शरद पवार का खुलासा, सोनिया गांधी से मेरे मतभेद पार्टी संचालन को लेकर हुए थे...

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: December 12, 2020 20:54 IST2020-12-12T20:53:04+5:302020-12-12T20:54:40+5:30

लोकमत समूह के एडिटोरियल बोर्ड के चेयरमैन विजय दर्डा का राकांपा दिग्गज शरद पवार से विशेष साक्षात्कार. कांग्रेस आज देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है. 

maharashtra mumbai at 80 sharad pawar revealed Sonia Gandhi my differences with running of the party | शरद पवार का खुलासा, सोनिया गांधी से मेरे मतभेद पार्टी संचालन को लेकर हुए थे...

सोनिया गांधी से मेरे मतभेद पार्टी के संचालन को लेकर हुए थे मगर अब वह मसला भी हल हो गया. (file photo)

Highlightsमहाराष्ट्र में सरकार गठित करने के लिए हमने एकजुट होकर पहल की. पिछले चार-पांच वर्षों में प्रधानमंत्री ने विपक्ष से संवाद नहीं साधा.

महाराष्ट्र की राजनीति के इतिहास की हर किताब शरद पवार के उल्लेख के बिना पूरी हो नहीं सकती. पवार के 80वें जन्म दिवस पर लोकमत समूह के एडिटोरियल बोर्ड के चेयरमैन विजय दर्डा द्वारा उनसे लिए गए विशेष साक्षात्कार के अंश...

विजय दर्डा- आप 18 वर्ष की उम्र में राजनीति में आ गए. उस वक्त आपने कांग्रेस का झंडा उठाकर अपने ही भाई के विरोध में प्रचार भी किया था. कांग्रेस के विचार आपके मन में आज भी बसे हुए हैं. इसके बावजूद आप कांग्रेस से अलग क्यों हुए?

शरद पवार- हमारी विचारधारा कांग्रेस से मिलती-जुलती है, गांधी-नेहरू की विचारधारा के करीब है. सोनिया गांधी से मेरे मतभेद पार्टी के संचालन को लेकर हुए थे मगर अब वह मसला भी हल हो गया. कई बार हम एकजुट हुए हैं. अब महाराष्ट्र को ही देख लीजिए. महाराष्ट्र में सरकार गठित करने के लिए हमने एकजुट होकर पहल की. वहां सरकार ठीक से काम कर रही है.

मेरा आग्रह है कि हमें अन्य स्थानों पर भी ऐसा करना चाहिए. अगर ऐसा ही सामंजस्य कांग्रेस ने अन्य राज्यों खासकर पश्चिम बंगाल में दिखाया, तो आज जो अपेक्षा कर रहे हैं, वह पूरी हो सकती है. अंतत: बड़ी पार्टी को ही बड़प्पन दिखाना चाहिए. ऐसा करते वक्त कांग्रेस के महत्व को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. वह बड़ी पार्टी है और यह बात हमेशा ध्यान में रखनी होगी कि कांग्रेस का योगदान भी महत्वपूर्ण है.

प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी कैसा काम कर रहे हैं?

मैं जानता नहीं. राजनीति में संवाद का महत्व होता है. मुझे लगता है कि सरकार विरोधियों से संवाद साधने में कमजोर नजर आ रही है. चार दिसंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना के संबंध में विपक्षी दलों से चर्चा की. कोरोना का विषय अगर छोड़ दें, तो पिछले चार-पांच वर्षों में प्रधानमंत्री ने विपक्ष से संवाद नहीं साधा.

प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि वह राजनीति में आपकी उंगली पकड़कर चलते हैं, आपसे चर्चा करते हैं, मार्गदर्शन लेते हैं मगर आपकी और भाजपा के बीच टकराव देखने को मिलता है. ऐसा क्यों?

मोदी जो कहते हैं, वह पूरी तरह सच नहीं है. मैं जब देश का कृषि मंत्री था उस दस वर्ष में मेरा दृष्टिकोण यह था कि जिस व्यक्ति के पास कृषि विभाग है वह दिल्ली में बैठकर कृषि उत्पादन बढ़ाने का प्रश्न हल नहीं कर सकता. उसे राज्यों में जाना चाहिए, राज्य सरकारों को विश्वास में लेना चाहिए. उसे कृषि तथा किसानों संबंधी नीतियां लागू करने में सहयोग करना चाहिए.

