Interview: मनोज झा ने विपक्षी एकता की 'असफल' कोशिशों और बिहार में जहरीली शराब से मौतों पर क्या कहा, पढ़ें पूरा इंटरव्यू

By शरद गुप्ता | Published: December 21, 2022 09:05 AM2022-12-21T09:05:58+5:302022-12-21T09:05:58+5:30

राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता और सांसद प्रो. मनोज कुमार झा से लोकमत समूह के वरिष्ठ संपादक (बिजनेस एवं पॉलिटिक्स) शरद गुप्ता ने बिहार के उपचुनावों सहित जहरीली शराब से मौत और विपक्षी एकता जैसे मुद्दों पर चर्चा की. पढ़े ये इंटरव्यू...

Manoj kumar jha Interview says deaths due to spurious liquor is news in Bihar, not in Gujarat | Interview: मनोज झा ने विपक्षी एकता की 'असफल' कोशिशों और बिहार में जहरीली शराब से मौतों पर क्या कहा, पढ़ें पूरा इंटरव्यू

बिहार में जहरीली शराब से मौतें खबर, गुजरात में नहीं: मनोज झा (फाइल फोटो)

राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता और सांसद प्रो. मनोज कुमार झा राज्यसभा में अपने प्रभावशाली भाषणों के कारण चर्चा में रहते हैं. लोकमत समूह के वरिष्ठ संपादक (बिजनेस एवं पॉलिटिक्स) शरद गुप्ता ने उनसे बिहार के उपचुनावों में हुई हार से लेकर विपक्षी एकता जैसे मुद्दों पर चर्चा की. प्रस्तुत हैं मुख्य अंश..

हाल ही में पिछले दो महीने में हुए तीन विधानसभा उपचुनावों में सत्तारूढ़ जदयू-राजद गठबंधन दो सीटें हार गया है. क्या यह विश्वास खो रहा है?

इसके गंभीर विश्लेषण की जरूरत है. मोकामा में हमारे एक विधायक के अयोग्य घोषित होने से हुए उपचुनाव में हम भारी मतों से जीते. गोपालगंज में भाजपा विधायक सुभाषजी की मृत्यु होने से हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी को भाजपा से टिकट मिला. 1952 से देश में हर जगह किसी विधायक की मृत्यु के बाद हुए उपचुनाव में उन्हीं की पार्टी जीतती है. उनके समर्थक तो सहानुभूति में वोट देते ही हैं, जिन्होंने पहले उन्हें वोट नहीं दिया था वह भी मृत आत्मा को श्रद्धांजलि देने के लिए उसकी पार्टी को वोट दे देते हैं. फिर भी हम केवल 1700 वोट से यह सीट हारे. तीसरी कुढ़नी पर जदयू उम्मीदवार लड़े थे और केवल 3000 वोट से हारे. हम इसे गठबंधन सरकार के प्रति अविश्वास के तौर पर बिल्कुल नहीं मान रहे हैं.

क्या एआईएमआईएम ने भी आपकी हार में भूमिका निभाई?

गोपालगंज में उनके उम्मीदवार को 15000 वोट मिले और भाजपा उम्मीदवार 1700 वोट से जीता. ठीक है उनकी भी भूमिका थी लेकिन हमने लोगों से सवाल पूछे हैं कि क्या आप अपनी छोटी-मोटी शिकायतों के लिए लोकतंत्र के समक्ष खड़े संकट से उबरने के लिए हमारी कोशिशों की नाव डुबो देंगे? मुझे खुशी है कि हमारी बात अब लोगों तक पहुंच रही है.

क्या यह नतीजे आपकी सरकार की शराबबंदी नीति को पुलिसिया डंडे के जोर पर लागू कराने के खिलाफ लोगों के गुस्से का परिचायक है?

हमारी सरकार शराब नीति में लगातार परिवर्तन कर रही है. जहां कहीं सख्ती की बात आती है वहां हमारे मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री उसे लचीला बना रहे हैं. गुजरात में भी शराबबंदी बहुत साल से चल रही है. वहां भी जहरीली शराब से मौतें हो रही हैं. लेकिन मीडिया में सुर्खियां बिहार की घटनाएं बनती हैं, गुजरात की नहीं.

गुजरात की शराब नीति काफी लचीली है. वहां बिहार की तरह पुलिसिया ज्यादती नहीं हो रही है!

यह लचीलापन मोदीजी के मुख्यमंत्री बनने के बाद ही आया था. हमारे यहां भी पहली बार इस अपराध में जेल में बंद लोगों को छोड़ने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है. कमजोर वर्गों के लोगों के लिए शासन का सहानुभूतिपूर्ण रवैया है.

लेकिन अब आपकी पार्टी के लोग ही शराबबंदी का विरोध कर रहे हैं. क्या आपका गठबंधन स्थिर है?

