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मध्य प्रदेश चुनाव: इन विधानसभा सीटों पर 'दांव' पर लगी रिश्तेदारी, चाचा-भतीजा और दो समधी होंगे आमने-सामने

By राजेंद्र पाराशर | Updated: November 11, 2018 19:57 IST

मध्यप्रदेश की मकड़ाई रियासत के विजय शाह 1990 से भाजपा से जुड़कर विधायक बनते आ रहे हैं, वे वर्तमान में सरकार में मंत्री भी है।

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ठळक मुद्दे  कहीं चाचा-भतीजे तो कहीं समधी का समधी से मुकाबलामकड़ाई के शाह राजघराने के दो सदस्य हुए आमने-सामने

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन भरने के साथ ही कई विधानसभा क्षेत्रों में मुकाबले रोचक होते नजर आ रहे हैं। इस बार चुनाव में राज्य के राजघरानों में एक राजघराना ऐसा भी है, जहां चाचा के सामने भतीजा मैदान में उतरा है। वहीं एक विधानसभा क्षेत्र में दो समधी आमने-सामने हो गए हैं। जबकि सीहोर विधानसभा क्षेत्र से पति,पत्नी और पुत्र तीनों मैदान में उतर गए हैं।

मध्यप्रदेश की मकड़ाई रियासत के विजय शाह 1990 से भाजपा से जुड़कर विधायक बनते आ रहे हैं, वे वर्तमान में सरकार में मंत्री भी है। विजय शाह के बाद उनके छोटे भाई संजय शाह ने राजनीति में प्रवेश किया। 2008 के चुनाव में जब उन्हेंं हरदा जिले के टिमरनी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो वे निर्दलीय मैदान में उतरे और चुनाव भी जीता। बाद में वे भाजपा में शामिल हो गए। इसके बाद से लगातार टिमरनी विधानसभा क्षेत्र से वे चुनाव जीतते आ रहे हैं, मगर इस बार उनकी जीत को रोकने के लिए कांग्रेस ने उनके भतीजे अभिजीत शाह को चुनाव मैदान में उतार दिया है। अभिजीत, विजय शाह के बड़े भाई अजय शाह के पुत्र हैं।

26 वर्षीय अभिजीत पर कांग्रेस ने इस बार दाव खेला है। आदिवासी मतदाता बहुल इस विधानसभा क्षेत्र में मुकाबला रोचक हो गया, जब चाचा के सामने भतीजे को कांग्रेस ने मैदान में उतार दिया। चाचा भाजपा से प्रत्याशी हैं, तो भतीजा कांग्रेस से। नामांकन भरे जाने के बाद से दोनों ही क्षेत्र में सक्रिय हो गए हैं। लोगों में रुचि इस बात की है कि मैदान में बाजी कौन मारेगा, चाचा या फिर भतीजा।पुत्र मोह में फंसे अजय शाह

बैंक से सेवानिवृत्त होकर दो भाईयों को राजनीति में सक्रिय देख अजय शाह ने भी राजनीति में रुचि दिखाई। 2014 के लोकसभा चुनाव में विजय शाह ने पूरा प्रयास किया कि बड़े भाई अजय शाह को बैतूल संसदीय क्षेत्र से टिकट मिल जाए, मगर जब उन्हें भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो अजय शाह ने कांग्रेस की सदस्यता ले ली। वे लोकसभा चुनाव भी लड़े मगर हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद इस बार वे चाहते थे कि खंडवा जिले के पंधाना से पुत्र को टिकट मिल जाए, मगर पार्टी ने पुत्र को टिकट तो दिया, मगर उनके छोटे भाई के सामने मैदान में उतार दिया। मध्यप्रदेश के इतिहास में संभवत: यह पहला अवसर होगा, जब किसी राजघराने के सदस्य आमने-सामने चुनाव मैदान में हों।समधी के सामने समधी

प्रदेश के मुरैना विधानसभा क्षेत्र में बसपा के विधायक बलवीर सिंह दंडोतिया को बसपा ने पहले टिकट न देकर मुरैना से रामप्रकाश राजौरिया को मैदान में उतारा था। दंडोतिया पिछला चुनाव दिमनी से जीते थे, वे इस बार मुरैना से चुनाव लड़ना चाहते थे। बाद में दंडोतिया ने प्रदेश पदाधिकारियों के माध्यम से प्रयास कर मुरैना से बसपा के प्रत्याशी बन गए। यहां बसपा ने पूर्व में घोषित राजौरिया का नाम निरस्त कर दिया। मामला इतना तूल पकड़ा कि राजौरिया ने मैदान न छोड़ने की बात कही और आम आदमी पार्टी की सदस्यता लेकर अपना नामांकन भर दिया। अब बलवीर के सामने मुसीबत यह है कि वे चाहकर भी अपने समधी को नहीं मैदान से नहीं हटा पा रहे हैं। राजौरिया निर्दलीय होते तो संभावना थी कि वे परिवार का दबाव देकर नामांकन वापस करा ले जाते, मगर अब दंडोतिया परेशान होकर घूम रहे हैं।

पति-पत्नी, बेटे ने भी भरा नामांकन

मुख्यमंत्री के गृह जिले सीहोर में भाजपा के टिकट न मिलने से नाराज पूर्व विधायक रमेश सक्सेना ने अपना नामांकन तो भर दिया, साथ ही इसके बाद सक्सेना के पत्नी ने भी नाराजगी जताई और अपना नामांकन भर दिया। हालांकि सक्सेना  अपनी पत्नी को निर्दलीय चुनाव लड़ना चाह रहे हैं, मगर जब भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने उनसे मुलाकात करना शुरु किया और नामांकन वापस लेने की बात कही तो नाराज होकर पुत्र शशांक सक्सेना भी मैदान में कूद गए। शशांक का इस बात की उम्मीद थी कि कहीं पिता रमेश सक्सेना वरिष्ठ नेताओं के दबाव में आकर खुद का और पत्नी उषा का नामांकन वापस न ले लें। इस वजह से उन्होंने अपना नामांकन भर दिया। वे भी समर्थकों के साथ अब मैदान में हैं। भाजपा परेशान है कि क्या करे?,खुद रमेश सक्सेना यह नहीं समझ पा रहे कि पुत्र को मैदान में हटाएं तो कैसे।

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