मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव में इस बार तीन नये दल आम आदमी पार्टी, सपाक्स और जयस पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। द्विदलीय प्रदेश की राजनीति को ये दल कितना प्रभावित करते हैं, यह तो कहा नहीं जा सकता, मगर राज्य के प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस के अलावा छोटे दलों बसपा, सपा और गोंगपा की राजनीति को ये दल जरूर प्रभावित कर सकते हैं।
मध्य प्रदेश में राजनीति मुख्य रूप से दो दलीय रही है। दो दलीय राजनीति के चलते कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा की सरकारें बनती रहीं। बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने भी प्रदेश में काफी मेहनत कर स्थान बनाने का प्रयास किया, मगर इनकी स्थिति क्षेत्रीय दलों की तरह कुछ क्षेत्रों तक सिमट गई। बसपा, सपा के बाद राज्य में 2003 में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का उदय हुआ, जो अपना प्रभाव महाकौशल के बाद कुछ हद तक विंध्य अंचल के उन जिलों में जो छत्तीसगढ़ की सीमा से सटे हैं, जमा पाई। कुल मिलाकर ये सभी क्षेत्रीय दल बनकर उभरे, मगर अपनी ताकत इतनी नहीं बना पाए कि सरकार बनाने या फिर गिराने में सफल हो पाते। इन दलों के अलावा राज्य में दर्जनों छोटे दल हुए जो कुछ जिलों और संभागों में भी अपना प्रभाव नहीं जमा पाए।
प्रदेश में अब वर्ष 2018 के लिए हो रहे विधानसभा चुनाव में राज्य इस बार तीन नए दलों ने आमद दी है। इन दलों में आम आदमी पार्टी, एट्रॉसिटी एक्ट के विरोध के बाद बनी सवर्ण वर्ग का नेतृत्व करने वाली सपाक्स और महाकौशल अंचल में जय युवा आदिवासी संगठन (जयस) है। ये तीनों दल मध्य प्रदेश में पहली बार चुनाव मैदान में हैं, इन दलों से इस बार राज्य की राजनीति कितनी प्रभावित होगी, यह तो नहीं कहा जा सकता, मगर भाजपा और कांग्रेस के अलावा सपा, बसपा और गोंगपा के लिए ये दल चुनौती साबित हो सकते हैं।
आप नेताओं में राजनीतिक अनुभव की कमी
मध्य प्रदेश में आम आदमी पार्टी ने चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर मुख्यमंत्री पद के लिए प्रदेश संयोजक आलोक अग्रवाल को चेहरा भी घोषित कर दिया है। पार्टी ने अब तक 11 अलग-अलग सूचियां जारी कर 172 प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। आप ने वैसे तो जिला स्तर पर अपना नेटवर्क बनाया है, मगर इस दल को अब तक अनुभव वाले राजनेता नहीं मिले हैं। अधिकतर पदाधिकारी युवा हैं मगर राजनीतिक अनुभव की इन नेताओं में कमी भी है।
खुद आलोक अग्रवाल नर्मदा आंदोलन से जुड़े रहे, जो लोगों की समस्याओं को समझते हैं, समस्याओं के समाधान के लिए जूझने वाले नेताओं के रूप में उनकी गिनती है, मगर राजनेता जैसी छवि उनमें कम नजर आती है। अग्रवाल के अलावा आप की मध्यप्रदेश इकाई में ऐसा कोई पदाधिकारी नजर नहीं आता जिसकी प्रदेश स्तर राजनीति में अपनी पहचान हो। आपके साथ चुनाव मैदान में होने से युवा वर्ग जरूर जुड़ा है, जो वोट काटने वाले प्रत्याशी इस चुनाव में साबित हो सकते हैं जिससे भाजपा, कांग्रेस के साथ बसपा, सपा और गोंगपा को जरूर फर्क पड़ेगा, मगर सरकार बनाने या बिगाड़ने की स्थिति इस दल में फिलहाल कम ही नजर आ रही है।
भाजपा को प्रभावित कर सकता है सपाक्स
सामान्य, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग के अधिकारियों, कर्मचारियों की संस्था के रूप में सपाक्स का गठन हुआ था। यह संगठन इस वर्ग के कर्मचारियों, अधिकारियों की पदोन्नति में आरक्षण के अलावा एट्रॉसिटी एक्ट के लिए लड़ाई लड़ रहा है। संगठन को एट्रॉसिटी एक्ट के विरोध के चलते प्रदेश स्तर पर चलाए आंदोलन के दौरान खास पहचान मिली।
सपाक्स के चलाए आंदोलन को मिले समर्थन के बाद सपाक्स ने गांधी जयंती 2 अक्तूबर को प्रदेश में राजनीतिक दल के रूप में पहचान बनाई और राज्य के 230 विधानसभा क्षेत्रों में अपने प्रत्याशी मैदान में उतारने की घोषणा कर दी। हालांकि अभी चुनाव चिह्न इस दल को नहीं मिला है, मगर दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष हीरालाल त्रिवेदी जिलों में जाकर प्रत्याशी चयन प्रक्रिया को अंजाम दे रहे हैं। जल्द ही यह दल अपने प्रत्याशियों की घोषणा करेगा। माना जा रहा है कि सपाक्स के प्रत्याशी भाजपा को इस चुनाव में प्रभावित कर सकते हैं।
जयस का मालवा में दिखेगा असर
जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन जयस का से भी आदिवासी समाज का युवा वर्ग जुड़ा है। जयस के संरक्षक डॉ। हीरालाल अलावा ने युवा पंचायत के जरिए संगठन की पैठ आदिवासी वर्ग के बीच बनाई। मध्य प्रदेश के अलावा आज वे संगठन को राजस्थान और झारखंड में भी पहचान दे चुके हैं। जयस ने 80 विधानसभा क्षेत्रों में अपने प्रत्याशी मैदान में उतारने की घोषणा की है।
जयस का दावा है कि राज्य के 47 आरक्षित सीटों पर तो वह प्रत्याशी मैदान में उतारेगा साथ ही 33 सामान्य वर्ग की सीटों पर भी वह मैदान में होगा। जयस का खासा असर मालवा-निमाड़ में है। इसके प्रभाव को देख कांग्रेस द्वारा गठबंधन से चर्चा भी की जा रही है। माना जा रहा है कि जयस से कांग्रेस 28 सीटों पर तालमेल कर चुनाव मैदान में उतरेगी। अगर ऐसा होता है तो आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित सीटों पर जयस के सहारे कांग्रेस को संजीवनी मिल सकती है।
(राजेन्द्र पाराशर लोकमत समाचार मध्य प्रदेश से जुड़े हैं)