Maharashtra Assembly Election 2019: परभणी विधानसभा सीट पर हार का तिलिस्म को तोड़ पाएगी कांग्रेस!
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: August 31, 2019 07:55 IST2019-08-31T07:55:00+5:302019-08-31T07:55:00+5:30
परभणी में पीडब्ल्यूपी की भी यह आखिरी जीत थी. वर्ष 1990 में शिवसेना ने अपनी जीत का जो सिलसिला शुरु किया, वह वर्ष 2014 के चुनाव तक जारी रहा.

Maharashtra Assembly Election 2019: परभणी विधानसभा सीट पर हार का तिलिस्म को तोड़ पाएगी कांग्रेस!
परभणी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में लगभग 35 वर्ष पूर्व वर्ष 1985 के चुनाव में शुरु हुआ कांग्रेस की हार का सिलसिला वर्ष 2014 के चुनाव तक जारी रहा. देखना होगा कि कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव में हार के इस तिलिस्म को तोड़ पाएगी या नहीं.
परभणी विधानसभा क्षेत्र में पीडब्ल्यूपी (भारतीय शेतकरी कामगार पार्टी) ने वर्ष 1985 के चुनाव में कांग्रेस को लगातार चौथी जीत दर्ज करने रोक दिया था. उसके बाद वर्ष 1990 के चुनाव से परभणी में लगातार शिवसेना जीत दर्ज करती आ रही है. परभणी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र वर्ष 1962 में अस्तित्व में आया.
जानिए क्या है सीट का इतिहास
परभणी के पहले विधायक के रुप में पीडब्ल्यूपी पार्टी के शेषराव देशमुख ने कांग्रेस के प्रत्याशी अंबादास गणोशराव को लगभग चार हजार 36 मतों से मात देकर जीत दर्ज की थी. देखमुख को 17 हजार 215 और अंबादास को 13 हजार 179 मत प्राप्त हुए थे.
वर्ष 1967 के चुनाव में पीडब्ल्यूपी पार्टी के एआर गव्हाणो ने कांग्रेस के एमएस राव को एक हजार 305 मतों से हराया था. गव्हाणो को 17 हजार 873 और राव को 16 हजार 568 मत प्राप्त हुए थे. इसके बाद कांग्रेस ने जीत की हैट्रिक लगाई. वर्ष 1972 के चुनाव में कांग्रेस के रावसाहब जामकर ने पीडब्ल्यूपी पार्टी के एआर गव्हाणो को छह हजार 965 मतों से मात दी थी. जामकर को 26 हजार 293 और 19 हजार 328 मत प्राप्त हुए थे. वर्ष 1978 में कांग्रेस रावसाहब जामकर ने पीडब्ल्यूपी के अन्नासाहब गव्हाणो को दो हजार 84 मतों से मात दी. रावसाहब को 25 हजार 700 मत और गव्हाणो को 23 हजार 616 मत प्राप्त हुए थे.
वर्ष 1980 में कांग्रेस ने जीत की हैट्रिक लगाई. उस चुनाव में अब्दुल रहमान खान ने 23 हजार 910 मत हासिल कर 15 हजार 172 मत प्राप्त करने वाले पीडब्ल्यूपी के विजय गव्हाणो को आठ हजार 738 मतों से परास्त किया. खान की जीत परभणी विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस की अंतिम विजय थी. उसके बाद वर्ष 1985 में पीडब्ल्यूपी के विजय गव्हाणो ने कांग्रेस की जीत पर ब्रेक लगा दिया.
गव्हाणो ने कांग्रेस की आयशा बेगम को तीन हजार 989 मतों से पराजित किया. गव्हाणो को 26 हजार 335 और आयशा बेगम को 22 हजार 346 मत प्राप्त हुए थे.
परभणी में पीडब्ल्यूपी की भी यह आखिरी जीत थी. वर्ष 1990 में शिवसेना ने अपनी जीत का जो सिलसिला शुरु किया, वह वर्ष 2014 के चुनाव तक जारी रहा. इस दौरान वर्ष 1990 में शिवसेना के हनुमंतराव बोबड़े ने कांग्रेस के शमीम रहीम अहमद खान को 11 हजार 568 मतों, वर्ष 1995 में तुकाराम रेंगे पाटिल ने शमीम रहीम अहमद खान को 19 हजार 354 मतों, वर्ष 1999 में तुकाराम रेंगे पाटिल ने अंसारी लियाकत अली को सात हजार 279 मतों और वर्ष 2004 में शिवसेना के संजय जाधव ने कांग्रेस के अशोक देशमुख को नौ हजार 947 मतों से पराजित किया.
वर्ष 2004 के चुनाव के बाद कांग्रेस कभी दूसरे नंबर पर भी नहीं आ पाई. वर्ष 2009 के चुनाव में शिवसेना के संजय जाधव ने अपनी दूसरी जीत दर्ज करते हुए निर्दलीय विखार अहमद को 20 हजार 523 मतों से पराजित किया. जबकि पिछले यानी वर्ष 2014 के चुनाव में शिवसेना के ही डॉ राहुल पाटिल ने एआईएमआईएम के सैयद खालेद सैयद साहेबजान को 26 हजार 526 मतों से पराजित किया.
आगामी विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए अपनी खोई हुई जमीन प्राप्त करने का एक सुनहरा मौका होगा. क्योंकि पिछले कुछ समय में कांग्रेस को स्थानीय निकाय चुनावों में अपनी खोई हुई ताकत प्राप्त करने की सफलता प्राप्त हुई है. पदाधिकारियों की सही रणनीति, एकजुटता और व्यक्तिगत द्वेष भूलकर काम करने की नीति से कांग्रेस 34 वर्ष पुराना तिलिस्म जरुर तोड़ पाएगी.