मोतीलाल वोरा: कार्यकर्ता, नेता और नेतृत्व सब उनके मुरीद थे

By भाषा | Updated: December 21, 2020 21:08 IST2020-12-21T21:08:38+5:302020-12-21T21:08:38+5:30

Motilal Vora: Worker, leader and leadership were all his wishes | मोतीलाल वोरा: कार्यकर्ता, नेता और नेतृत्व सब उनके मुरीद थे

मोतीलाल वोरा: कार्यकर्ता, नेता और नेतृत्व सब उनके मुरीद थे

नयी दिल्ली, 21 दिसंबर भारतीय राजनीति में ऐसे विरले होते हैं जो अपनी पार्टी के नेतृत्व के साथ आम कार्यकर्ताओं और नेताओं को भी भाते हों। मोतीलाल वोरा ऐसी ही एक राजनीतिक शख्सियत थे जो न सिर्फ गांधी परिवार के पसंदीदा थे, बल्कि कांग्रेस के आम कार्यकर्ता व नेता भी उनके मुरीद थे।

वोरा का कोरोना वायरस संक्रमण के बाद हुई स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं के कारण सोमवार को निधन हो गया। वह 93 साल के थे।

वह कांग्रेस एवं उसके नेतृत्व के लिए कितने अहम थे, इसका अंदाजा पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी की इस टिप्पणी से लगाया जा सकता है कि उन्हें वोरा के मार्गदर्शन की कमी हमेशा महसूस होगी।

सोनिया ने शोक संदेश में कहा, ‘‘मोतीलाल वोरा का जीवन जनसेवा और कांग्रेस की विचारधारा के प्रति बेमिसाल प्रतिबद्धता का जीवंत उदाहरण है। हम उनके मार्गदर्शन और उनकी नि:स्वार्थ सेवा की कमी हमेशा महसूस करेंगे।’’

वोरा के साथ काम कर चुके लोगों का मानना है कि अगर वह पार्टी के नेताओं और नेतृत्व की पसंद थे तो उसकी एक बड़ी वजह उनका निष्ठावान होने के साथ सबको साथ लेकर चलने और संतुलन बनाए रखने की उनकी कला थी।

कांग्रेस के पूर्व संगठन महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत में कहा, ‘‘मध्य प्रदेश जैसे राज्य में जहां तब अर्जुन सिंह, श्यामाचरण शुक्ल और माधवराव सिंधिया जैसे कददावर नेता थे, मुख्यमंत्री के तौर पर सबका प्रिय होना वोरा जी के लिए कोई आसान काम नहीं था। मुख्यमंत्री के लिए उनके नाम का प्रस्ताव अर्जुन सिंह ने किया था, लेकिन बाद के दिनों में राज्य के लोग कहते थे वहां ‘मोती-माधव’ एक्सप्रेस चल रही है।’’

राजनीति में पांच दशक तक सक्रिय भूमिका निभाने वाले वोरा का जन्म 20 दिसंबर, 1927 को राजस्थान के नागौर में हुआ था। उनकी पढ़ाई-लिखाई रायपुर और कोलकाता में हुई। परिवार में उनकी चार पुत्रियां और दो पुत्र हैं। उनके एक पुत्र अरुण वोरा दुर्ग से कांग्रेस विधायक हैं।

कई वर्षों तक पत्रकारिता करने के बाद उन्होंने 1960 के दशक में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से राजनीति में कदम रखा, हालांकि कुछ वर्षों के बाद वह कांग्रेस का हिस्सा बन गए और फिर करीब 50 साल तक पार्टी के संगठन और विभिन्न सरकारों में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों का निर्वहन किया।

वोरा का कद कांग्रेस और भारतीय राजनीति में 13 मार्च, 1985 को उस वक्त एकाएक काफी बढ़ गया जब उन्हें मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। वह उस समय राज्य मंत्री की भूमिका में थे और कई दिग्गजों के होते हुए भी उन्हें मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई।

बाद में वह केंद्रीय मंत्रीमंडल का हिस्सा बने। वह पीवी नरसिंह राव के नेतृत्व वाली सरकार में स्वाथ्य और नागर विमानन मंत्री रहे।

वह 1990 के दशक में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बनाए गए। राज्यपाल के तौर पर द्विवेदी की कार्यकुशलता को याद करते हुए जनार्दन द्विवेदी ने कहा, ‘‘लखनऊ का बहुचर्चित गेस्ट-हाउस कांड अब भी लोगों को याद है और यह भी याद है कि तब किस तरह और किन हालात में राज्यपाल के तौर पर उन्होंने बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई थी।’’

वोरा साल 2000 में कांग्रेस के कोषाध्यक्ष बने और 2018 तक इस पद पर रहे। वह इस साल अप्रैल तक राज्यसभा के सदस्य रहे और कुछ महीने पहले तक कांग्रेस के महासचिव (प्रशासन) की भूमिका निभा रहे थे।

वोरा ‘नेशनल हेराल्ड’ और ‘नवजीवन’ का प्रकाशन करने वाली कंपनी ‘एसोसिएटे जर्नल्स लिमिटेड’ (एजेएल) के न्यासी भी थे।

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Web Title: Motilal Vora: Worker, leader and leadership were all his wishes

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