बंगाल में सीबीआई और कोलकता पुलिस के टकराव के रास्ते बीजेपी और ममता बनर्जी ने अपने सियासी ड्रामे का शंखनाद शुरू कर दिया है. अपने प्रिय ऑफिसर से सीबीआई की पूछताछ ममता बनर्जी को बर्दाश्त नहीं हुई, इसलिए अपने चिर-परिचित अंदाज में ममता धरने पर बैठ गईं. संविधान को बचाने का कॉन्ट्रैक्ट ऐसे भी राजनीतिक गलियारों में आये दिन तैरते रहता है. ममता ने भी खूब दावा किया. बंगाल से लेकर दिल्ली और लखनऊ से लेकर पटना तक अपने तथाकथित महागठबंधन के साथियों को तुरंत फोन मिलाया और इसके बाद राजनीतिक भावनाओं का समंदर उनके पक्ष में उमड़ गया. कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने कर्त्तव्य का निर्वहन किया और ममता को ये भरोसा दिलाया कि उनका साथ ममता के साथ हमेशा है, भले ही ममता राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मानने के लिए तैयार न हो.
ममता बनर्जी की बौखलाहट का कारण
आखिर ममता इतनी क्यों बौखलाई हुई क्यों हैं? दरअसल वामपंथियों की सरकार को उखाड़ने के बाद ममता बनर्जी 2011 में बंगाल की मुख्यमंत्री बनी और अब राज्य में उनके खिलाफ बीजेपी ने माहौल तैयार करना शुरू कर दिया है. पहले अमित शाह फिर नरेन्द्र मोदी की रैलियों ने ममता को अपने राजनीतिक किले को सुरक्षित रखने के लिए नई राजनीतिक योजनाओं के लांच पर मजबूर कर दिया है. ममता बनर्जी ने पहले तो कोशिश की कि बीजेपी के धुरंधर हिंदूवादी नेताओं के रैलियों को रोक दिया जाये और इसी कोशिश में बीते दिन योगी आदित्यनाथ के हेलिकॉप्टर को उतरने ही नहीं दिया गया. इसके बाद हिन्दू ह्रिदय सम्राट ने टेलीफ़ोन पर ही रैली को संबोधित किया.
नागरिकता संशोधन बिल के जरिये बीजेपी में बंगाल में रहने वाले बंगलादेशी हिन्दुओं को रिझाने का भरसक प्रयास कर रही है, तो वही एक ही तीर से दूसरे निशाना ये है कि मुस्लिम घुसपैठियों के लिए राजनीतिक अलार्म बजाया जा रहा है. बीजेपी में बंगाल में हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण चाहती है. ममता बनर्जी को डर इसलिए भी है कि बीजेपी का यह प्रोजेक्ट असम में सफलतापूर्वक लांच हो चुका है. दरअसल पुलिस बनाम सीबीआई की आड़ में सारा खेल अपने राजनीतिक किले को बचाना है. ऐसे भी मौजूदा वक्त की राजनीति में जब सारा खेल परसेप्शन का है तो फिर सड़क से लेकर संसद तक कोहराम मचाने में क्यों देर किया जाए. देश में 100 दिनों के बाद राजनीतिक प्रसाद की अमृत वर्षा होने वाली है और उसके पहले सभी नेता अपने हिस्से को दुरुस्त कर लेना चाहते हैं.
नरेन्द्र मोदी हाल ही में हुई अपनी रैली के दौरान बंगाल की जनता से भावुक अपील करते हुए दिखे. उन्होंने कहा कि जो नेता कल तक एक दूसरे से आंख नहीं मिलते थे वो आज मोदी को हटाने के लिए गले मिल रहे हैं. मोदी की इस रैली को लोकसभा चुनाव से पहले बंगाल की जनता को अपने समर्थन में करने का एक बड़ा प्रयास माना जा रहा है. बीजेपी को ऐसा लगता है कि इस बार प्रदेश की जनता ममता बनर्जी के शासन से उब चुकी है और वो नए विकल्प की तलाश कर रही है. बीजेपी ने तेजी से बंगाल में अपने संगठन को खड़ा किया है. अमित शाह ने मिशन 23 तय किया है, जिसके तहत पहले अमित शाह और अब खुद पीएम मोदी ने मोर्चा संभाला है.
बंगाली अस्मिता का प्रवाह
नरेन्द्र मोदी कई बार प्रणव दा के राजनीतिक व्यक्तित्व को बंगाल की राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़ चुके हैं. बंगाल में ममता बनर्जी को चौतरफा घेरने के लिए चुनाव से 100 दिन पहले चुनावी सर्जरी की शुरुआत हो चुकी है. अमित शाह ने हाल ही में मालदा की रैली में नागरिकता संशोधन बिल का जिक्र किया था और कहा था कि ममता बनर्जी की सरकार घुसपैठियों की सरकार है.
अमित शाह का हिन्दू राष्ट्रवाद
उन्होंने इसके साथ ही दुर्गा पूजा में मूर्ति विसर्जन का मुद्दा भी उठाया था और कहा था कि ममता राज में हिन्दुओं को अपना त्योहार भी नहीं मनाने दिया जा रहा है. नरेन्द्र मोदी बंगाली अस्मिता और अमित शाह हिन्दू राष्ट्रवाद को जगा रहे हैं जिसके जरिये बंगाल में 23 सीटें जीतने का दावा किया जा रहा है. हिंदी हार्टलैंड में चुनावी हार के बाद बीजेपी की नजर अब बंगाल, ओडिशा,असम और दक्षिण के राज्यों पर है ताकि उत्तर भारत की राजनीतिक नुकसान को पूरा किया जा सके.