महाराष्ट्र में बीते कई दिनों से चल रहे राजनीति भूचाल के बीच शनिवार को आए नतीजों ने सबको चौका दिया है। राज्य में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता देवेंद्र फड़नवीस ने मुख्यमंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) सुप्रीमो शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री के तौर पर शनिवार को शपथ ली। अजीत पवार के इस कदम ने महाराष्ट्र की सियासत में रातोंरात बड़ा उलटफेर कर दिया।
शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा है कि अजीत पवार गद्दार हैं। महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री बनने वाले अजीत पवार से शरद पवार का कोई संबंध नहीं है। समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार सुले ने अपना व्हाट्सअप स्टेटस लगाया, परिवार और पार्टी बिखर गया।
41 साल शरद पवार ने तोड़ी थी पार्टी, भतीजे ने दोहराया इतिहास
साल 1977 में इमरजेंसी लगने के बाद हुए लोकसभा चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को करारी हार मिली थी और देश में जनता पार्टी की सरकार बनी थी। उस दौरान कांग्रेस को महाराष्ट्र में कई सीटों से हाथ धोना पड़ा था। नतीजा राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री शंकर राव चव्हाण ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन बाद में जब पार्टी टूट गई तो कांग्रेस (U) और कांग्रेस (I) में बंट गई।
कांग्रेस के बंटने के बाद शरद पवार के गुरु यशवंत राव पाटिल कांग्रेस (U) में शामिल हुए। उनके साथ शरद पवार भी कांग्रेस (U) में शामिल हुए। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 1978 में कांग्रेस पार्टी के दोनों जोड़ों ने अलग-अलग चुनाव लगा। लेकिन नतीजो के बाद दोनों कांग्रेस ने एक साथ मिलकर सरकार बनाई जिससे जनता पार्टी को सत्ता से दूर रखा जा सके। वसंतदादा पाटिल उनकी जगह महाराष्ट्र के सीएम बने और शरद पवार उद्योग और श्रम मंत्री बने।
ऐसा भी कहा जाता है कि जुलाई 1978 में शरद पवार ने अपने गुरु के इशारों पर कांग्रेस (U) से खुद को अलग किया और जनता पार्टी के साथ गठबंधन में सरकार बनाई। उस दौरान मात्र 38 साल की उम्र में शरद पवार महाराष्ट्र राज्य के मुख्यमंत्री बने। बाद में यशवंत राव पाटिल भी शरद पवार की पार्टी में शामिल हो गए। इंदिरा गांधी के दोबारा सत्ता में आने के बाद फरवरी 1980 में पवार के नेतृत्व वाली प्रोग्रेसिव डेमोक्रैटिक फ्रंट सरकार गिर गई।
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो एनसीपी के कुल 54 विधायकों में से अजित पवार के साथ 35 विधायक हैं। अगर अजीत पवार सरकार में बने रहने के लिये एनसीपी को तोड़ते हैं तो उन्हें 36 विधायकों की जरूरत होगी। क्योंकि चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार पार्टी को तोड़ने के लिये दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होती है।
महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिये 145 सीटों की जरूरत है। एनसीपी के पास कुल 54 सीटें हैं और बीजेपी के पास 105 सीटें हैं। अगर अजीत पवार एनसीपी को तोड़कर 36 विधायक अपने पाले में कर भी लेते हैं तब बीजेपी और एनसीपी को मिलाकर कुल 141 सीटों तक ही यह गिनती पहुंचेगी।