मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव के मैदान में असली मुकाबला तो भाजपा और कांग्रेस के बीच है लेकिन इस बार कई क्षेत्रोें में बागी, भितरघाती और तीसरे दल दोनों का खेल बिगाड़ते नजर आ रहे हैं.
कांग्रेस की तुलना में भाजपा अपने बागियों को लेकर ज्यादा हैरान, परेशान और चिंतित है. भाजपा के नेता और संघ इन बागियों को अंतिम क्षणों में मनाने की भरपूर कोशिश कर रहा है. भाजपा को उसके दो बागी डा. रामकृष्ण कुसमरिया और धीरज पटेरिया की बगावत ने ज्यादा परेशान कर दिया है. दरअसल यह दोनों ही बागी सिर्फ अपनी सीट पर ही नहीं बल्कि आसपास की सीट पर भी भाजपा को नुकसान पहुंचा रहे हैं.
भाजपा के प्रादेशिक नेतृत्व के बाद अब केंद्रीय नेतृत्व के साथ ही अब संघ भी उनको मनाने के लिए सक्रिय हो गया है. पर दोनों ही बागी नेताओं के तेवरों से लगता है कि अब वे मानने वाले नहीं हैं. मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री रहे और पूर्व सांसद रामकृष्ण कुसमरिया मध्यप्रदेश के कुर्मी समुदाय से आते हैं वे दमोह जिले की दो सीटों दमोह और पथरिया से मैदान में हैं. वे सार्वजनिक तौर पर कह रहे हैं कि वह दमोह में वित्त मंत्री जयंत मलैया को हराने और पथरिया में अपने ही चेले रहे भाजपा प्रत्याशी लखन पटेल को हराकर जीतने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं. उनको मनाने की कोशिशों के तहत कल केंद्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने भी उनसे बात की लेकिन मामला नहीं सुलझा. कुछ इसी तरह जबलपुर जिले की उत्तर सीट से चुनाव लड़ रहे धीरज पटेरिया के कारण भाजपा प्रत्याशी और राज्य मंत्री शरद जैन संकट में पड़ गए हैं.
धीरज पटेरिया को जिस तरह स्थानीय समर्थन मिल रहा है उसको लेकर भाजपा के साथ साथ संघ नेतृत्व भी उन्हें समझाबुझा कर बैठने के लिए मना रहा है. पर वे मान नहीं रहे हैं. मप्र के विधानसभा चुनाव में भाजपा के लगभग 60 बागी मैदान में हैं इनमें से तकरीबन 30 प्रत्याशी भाजपा की संभावनाओं को अपनी सीटों पर बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं.
बगावत के दंश से कांग्रेस भी मुक्त नहीं है लेकिन कांग्रेस में बगावत भाजपा से काफी कम है. कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सदस्य सत्यव्रत चतुर्वेदी अपने बेटे नितिन चतुर्वेदी को टिकट न दिलवा पाने पर बागी हो गए हैं. उनके बेटे नितिन छतरपुर जिले के राजनगर से सपा प्रत्याशी हैं. उनके पक्ष में आज सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रचार भी किया. सत्यव्रत चतुर्वेदी और उनके बेटे की बगावत से बुंदेलखंड की अनेक ब्राह्मण बाहुल सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशियों के समक्ष भितरघात का खतरा उत्पन्न हो गया है. छतरपुर जिले की बिजावर सीट से भी कांग्रेस के पिछले दो चुनाव में प्रत्याशी रहे राजेश शुक्ला बागी होकर साइकल पर सवार हो गए हैं वे भी कांग्रेस के लिए मुसीबत बने हुए हैं. सपा के जो और प्रत्याशी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं उनमें बालाघाट से अनुभा मुंजारे और उनके पति कंकर मुंजारे शामिल हैं, कंकर मुंजारे परसवाड़ा से मैदान में हैं. वे इसके पूर्व भी सपा की तरफ से चुनाव जीत चुके हैं.
बसपा ने अपनी पूरी ताकत राज्य के बुंदेलखंड और विंंध्य में लगाई हुई है. बसपा प्रमुख मायावती ने खजुराहो की एक पांच सितारा होटल में ठिकाना बनाकर बसपा प्रत्याशियों के समर्थन में खूब उड़ाने भरीं. बसपा रीवा जिले के रैगांव में भाजपा और कांग्रेस को अच्छी टक्कर दे रही है. पिछले चुनाव में भी बसपा की उषा चौधरी ने यहां से चुनाव जीता था वे इस बार भी बसपा की प्रत्याशी हैं उनका मुकाबला भाजपा के पूर्व मंत्री जुगल किशोर बागरी और कल्पना वर्मा से है. चंबल क्षेत्र के मुरैना जिले के मुरैना विधानसभा क्षेत्र से बसपा विधायक राज्य के मंत्री और भाजपा प्रत्याशी रुस्तम सिंह को कड़ी टक्कर दे रहे हैं. चंबल क्षेत्र के अंबाह में बसपा विधायक सत्यप्रकाश भाजपा के गब्बर सिंह और कांग्रेस के कमलेश जाटव को सीधी टक्कर दे रहे हैं. वहीं रीवा जिले के मनगवां से बसपा प्रत्याशी शीला त्यागी फिर मैदान में हैं यहां उनका मुकाबला कांग्रेस की बबीता साकेत और भाजपा के पंचूलाल प्रजापति से है.
इस बार के चुनावी मैदान में तीसरे दलों के तौर पर सपा बसपा के साथ साथ आम आदमी पार्टी, सपाक्स, गोंगपा ने भी भरपूर प्रत्याशी खड़े किए हैं. इस बार के चुनाव में बसपा ने 270, आप ने 208, सपाक्स ने 109, गोंगपा ने 73 और सपा ने 52 प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं. यह सभी तीसरे दल क्या प्रदर्शन करते हैं यह निश्चित तोर पर दोनों बड़े दलों की सेहत पर असर डालने वाला होगा. वैसे बसपा, सपा और गोंगपा ने पिछले चुनाव में प्रदेश में लगभग सवा आठ फीसदी वोट हासिल किए थे.