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बेटों को टिकट दिलाकर बुरे फंसे ये कद्दावर नेता, इज्जत बचाने के लिए बहा रहे पसीना

By राजेंद्र पाराशर | Updated: November 24, 2018 05:55 IST

चुनावी समर में राजनेताओं ने पुत्रों को आगे लाने के लिए पहले तो टिकट के लिए खूब मशक्कत की और क्षेत्र में अपनों की ही नाराजगी भी ङोली.

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मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में सियासी पारा अब चरम पर है. भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के नेताओं ने पुत्र मोह के चलते अपने पुत्रों को टिकट दिलाने के लिए पहले खूब मशक्कत की. अब उनकी जीत सुनिश्चित करने के लिए वे मैदान में पसीना बहा रहे हैं. पुत्रों को टिकट दिलाने के बाद उभरे विरोध के स्वर के बीच ये पिता इन दिनों मैदान में खूब पसीना बहा रहे हैं.

चुनावी समर में राजनेताओं ने पुत्रों को आगे लाने के लिए पहले तो टिकट के लिए खूब मशक्कत की और क्षेत्र में अपनों की ही नाराजगी भी ङोली. इस नाराजगी के चलते अब उन्हें अपने पुत्रों की जीत के लिए जमकर मशक्कत करनी भी पड़ रही है. पुत्रों को टिकट दिलाने में कांग्रेस से ज्यादा भाजपा के नेता सक्रिय रहे और वे सफल भी हुए.

पुत्र मोह के चलते जब कांग्रेस नेता प्रेमचंद गुड्डू ने अपने पुत्र अजीत को कांग्रेस से टिकट नहीं मिलते देखा तो वे दल बदलने से भी नहीं रुके. जबकि पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय अपने पुत्रों को टिकट दिलाने के लिए मशक्कत करते रहे, मगर टिकट दिलाने के बाद ये तीनों ने अपने पुत्रों के विधानसभा क्षेत्रों से दूरी बना रखी है.

पुत्र के लिए अपना टिकट कटाया

भाजपा के वन मंत्री डॉ. गौरीशंकर शैजवार ने अपने पुत्र मुदित शैजवार को टिकट दिलाने के लिए अपना टिकट कटवा दिया. अब वे विरोध के चलते पूरी ताकत के साथ मैदान में हैं. सांची विधानसभा क्षेत्र से वे पुत्र को मैदान में उतारने में सफल रहे हैं. यहां पर युवा और अनुभवी के बीच मुकाबला हो गया है. मुदित का मुकाबला कांग्रेस के वरिष्ठ प्रभुराम चौधरी से है. डॉ. शैजवार को सांची विधानसभा क्षेत्र में खूब पसीना बहना पड़ रहा है. वे भाजपा के नाराज लोगों को तो मना रहे हैं, साथ ही मतदाता के बीच अपने पुत्र की छवि भी निखार रहे हैं. 

पुत्र के क्षेत्र से बाहर नहीं निकल पा रहे भूरिया

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष और सांसद कांतिलाल भूरिया अपने पुत्र डॉ. विक्रांत भूरिया को टिकट दिलाने में तो सफल रहे, मगर जब पूर्व विधायक जेवियर मेड़ा नाराज हुए तो भूरिया की परेशानी बढ़ गई. मेड़ा निर्दलीय मैदान में उतरे हैं, उनके साथ भूरिया से नाराज कांग्रेसी भी हैं. भूरिया मेड़ा को निष्कासित कराने में तो सफल रहे, मगर पुत्र की जीत सुनिश्चित कराने के लिए उनका झाबुआ विधानसभा क्षेत्र से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है. भूरिया कांग्रेस के स्टार प्रचारक भी हैं, मगर वे कहीं भी सभा लेने नहीं पहुंच पा रहे हैं. दिन-रात मेहनत कर वे अपने पुत्र को पहली बार विधायक बनता देखना चाहते हैं.

राजनीतिक रियासत सौंपने कटाया टिकट

सतना जिले के रामपुर बघेलान विधानसभा क्षेत्र से भाजपा ने मंत्री हर्ष सिंह का टिकट काटकर उनके पुत्र विक्रम सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है. हर्ष सिंह का टिकट संगठन के सव्रे के आधार पर काटा गया. विक्रम सिंह अपने पुरखों की राजनीतिक रियासत को बचाने के लिए मैदान में हैं.

