Navy Day: 1971 में पाकिस्तान ने INS विक्रांत को तबाह करने के लिए भेजी थी पनडुब्बी गाजी, भारतीय नौसेना ने ऐसे पलट दिया था पूरा प्लान
By स्वाति सिंह | Published: December 4, 2019 07:42 PM2019-12-04T19:42:08+5:302019-12-04T19:42:08+5:30
पाकिस्तान ने 71 का युद्ध शुरू होने से ठीक पहले पीएनएस गाजी को कराची से रवाना कर अरब सागर के रास्ते बंगाल की खाड़ी भेज दिया। पीएनएस गाज़ी वास्तव में एक अमरीकी पनडुब्बी थी, जिसका पुराना नाम यूएसएस डियाबलो था।
बात 1971 के जंग की है जब भारतीय सेनाएं ज़मीन और आसमान की लड़ाई में पाकिस्तान को धूल चटा रही थीं। तब पाकिस्तान ने बड़ी ही चालाकी से पानी में जंग की शुरूआत की। और उसने अपनी पनडुब्बी गाज़ी को समुद्र में उतार आईएनएस विक्रांत को निशाना बनाने की कोशिश की।तब भारत के पास एक भी पनडुब्बी नहीं थी, हालांकि यहां भी पाकिस्तान को मुहकी खानी पड़ी। मार्च 1961 को इंडियन नेवी को उसका पहला वाहक पोत आईएनएस विक्रांत मिला था। साल 1957 में ब्रिटेन की रॉयल नेवी से अधूरे कंस्ट्रक्शन के साथ खरीदने के बाद 1961 में इसका निर्माण कार्य पूरा हुआ उसी साल मार्च को इसे सेवा में लिया गया।
पाकिस्तानी पनडुब्बी को भारत ने दे दी थी जलसमाधि
आईएनएस विक्रांत के चलते समुद्र में भारत का दबदबा बढ़ा। 1971 में इंडो-पाक वॉर में इसी के चलते पाकिस्तान के पसीने छूट गए थे। 1971 की जंग में पाकिस्तान ये बात बखूबी जनता था कि अकेला आईएनएस विक्रांत युद्ध की तस्वीर बदल सकता है।लिहाजा, वह किसी भी हाल में इसे नष्ट करना चाहता था। तब पाकिस्तान ने 71 का युद्ध शुरू होने से ठीक पहले पीएनएस गाजी को कराची से रवाना कर अरब सागर के रास्ते बंगाल की खाड़ी भेज दिया। पीएनएस गाज़ी वास्तव में एक अमरीकी पनडुब्बी थी, जिसका पुराना नाम यूएसएस डियाबलो था। इसे 1963 में अमरीका ने पाकिस्तान को दिया था।
पाकिस्तान को ये उम्मीद थी कि भारत को उसके इस कदम का अंदाजा भी नहीं लग पाएगा लेकिन सिग्नल इंटरसेप्ट के जरिए भारतीय नेवी को गाजी के बंगाल की खाड़ी में होने का पता चल गया। तब विक्रांत को बचाने के लिए पूर्वी नेवल कमांड के वाइस एडमिरल एन कृष्णन ने बड़ा दांव खेलते हुए पनडुब्बी रोधी क्षमता से लैस आईएनएस राजपूत को इस्तेमाल करने का फैसला किया।
पाकिस्तान को ऐसे किया गुमराह
तब विशाखापत्तनम के बाज़ार से बड़ी मात्रा में राशन, मांस और सब्ज़ियाँ ख़रीदी गईं जिससे वहां मौजूद पाकिस्तानी जासूसों को गुमराह किया जा सके और वो खबर दें कि विक्रांत विशाखापत्तनम में ही खड़ा है।
साथ ही आईएनएस राजपूत से भारी वायरलेस मैसेज भेजे जाने लगे जिससे पाकिस्तान को यकीन हो जाए की यह सिग्नल आईएनएस विक्रांत के ही हैं। जबकि असल में विशाखापत्तनम पर आईएनएस विक्रांत की जगह आईएनएस राजपूत समुद्र उनका इंतजार कर रहा था। इस बीच विक्रांत को बहुत गोपनीय तरीके से अंडमान भेज दिया गया।
तब पीएनएस गाजी आईएनएस विक्रांत को तबाह करने के इरादे से बढ़ी। जैसे ही गाजी मद्रास पहुंची पीएनएस गाजी को रोकने के लिए आईएनएस राजपूत के कैप्टन लेफ्टिनेंट कमांडर इंदर सिंह से एंटी-सबमरीन वारफेयर वेपन डेप्थ चार्जर पानी में छोड़ दिया। यह वेपन पानी में विस्फोट के साथ एक शक्तिशाली और विनाशकारी हाइड्रोलिक शॉक क्रिएट करता है जो पनडुब्बी को नष्ट कर देता है।
डेप्थ चार्जर ने अपना काम किया और देखते ही देखते कुछ ही मिनटों में गाजी को तबाह कर दिया। लेकिन इसके बाद आईएनएस विक्रांत की मदद से भारतीय सेना ने कॉक्स बाज़ार, चिटगांव और खुलना के पोर्ट तबाह कर दिए और पाकिस्तान की रीढ़ की हड्डी टूट गई। आईएनएस विक्रांत के कई अतुल्य योगदान को देखते हुए उसे दो महावीर चक्र और 12 वीर चक्र के सम्मानित किया गया।
31 जनवरी 1997 में आईएनएस विक्रांत में आई दरारें व बॉयलर की समस्याओं के चलते भारतीय नौसेना में इसका सफर खत्म कर दिया गया। लेकिन 1999 में आईएनएस विक्रांत को नए सिरे से तैयार किया गया। लेकिन विक्रांत एक बार फिर तैयार है समुंदर की लहरों पर लहराने के लिए।
उसे आईएनएस विक्रांत का पुनःजन्म कहा गया। फिर जनवरी 2014 में को मुंबई की कंपनी आईबी कमर्शियल को बेच दिया गया था। जिसके बाद उसे तोड़ दिया गया। आज भी हर भारतीय को आईएनएस विक्रांत से भावनात्मक लगाव है आखिर ये वही है जिसने 1971 की जंग में पाकिस्तान को धुल चटाते हुए हर भारतवासी को गौरवंतित किया।