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महाराष्ट्र: सत्ता साधने के लिए बीजेपी ने प्लान B और C बनाया, काम दूसरे वाले पर किया, जानें कैसे

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: November 24, 2019 07:28 IST

शिवसेना अपने साथ नहीं आएगी यह ध्यान में आने के बाद भाजप ने प्लान बी और प्लान सी तैयार किया. आज जो जनता को दिखाई दिया वह प्लान बी नही प्लान सी था. प्लान बी से पहले ही प्लान सी की तैयारी कर ली गई थी. मोदी-शाह और फडणवीस द्वारा महाराष्ट्र की जमीन पर उतारी गई राजनीतिक नाटक के परदे की पीछे की कहानी...

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यदु जोशी

आज राज्य का प्रत्येक नागरिक शायद यही गाना गुनगुना रहा होगा. ये क्या हुआ... कैसे हुआ... दरअसल महाराष्ट्र की राजनीति में शुक्रवार की आधी रात 360 डिग्री घुम गई. ऐसे हालातों में उपजे अनेकों सवालों का जवाब तुरंत मिलना मुश्किल है लेकिन फिर भी परदे के पीछे की कहानी कुछ इस प्रकार है. 

विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद भाजपा की झोली 105 और शिवसेना की झोली में 56 सीटें आईं. इस परिणाम से दिखाई दे रहा था कि मुख्यमंत्री फडणवीस ही होंगे. लेकिन इसी बीच शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद की जिद पकड़ ली और युति में दरार का यही कारण रहा. इसी उठापटक के बीच शिवसेना के संजय राउत ने राकांपा के शरद पवार के बीच सामंजस्य बिठाने का काम तेज कर दिया. कांग्रेस के विधायकों को भी सत्तासुख नजर आने लगा. 

कांग्रेस के पृथ्वीराज चव्हाण जैसे दिग्गज नेताओं ने गठबंधन से पूर्व पारदर्शिता का आग्रह किया. वहीं, भाजपा सही समय का इंतजार करती रही. इस के बाद जब भाजपा को यह सुनिश्चित हो गया कि शिवसेना अपने साथ किसी भी कीमत पर नहीं आएगी तो उन्होंने प्लान बी और प्लान सी पर काम करना शुरू किया. शनिवार का नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम जो आज दिखा वह प्लान बी नहीं वरन प्लान सी था. 

घटनाक्रम पर नजर डालें तो राकांपा अध्यक्ष शरद पवार और प्रधानमंत्री मोदी के बीच 20 नवंबर को 45 मिनट की बातचीत हुई वह प्लान बी था. 

ऐसा था प्लान बी और सी 

राज्य में सरकार गठन के लिए राकांपा भाजपा को समर्थन दे. पवार ने इसको सिरे से खारिज कर दिया. इसी के बाद अजित पवार से चर्चा कर देवेंद्र फडणवीस ने प्लान सी तैयार किया . इसमें अजित पवार के नेतृत्व में कुछ विधायक बागी होकर फडणवीस की सरकार का समर्थन करेंगे, यह तय हुआ और इसी के तहत अजित ने अपने चाचा और दिग्गज नेता शरद पवार के विरुद्ध बिगुल फूंक दिया. 

इस बीच देवेंद्र फडणवीस की भाजपा आलाकमान से लगातार चर्चा जरी रही. सूत्रों के अनुसार अमित शाह और देवेंद्र फडणवीस प्रतिदिन लगभग पांच बार चर्चा करते रहे. वहीं, यह भी कहा जा रहा है कि नितिन गडकरी और अजित पवार के बीच गहरे संबंध से समय काफी काम आए. वर्तमान परिस्थिति को देखकर तो यह कहना गलत नहीं होगा कि जो फडणवीस ने चुनाव से पहले कहा था कि 'मैं वापस आऊंगा' उन्होंने वह सिद्ध कर दिखाया है. 

सहमति पर संशय भाजपा के प्लान सी को शरद पवार की अनुमति थी कि नहीं यह चर्चा का विषय है. 'पवार कुछ भी कर सकते हैं' राज्य के व्यक्ति मात्र के मन में बसे इस वाक्य के चलते संशय और भी बढ़ जाता है. क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि शिवसेना का विश्वास कामय रखना और भाजपा को सत्ता तक पहुंचाना, एक ही समय में यह काम करने का जोखिम कोई चोटी का राजनीतिज्ञ ही यह कर सकता है. 

फिलहाल तक अजित पवार अपने बागी तेवरों के चलते आलोचना का केंद्र हैं. वहीं, सुप्रिया सुले ने भी अपनी नाराजगी जाहिर कर दी है. अभी कसरत बाकी है अजित पवार ने बागी होकर फडणवीस का साथ तो दिया लेकिन अब यह जोड़ी पटल पर बहुमत सिद्ध कर पाएगी या नहीं यह तो भविष्य ही तय करेगा और इसी पर राज्य का राजनीतिक भविष्य भी तय होगा.

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