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MP चुनाव: नहीं टूट पाए इस बार भी यहां के मिथक, बरकरार है सिंहस्थ के बाद मुखिया बदलना

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: December 15, 2018 07:38 IST

1962 में उत्तर से कांग्रेस के अब्दुल गय्यूर कुरैशी और दक्षिण से हंसाबेन निर्वाचित किए गए। सन 1967 में उज्जैन उत्तर से जनसंघ के महादेव जोशी तो दक्षिण से इसी दल के गंगाराम निर्वाचित हुए। सन 1972 में उज्जैन उत्तर से कांग्रेस से प्रकाशचंद्र सेठी तो दक्षिण से दुर्गादास सुर्यवंशी निर्वाचित हुए। 

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विधानसभा निर्वाचन 2018 के बाद भी उज्जैन के कुछ मिथक बरकरार है। इस बार उम्मीद जताई जा रही थी कि इन मिथकों पर विराम लग जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हो सका और मिथक बरकरार रहे हैं। इन मिथकों में निर्वाचन का प्रमाणित मिथक है कि उज्जैन उत्तर और दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में हमेशा एक ही दल के दोनों विधायक निर्वाचित होते आए हैं। सन 1957 से यह स्थिति चली आ रही है। इसी प्रकार एक मिथक यह भी है कि सिंहस्थ के बाद सरकार का मुखिया बदल जाता है। इस बार भी ऐसा ही रहा है।

इसे मिथक कहें की संयोग की उज्जैन के साथ कुछ ऐसी बातें जुडी हुई हैं जो बार बार अपने को दोहराती है। इन्ही में निर्वाचन से संबंधित कुछ संयोग की ये बातें अब निर्वाचन के बाद एक बार फिर से चर्चाओं में है। कहा जाता है कि कोई भी राजपरिवार को राजा उज्जैन के पुराने शहर में नहीं रूकता है इस परंपरा का पालन आज भी राजपरिवार से जुड़े राजा आज भी करते हैं। उन्हें रुकना होता है तो वे नए शहर के बाह्य क्षेत्र में रूकते हैं। 

ऐसे ही निर्वाचन के कुछ मिथक और संयोग हैं जो इस बार भी बरकरार हैं। निर्वाचन के रिकार्ड को उठाकर देखा जाए तो स्पष्ट होगा कि सन 1957 के विधानसभा चुनाव में उज्जैन उत्तर में कांग्रेस के राजदान कुंवर किशोरी और दक्षिण विधानसभा से कांग्रेस के विश्वनाथ वासूदेव निर्वाचित किए गए थे।

1962 में उत्तर से कांग्रेस के अब्दुल गय्यूर कुरैशी और दक्षिण से हंसाबेन निर्वाचित किए गए। सन 1967 में उज्जैन उत्तर से जनसंघ के महादेव जोशी तो दक्षिण से इसी दल के गंगाराम निर्वाचित हुए। सन 1972 में उज्जैन उत्तर से कांग्रेस से प्रकाशचंद्र सेठी तो दक्षिण से दुर्गादास सुर्यवंशी निर्वाचित हुए। 

सन 1977 में जनता पार्टी की और से उज्जैन उत्तर से बाबूलाल जैन तो दक्षिण से इसी दल के गोविंदराव विश्वनाथ नायक निर्वाचित हुए।सन 1980 में उज्जैन उत्तर से डॉ. राजेन्द्र जैन कांग्रेस ई से तो दक्षिण में महावीरप्रसाद वशिष्ठ इसी दल से निर्वाचित हुए। सन 1985 में उत्तर से डॉ. बटुकशंकर जोशी कांग्रेस की और से और दक्षिण में महावीरप्रसाद वशिष्ठ भी इसी दल से निर्वाचित हुए। 

सन 1990 में उज्जैन उत्तर से भारतीय जनता पार्टी के पारस जैन एवं दक्षिण में भाजपा के ही बाबूलाल मेहरे निर्वाचित हुए। बाबरी विध्वंस के बाद सन 1993 में हुए निर्वाचन में उज्जैन उत्तर से पून: भाजपा के पारस जैन  तो दक्षिण से शिवा कोटवाणी निर्वाचित हुए। सन 1998 में उज्जैन उत्तर से कांग्रेस के राजेन्द्र भारती तो दक्षिण से कांग्रेस की प्रीति भार्गव निर्वाचित हुई। सन 2003 में उज्जैन उत्तर से भाजपा के पारस जैन तो दक्षिण से भाजपा के ही शिवनारायण जागीरदार निर्वाचित हुए। 

यही स्थिति 2008 में भी जैन और जागीरदार निर्वाचित रहे। सन 2013 के विधानसभा चुनाव में उज्जैन उत्तर से पारस जैन निर्वाचित हुए तो दक्षिण से डॉ. मोहन यादव का निर्वाचन किया गया। विधानसभा चुनाव 2018 के दरमियान इन दोनों विधानसभा क्षेत्रों को लेकर बने इस मिथक के टूटने के आसार बने लेकिन इस बार भी यह मिथक नहीं टूट पाया और उज्जैन उत्तर से पारस जैन तो दक्षिण से डा. मोहन यादव निर्वाचित किए गए।

सिंहस्थ बाद CM बदलने की स्थिति भी बरकरार

उज्जैन को लेकर दुसरा मिथक यह भी है कि सिंहस्थ के बाद सरकार के मुखिया बदल जाता है। यह स्थिती 1956 से लेकर अब तक बनी हुई है। सन 1956 में सिंहस्थ के बाद मध्यप्रदेश की स्थापना 1 नवंबर को हुई। मप्र स्थापना के ठीक बाद प्रदेश के मुखिया पं.रविशंकर शुक्ल का 31 दिसंबर को निधन हो गया। इसके बाद सिंहस्थ का आयोजन 1968 में हुआ। तत्कालीन समय में संविद सरकार का गठन हुआ था जिसके मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह थे। 

येनकेन प्रकारेण तत्कालीन समय में सिंहस्थ के 11 माह बाद वे पद पर नहीं रहे। इसी प्रकार 1980 का सिंहस्थ राष्ट्रपति शासन के दौरान आयोजित किया गया था।सन 1992 के सिंहस्थ के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा को भी सिंहस्थ के कुछ माह बाद ही बाबरी विध्वंस मामले में सरकार के बर्खास्त होने के चलते कुर्सी खोना पडी।

सन 2004 के सिंहस्थ के समय प्रदेश में उमा भारती की सरकार थी । इसके कुछ माह बाद उन्हे इस्तीफा देना पड़ा था। दो वर्ष पूर्व संपंन्न सिंहस्थ 2016 के समय शिवराजसिंह चौहान मुख्यमंत्री थे उन्हे भी इस पद को छोडना पड़ा है।इस मामले में ज्योतिषाचार्य आंनद शंकर, श्याम नारायण व्यास ओर महेश  पुजारी  ने बताया कि सिहस्थ के बाद होता है सत्ता के मुखिया का परिवर्तन , साधु संत और देवी देवताओं की पूजन में कमी के कारण पाप पुण्य का फल भोगना होता है।

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