वहीं  कांग्रेस ने यहां पर तीन पीढ़ियों से कांग्रेस के लिए समíपत परिवार के सदस्य रमाशंकर पयासी को मैदान में उतार कर मुकाबला दिलचस्प कर दिया है. नई पीढ़ी को विधानसभा पहुंचाने के लिए यहां पर हर्ष को जमकर पसीना बहाना पड़ रहा है. यहां पर मुकाबला कांटे का हो गया है. यहां पर बसपा उम्मीदवार रामलखन सिंह के मैदान में होने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है.

पिछड़े वर्ग के विरोध का सामना कर रहे गहलोत

केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत आलोट विधानसभा क्षेत्र में अपने पुत्र जितेंद्र को दूसरी बार विधानसभा भेजने के लिए खूब मेहनत कर रहे हैं. यहां पर एट्रोसिटी एक्ट के बाद करणी सेना, सपाक्स संगठन का विरोध खासा नजर आया है.

इसके चलते गहलोत ने उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रैली और सभा कराकर माहौल को भाजपा के पक्ष में लाने का प्रयास किया, मगर माहौल जितेंद्र के पक्ष में अब भी पूरी तरह होता नजर नहीं आ रहा है. खुद गहलोत विरोध करने वाले संगठनों के पदाधिकारियों से चर्चा कर उन्हें मनाने का प्रयास कर चुके हैं, मगर अभी तक सफलता हासिल नहीं हुई है. कांग्रेस ने यहां पर टिकट मनोज चावला को टिकट दिया है. 

तोमर, विजयवर्गीय के सहारे जीत का प्रयास कर रहे गुड्ड

उज्जैन जिले के घटिया विधानसभा क्षेत्र से प्रेमचंद गुड्ड जब कांग्रेस से अपने पुत्र अजीत बोरासी को टिकट नहीं दिला पाए तो उन्होंने दल ही बदल लिया. भाजपा में शामिल होकर उन्होंने पुत्र अजित बोरासी को भाजपा प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतार दिया. यहां पर अब वे त्रिकोणीय मुकाबले में फंसते नजर आ रहे हैं. भाजपा के नाराज कार्यकर्ता पूरे मन से मैदान में नहीं हैं. वहीं जातिगत समीकरण का इस क्षेत्र में खासा प्रभाव है. इसके चलते बोरासी कमजोर हैं, मगर प्रेमचंद गुड्ड ने यहां पर केन्द्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय की सभा कराकर कार्यकर्ता को साधने का प्रयास किया है. यहां पर उनका मुकाबला कांग्रेस के उम्मीदवार रामलाल मालवीय से है.

ज्ञानसिंह भी जुटे हैं जिताने में 

शहडोल संसदीय क्षेत्र से सांसद ज्ञानसिंह अपने पुत्र शिवनारायण को टिकट दिलाने के लिए खासी मशक्कत करते नजर आए. उन्होंने यहां से अपने पुत्र के अलावा खुद के लिए भी दावेदारी की थी, ताकि टिकट परिवार से बाहर न जाए. ज्ञानसिंह खुद मंत्री पद छोड़कर उपचुनाव में सांसद का चुनाव लड़े थे, मगर कई महीनों तक उन्होंने मंत्री पद भी नहीं छोड़ा था. इसके बाद जब वे उपचुनाव में शिवनारायण को टिकट दिलाने में सफल हुए तब मंत्री पद छोड़ा था.

इस बार भी वे अंगद की तरह परिवार से टिकट के लिए पैर जमाकर बैठे थे. अंतत: पुत्र को टिकट दिलाने में सफल रहे. अब उन्हें उनके प्रति भाजपा कार्यकर्ताओं की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है. वे लगातार क्षेत्र में मेहनत कर पुत्र की जीत के लिए पसीना बहा रहे हैं. यहां पर शिवनारायण का मुकाबला कांग्रेस के ध्यान सिंह से है. यहां पर बसपा ने शिवप्रसाद कौल को जातिगत समीकरण बैठाकर मैदान में उतारा है. वहीं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने भी राममिलन को टिकट दिया है.

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