हमारी सरकार पूरी तरह स्थिर है. अगस्त में राजद के साथ सरकार बनाने का फैसला लेने से पहले नीतीशजी ने सभी बातों पर गहन विमर्श किया. उन्होंने भाजपा का चरित्र देखा कि किस तरह लोकतंत्र का गला दबाया जा रहा है. उन्होंने 2017 में राजद के साथ गठबंधन तोड़ने को लेकर अपना पक्ष जनता के सामने रख दिया है कि उन्हें भ्रमित किया गया था. हमारा गठबंधन केवल राज्य सरकार चलाने के लिए नहीं है. हम 2024 के चुनाव से पहले लोगों के सामने एक प्रगतिशील लोकोन्मुख दस्तावेज रखना चाहते हैं.

लेकिन विपक्षी एकता की कोशिशें सिरे नहीं चढ़ पा रही हैं. राज्यसभा में भी नहीं, जहां भाजपा के पास बहुमत नहीं है?

उनके पास भले ही राज्यसभा में आंकड़े न हों लेकिन वे आंकड़ों के प्रबंधन के उस्ताद हैं. कई पार्टियां जो अपने राज्यों में भाजपा का विरोध करती हैं, लोकसभा और राज्यसभा में उनके सुर बदल जाते हैं. लेकिन धीरे-धीरे दक्षिण और पूर्व भारत की उन पार्टियों का भाजपा मोह खत्म हो रहा है. कुछ का तो खत्म हो भी गया है क्योंकि लोकतंत्र को खत्म करने की रिवायत किसी का घर नहीं छोड़ती है.

आखिर विपक्षी एकता में समस्या कहां है?

विपक्षी एकता किसी भी चेहरे पर हो सकती है. हमारा विरोध आत्मकेंद्रित और आत्ममुग्ध राजनीति से है जो लोकतंत्र के लिए खतरा है. देश से मुद्दे ही गायब हो रहे हैं. 45 साल के दौरान सबसे बड़ी बेरोजगारी दर आज है. महंगाई चरम पर है. सार्वजनिक क्षेत्र की संपत्तियां औने-पौने दाम पर नीलाम की जा रही है. सांप्रदायिक सौहार्द्र सबसे निचले स्तर पर है. चुनाव इन्हीं मुद्दों पर होना चाहिए न कि मंदिर-मस्जिद और पाकिस्तान के मुद्दों पर. पाकिस्तान का भाग्य 1947 में ही तय हो गया था. हम क्यों उसके पीछे पड़े हैं? क्यों उसके जैसा बनना चाहते हैं? लेकिन भाजपा के लिए यही मुद्दे सबसे अहम हैं. और मीडिया मैनेजमेंट भी. विपक्षी दलों का एक-दूसरे के साथ आना जरूरी नहीं है. मुद्दों के इर्द-गिर्द आना जरूरी है.

विपक्ष को किसी जयप्रकाश नारायण की जरूरत है?

जयप्रकाश नारायण जैसे शख्स की तो हर समय जरूरत है. लेकिन जेपी किसी फैक्ट्री में पैदा नहीं होते. उनकी अनुपस्थिति में उनके मुद्दों में ही विकल्प तलाशने होंगे.

क्या देश बहुसंख्यकवाद की ओर बढ़ रहा है?

लोकतंत्र में सरकार बनाने के लिए बहुमत मेजॉरिटी जरूरी है लेकिन वह मेजॉरिटैरियनिज्म यानी बहुसंख्यकवाद में तब्दील नहीं हो जाना चाहिए. बापू ने हमें सिखाया था कि किसी भी सरकार का मूल्यांकन उसे मिले बहुमत से अधिक इस बात से होना चाहिए कि वह अल्पसंख्यकों के साथ कैसा व्यवहार कर रही है. अब अल्पसंख्यकों के लिए एक शब्द बोलना भी तुष्टिकरण करार दे दिया जाता है. पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों पर प्रहार से हम चिंतित होते हैं. लेकिन खुद वही कर रहे हैं. किसी भी मुल्क में अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न हर देश में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न का खतरा पैदा करता है. दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा देश होने के नाते हमें उदाहरण पेश करना चाहिए जिसका दूसरे अनुकरण करें.

लेकिन विपक्षी एकता होगी कैसे जब कुछ पार्टियों ने अभी से उससे किनारा करने की घोषणा कर दी है?

कुछ पार्टियों ने नहीं सिर्फ आम आदमी पार्टी ने. भाजपा का विकल्प बनने के लिए उसकी फोटोकॉपी बनना जरूरी नहीं है. जब ओरिजिनल उपलब्ध है तो फोटोकॉपी कौन लेगा? भाजपा का विकल्प भाजपा की नीतियों का विकल्प होना है. उसके प्रतिगामी यानी रिग्रेसिव विचारों का विकल्प होना है, न कि नोटों पर लक्ष्मी, गणेश की तस्वीर छाप देना. वे भाजपा के नैरेटिव का विकल्प पेश करने की जगह उसके नैरेटिव को पुख्ता कर रहे हैं. उनकी पार्टी में भी बहुत से लोग हैं जो स्वस्थ चिंतन और प्रगतिशील विचारों के हैं. आप देखते रहिए समान विचार वाले सभी एक साथ आएंगे.

Web Title: Manoj kumar jha Interview says deaths due to spurious liquor is news in Bihar, not in Gujarat

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