि वह अपने मार्गदर्शक के साथ सार्वजनिक तौर पर खुले टकराव से बचे। ”

गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन को लेकर नेहरू से बहस के बाद एक बार वायसरॉय लॉर्ड लिनलिथगो से कहा था कि नेहरू के पास दिनों तक बहस करने की क्षमता है।

किताब कहती है, “ इस तरीके से दक्षिण एशिया के इतिहास के कुछ अति गंभीर सवालों पर चर्चा की गई है,जिनमें से कई अब भी अनसुलझे हैं और सामयिक दुनिया को परेशान कर रहे हैं। मिसाल के तौर पर मुस्लिम प्रतिनिधित्व, सार्वजनिक जीवन में धर्म की भूमिका, मौलिक अधिकारों की पवित्रता और उल्लंघन या पाकिस्तान और चीन के साथ भारत के संबंधों के बारे में नेहरू के प्रश्न।”

लेखकों के मुताबिक, इस तरह के वाद विवाद अक्सर भाषणों, पत्राचार व लेखों के जरिए सीधे और खुले तौर पर होते थे, वैचारिक असहमती रखी जाती थीं, राजनीतिक निष्ठाएं बनाई जाती थी और जनता की राय को सांचे में ढाला जाता था। ये बेहद अहम चर्चाएं राजनीतिक घटनाक्रमों से प्रभावित होती थी और स्थायी प्रभाव उत्पन्न करती थी।

इस किताब में नेहरू की चार अहम चर्चाओं को शामिल किया गया है। ये चर्चाएं नेहरू ने शायर व दार्शनिक मोहम्मद इकबाल, जिन्ना, पटेल और मुखर्जी के साथ की थी। यह किताब ‘हार्पर कॉलिन्स इंडिया’ ने प्रकाशित की है।

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Web Title: Nehru didn't even spare Gandhi in intellectual debate: Book

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