मैं जब यह काम कर रहा था, तब देश के दस-बारह राज्यों में अलग विचारधारा वाली पार्टियों की सरकारें थीं. गुजरात में मोदी सरकार थी. इसीलिए गुजरात में किसानों की कोई समस्या सामने आई तो मैं दिल से मदद करने की भावना रखता था. कारण यह था कि राज्यों में कृषि और किसानों के हितों की रक्षा करना कृषि मंत्री की जिम्मेदारी होती है.

इसी उद्देश्य से मैंने गुजरात में अनेक बार मोदी के साथ कई जिलों का दौरा किया. समस्याएं हल करने में मोदी का साथ दिया. मगर मोदी ने अपनी राजनीतिक भूमिका नहीं बदली. कृषि के काम में मोदी ने हमारी मदद की, मगर जब चुनाव आए, तो उन्होंने आक्रामक भाषण देकर हमें हराने की अपील की. इसमें कुछ भी गलत नहीं है. उनकी पार्टी की यही भूमिका और नीति थी.

देश में कांग्रेस का भविष्य क्या है? पार्टी किस दिशा में जा रही है. इसमें राहुल गांधी को लेकर कोई दिक्कत है क्या?

किसी भी राजनीतिक दल में यह बात महत्वपूर्ण रहती है कि उसके नेतृत्व को संगठन में कितनी स्वीकार्यता है. एक बात स्वीकार करनी होगी कि मेरे सोनिया गांधी या उनके परिवार से मतभेद थे, मगर कांग्रेस संगठन में गांधी-नेहरू परिवार के प्रति कार्यकर्ताओं व नेताओं की अभी भी आस्था है. चाहे सोनिया गांधी हों या राहुल गांधी, दोनों ही अपने परिवारों का प्रतिनिधित्व करते हैं. इसीलिए बहुसंख्य लोग उनके विचारों पर चलते हैं. इस बात को हमें स्वीकार करना पड़ेगा. कांग्रेस आज देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है. 

क्या आज देश राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार करने के लिए तैयार है?

उनके साथ कुछ समस्याएं हैं. उनमें निरंतरता की कमी है.

लोग चाहते हैं कि शरद पवार कांग्रेस का नेतृत्व करें..

विजय दर्डा : वर्तमान में नरेंद्र मोदी जी जिस तरह नेतृत्व कर रहे हैं, उनका सक्षम विकल्प देने के बारे में मैं पूछ रहा था.

शरद पवार : आपका सवाल सही है लेकिन ऐसा विकल्प देने वाला दल कौनसा है? तो सहज ही कांग्रेस का नाम आगे आता है. अब बहुसंख्य कांग्रेसी जनों को मान्य हो, ऐसा नेतृत्व कौन है?

उनकी पार्टी में ही अब तक अध्यक्ष का चयन नहीं हो पाया है? 

होगा, जल्द ही होने वाला है. 

आपकी पार्टी में चुनाव कब होते हैं? 

राकांपा में तीन से पांच वर्षों के अंतराल में होते हैं. इस वर्ष होना था लेकिन कोविड-19 की वजह से इन्हें टाल दिया गया. कांग्रेस में भी चुनाव होंगे और जब भी होंगे तब कुछ अलग परिणाम हाथ नहीं आएंगे. 

लेकिन राहुल गांधी कहते हैं कि उन्हें अध्यक्ष नहीं बनना?

अब यह तो चुनाव होने के बाद ही पता चलेगा कि क्या हुआ..

उन पर आप अध्यक्ष पद लाद रहे हैं? 

हम किसी पर कुछ नहीं लाद रहे, उनकी पार्टी लाद रही होगी..आप उनकी पार्टी के सलाहकार हैं.. मैं उनके आंतरिक मामलों में कुछ नहीं बोलूंगा. यह उनका मामला है.

कई लोगों का कहना है कि अब पवार साहब को कांग्रेस का नेतृत्व करना चाहिए?

इन बातों में कोई तुक नहीं है. कांग्रेस पार्टी में आंतरिक फैसले लेने का अधिकार उन्हें है. कल को किसी ने कहा कि राकांपा के फैसले फलां पार्टी का नेतृत्व लेगा, भले ही हमारा दल छोटा हो लेकिन हमें कतई यह स्वीकार्य नहीं होगा. ऐसा ही उनका मानना है. 

