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महाराष्ट्रः बीजेपी ने पवार परिवार में आंतरिक कलह का फायदा उठाया, रातोंरात यूं बदल दिया खेल!

By भाषा | Updated: November 24, 2019 06:46 IST

भाजपा नेताओं का मानना था कि सत्ता की चाहत कई निर्दलीय विधायकों और विरोधी धड़े के नेताओं को अपने पक्ष में करने में मददगार होगी। राकांपा विधायक दल के नेता के तौर पर अजित पवार ने पार्टी विधायकों से समर्थन के पत्र लिये थे और इनका इस्तेमाल सरकार बनाने के भाजपा के दावे का समर्थन करने के लिये किया।

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ठळक मुद्देभाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने इस बात पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि क्या शरद पवार को इन सबकी जानकारी थी। शिवसेना, कांग्रेस और राकांपा ने सरकार बनाने के लिए शुक्रवार रात गठबंधन को अंतिम रूप दिया

ऐसा प्रतीत होता है कि राकांपा नेता शरद पवार के परिवार में लंबे समय से चल रही कलह का फायदा भाजपा नेतृत्व ने उठाया और अंतिम समय में कांग्रेस, राकांपा और शिवसेना गठबंधन द्वारा सरकार बनाने का दावा करने से ठीक पहले रातोंरात पूरे घटनाक्रम को पलट दिया। मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री का हुआ शपथग्रहण भाजपा के वरिष्ठ नेताओं और अजित पवार के बीच कई दिनों तक चली बातचीत का नतीजा है। अजित पवार के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच केंद्रीय एजेंसियों द्वारा की जा रही है।

भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने पार्टी महासचिव और प्रदेश चुनावों में पार्टी प्रभारी रहे भूपेंद्र यादव को अपनी योजना को अमली जामा पहनाने और फड़णवीस के साथ जमीनी स्तर पर समन्वय की योजना को क्रियान्वित करने के लिये मुंबई भेजा। शिवसेना,कांग्रेस और राकांपा गठबंधन की सरकार गठन की कोशिशों को परवान नहीं चढ़ने देने के लिये यथाशीघ्र सरकार बनाने का फैसला किया गया। भाजपा नेताओं का मानना था कि सत्ता की चाहत कई निर्दलीय विधायकों और विरोधी धड़े के नेताओं को अपने पक्ष में करने में मददगार होगी। राकांपा विधायक दल के नेता के तौर पर अजित पवार ने पार्टी विधायकों से समर्थन के पत्र लिये थे और इनका इस्तेमाल सरकार बनाने के भाजपा के दावे का समर्थन करने के लिये किया।

राकांपा नेता नवाब मलिक ने कहा कि यह पत्र शिवसेना-राकांपा और कांग्रेस गठबंधन के सरकार गठन के दावे के समर्थन के लिये थे। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने इस बात पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि क्या शरद पवार को इन सबकी जानकारी थी। उन्होंने शिवसेना के नेतृत्व वाले गठबंधन के समर्थन की पुष्टि करते हुए कहा कि उनके भतीजे ने अपने मन से यह कदम उठाया है। शिवसेना, राकंपा और कांग्रेस पिछले सप्ताह से एक असंभव से लगने वाले गठबंधन को बनाने के लिए प्रयासरत थे, जबकि इस दौरान भाजपा शांत थी। हालांकि, अब लगता है कि उसने पवार के भतीजे शरद पवार को शामिल करने का ‘‘प्लान बी’’ तैयार रखा था। शिवसेना, कांग्रेस और राकांपा ने सरकार बनाने के लिए शुक्रवार रात गठबंधन को अंतिम रूप दिया, और वे शनिवार को राज्यपाल से मिलने वाले थे। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि शुक्रवार शाम को यहां नेहरू केंद्र में हुई तीनों दलों की बैठक में अजित पवार भी मौजूद थे। प्रदेश में 12 नवंबर को लगे राष्ट्रपति शासन को हालांकि आज (शनिवार) सुबह पांच बजकर 47 मिनट पर हटा दिया गया। इसके बाद शनिवार सुबह ही साढ़े सात बजे देवेंद्र फड़णवीस ने मुख्यमंत्री और राकांपा विधायक दल के नेता अजित पवार ने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। अब देखने वाली बात ये है कि फड़णवीस और अजित पवार विधानसभा में बहुमत कैसे साबित करते हैं?

कांग्रेस के एक नेता ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर पीटीआई-भाषा को बताया कि उनकी पार्टी को इस बात का संदेह था कि अगर कांग्रेस-राकांपा-शिवसेना के बीच गठबंधन नहीं हुआ, तो राकांपा का एक वर्ग भाजपा के साथ हाथ मिला सकता है। कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया, “भाजपा का शीर्ष नेतृत्व (राकांपा नेता) प्रफुल्ल पटेल के माध्यम से कोशिश कर रहा था कि शरद पवार भाजपा के साथ आ जाएं। उनका कहना था कि इससे पटेल और अजित पवार को प्रवर्तन निदेशालय की जांच में मदद मिलेगी।” सूत्रों ने बताया कि पवार परिवार में पिछले कुछ महीनों से चल रही तकरार में एक तरफ अजित पवार थे और दूसरी तरफ शरद पवार और उनकी बेटी सुप्रिया सुले। यह विवाद लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के दौरान टिकट बंटवारे को लेकर बढ़ा। जब शरद पवार ने ईडी के कार्यालय जाने का निर्णय किया और पूरे राज्य के कार्यकर्ता मुंबई आने लगे, तो अजित पवार नदारद थे। उसी शाम उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया। इसे ध्यान भटकाने की कोशिश माना गया।

अगले दिन अजित पवार ने आंखों में आंसू भरकर मीडिया से कहा कि उन्होंने इसलिए इस्तीफा दिया क्योंकि ईडी ने महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक घोटाले में न सिर्फ उनका बल्कि शरद पवार का नाम भी लिया। परिवार में सबकुछ ठीक नहीं है, इसका आभास पिछले सप्ताह उस समय भी हुआ, जब शरद पवार के निवास ‘‘सिलवर ओक’’ में राकांपा की एक बैठक से अजित पवार यह कहते हुए निकल आए कि कांग्रेस के साथ प्रस्तावित बैठक रद्द हो गई है और वह अपने विधानसभा क्षेत्र बारामती जा रहे हैं। हालांकि, बाद में उक्त बैठक हुई और बाद में राकांपा नेता ने कहा कि यह मीडिया को दूर रखने की एक कोशिश थी।

सूत्रों के मुताबिक अजित पवार उस समय नाराज हुए जब उनके बेटे को पहले लोकसभा चुनाव में राकांपा का टिकट देने से इनकार किया गया और बाद में वह टिकट मिलने के बाद भी हार गए। सूत्रों ने बताया कि शरद पवार के एक अन्य भाई के पोते रोहित पवार के उदय और विधानसभा चुनाव में उनकी जीत से भी अजित पवार में असुरक्षा की भावना और बढ़ी। एक अन्य नेता ने कहा, “हम पूरे घटनाक्रम को पारिवारिक विवाद के रूप में देख रहे हैं, जो खुलकर सामने आ गया है।” अभी यह स्पष्ट नहीं है कि राकांपा के 54 विधायकों में कितने अजित पवार के समर्थन में हैं। शरद पवार का दावा है कि अजित पवार के शपथ लेने के दौरान सिर्फ एक दर्जन विधायक ही उनके साथ थे, जिसमें से तीन पार्टी के पास वापस आ चुके हैं और दो अन्य वापस आ सकते हैं।

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