राकांपा अब छोटा दल कहां रह गया?

मैं राष्ट्रीय स्तर पर बात कर रहा हूं. उस तुलना में तो छोटा ही है. अब तक की यात्रा में भगवान आपके साथ था..जनता मेरे साथ थी..

उद्धव ठाकरे के नाम पर सोनिया गांधी और मैं सहमत था!

आपने राज्य में महाविकास आघाड़ी सरकार का प्रयोग किया. लोग कहते हैं कि जब तक शरद पवार की इच्छा है, तब तक सरकार चलेगी. इसका मतलब क्या है?

राज्य में शिवसेना की भूमिका सहयोगपूर्ण है. कांग्रेस का राज्य का नेतृत्व भी समझदारी से काम ले रहा है. इसीलिए हम एकजुटता से काम कर रहे हैं. इसलिए शरद पवार कहें अथवा कोई और कुछ भी कहे, मुझे नहीं लगता कि इसका सरकार की स्थिरता पर कोई असर पड़ेगा और हम असर पड़ने भी नहीं देंगे. 

आपने स्थिरता की बात कही है. मेरा अगला सवाल इसी बात को लेकर है. बीच में खबरें आई थीं कि कुछ अधिकारियों ने सरकार गिराने का प्रयास किया था. यह क्या मामला था? इस तरह का कोई प्रयास पहले हुआ है क्या? 

मैंने भी पढ़ा था, लेकिन मैं इसकी गहराई में नहीं गया. क्योंकि मुझे महाराष्ट्र के प्रशासन तंत्र पर पूरा भरोसा है. लोकतंत्र में एक सरकार आती है, प्रशासन उस सरकार की नीति के अनुसार काम करता है. कल को दूसरी सरकार आती है तो यही प्रशासन उसकी नीति के अनुसार काम करता है.

महाराष्ट्र की नौकरशाही सरकार की नीतियों से तालमेल बनाकर काम करती है. इसीलिए इस तरह का कोई प्रयास मैंने तो नहीं देखा. हां.. किसी एकाध व्यक्ति ने ऐसा किया होगा. लेकिन, महाराष्ट्र में ऐसी कोई संभावना नहीं है.

यह सरकार चले, इसीलिए आपने उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने का सुझाव दिया था क्या? 

ऐसा नहीं है. सरकार चलाने के लिए संख्या बल बहुत मायने रखता है. इस हिसाब से शिवसेना पहले नंबर पर थी. यही वास्तविकता है, इसे आपको मंजूर करना चाहिए. एक नंबर का संख्या बल शिवसेना के पास था. दो नंबर का राकांपा का और तीन नंबर का संख्या बल कांग्रेस के पास था. हमने यह मंजूर किया. उसके हिसाब से अपनी-अपनी पार्टी की क्षमता के अनुसार सीटों का बंटवारा किया. एकजुट रहने का फैसला किया. अब तक तो सब ठीक चल रहा है. हम सबने मन से यह स्वीकार किया कि सरकार का नेतृत्व उद्धव ठाकरे करें, क्योंकि शिवसेना का संख्या बल ज्यादा था.

क्या वे मुख्यमंत्री पद देने के लिए इच्छुक  नहीं थे? 

शायद उनके मन में यह दुविधा रही होगी कि यह पद लें या नहीं. मैं यह नहीं कह रहा कि दुविधा थी ही. लेकिन हम लोगों ने उनसे आग्रह किया कि आपके पास संख्या बल ज्यादा है, इसीलिए आप ही नेतृत्व स्वीकार करें. यह आपकी नैतिक जिम्मेदारी है.

कांग्रेस ने भी यह आग्रह किया था कि उद्धव ही मुख्यमंत्री बनें?

कांग्रेस ने उस समय सहमति दी थी. अर्थात कांग्रेस और राकांपा दोनों ने सहमति दी थी. उस समय संभवत: उद्धव ठाकरे की ऐसी मन:स्थिति होगी कि पद स्वीकारा जाए या नहीं. मैं यह नहीं कहता कि वे असमंजस में होंगे ही. लेकिन हम सभी अपने आग्रह पर अडिग रहे.

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