एम करुणानिधि के निधन से भारतीय राजनीति को बड़ा झटका, कभी ना चुनाव हारने का था रिकॉर्ड

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: August 7, 2018 19:12 IST2018-08-07T19:12:12+5:302018-08-07T19:12:12+5:30

कद्दावर नेता मुत्तुवेल करुणानिधि ऊर्फ एम.करुणानिधि का 94 में निधन हो गया है। एम.करुणानिधि दक्षिण भारत की राजनीति में अपना एक अलग प्रभाव और दबदबा रखते थे।

M karunanidhi passed away: known fact about karunanidh, he never lost any election | एम करुणानिधि के निधन से भारतीय राजनीति को बड़ा झटका, कभी ना चुनाव हारने का था रिकॉर्ड

एम करुणानिधि के निधन से भारतीय राजनीति को बड़ा झटका, कभी ना चुनाव हारने का था रिकॉर्ड

चेन्नई, 7 अगस्त: तमिलनाडु ही नहीं बल्‍कि देश की सियासत के कद्दावर नेता मुत्तुवेल करुणानिधि ऊर्फ एम.करुणानिधि का 94 में निधन हो गया है। एम.करुणानिधि दक्षिण भारत की राजनीति में अपना एक अलग प्रभाव और दबदबा रखते हैं। इस राजनेता की राजनीति में पहुंचने की कहानी भी बड़ी दिल्‍चस्‍प है। वे पहले फिल्‍म पटकथा, लेखक थे और फिल्‍मी पर्दे पर दर्शायी गई। उनकी इन्‍हीं कहानियों ने उनके लिए राजनीति का रास्‍ता तैयार किया। करुणानिधि का जन्म 3 जून 1924 को नागपट्टिनम के तिरुक्कुभलइ में हुआ था। 

फिल्मों से राजनीति का रुख
तमिल फिल्मों में बतौर लेकर अपना मुकाम बनाने वाले करुणानिधि एक दिन अचानक फैसला किया कि वह अब राजनीति में आगे का सफर गुजारेंगे। इसके बाद अपनी सूझबूझ के चलते बहुत की कम समय में वह एक बेहतरीन राजनेता बन गए। बतौर राजनेता द्रविड़ आंदोलन से जुड़े और उस आंदोलन के प्रचार में उन्‍होंने अहम भूमिका अदा की। जैसे कि वह राजनीतिक और सामाजिक फिल्मों के लेखन के लिए जाने जाते तो ही प्रतिभा उनके राजनीति में भी दिखी। 

राजनीति में किया प्रवेश 
करुणानिधि को बचपन से राजनीति से गहरा लगाव था। एक बार खुद उन्होंने बताया था कि 14 साल की उम्र तक उनको राजनीति अपनी तरफ मोहित करने लगी थी। लेकिन राजनीति में प्रवेश स्टिस पार्टी के अलगिरिस्वामी के एक भाषण से प्रेरित होकर हुआ। इसके बाद ही उन्होंने स्थानीय युवाओं के लिए एक संगठन की स्थापना की और बाद में मनावर नेसन नामक एक हस्तलिखित अखबार भी चलाया था जो उस समय काफी प्रसिद्ध रहा था।

सत्ता का मिला रस
1957 में चुनाव लड़कर उन्होंने एक विधायक के तौर पर तमिलनाडु की सियासत में कदम रखा था। उस समय उन्होंने  तिरुचिरापल्ली जिले के कुलिथालाई विधानसभा से चुनाव जीता था। इसके बाद इसके बाद 1961 में डीएमके कोषाध्यक्ष फिर 1962 में राज्य विधानसभा में विपक्ष के उपनेता बने।  इसके बाद  1967 में  डीएमके के सत्ता में आने के बाद वह  सार्वजनिक कार्य मंत्री बने। 1969 ने उनके राजनीति रूप को पूरी तरह से बदला। इसी साल डीएमके (द्रविड मुनैत्र कणगम) के संस्‍थापक अन्नादुरई की मौत हो गई और वे अन्‍नादुरई के बाद वह पार्टी का नया चेहरा बनें। इतना ही नहीं इसके बाद वह राज्य की राजनीति से निकल कर राष्ट्रीय राजनीति तक पहुंचे।

इस बात के लिए हमेशा लगते थे आरोप

उन पर हमेशा परिवार को आगे पार्टी में बढ़ाने के आरोप लगे हैं। एक वक्त ऐसा भी  जब उन पर आरोप लगा कि सीएम रहते हुए  उन्होंने अपने बेटे स्टालिन को 1989 और 1996 में चुनाव जितवाया था। ये बात अलग है कि चुनाव जीतने के बाद भी स्टालिन को मंत्रीमंडल में जगह उस समय नहीं मिली थी। इतना ही नहीं करुणानिधि पर ये तक आरोप लगा था कि उन्‍होंने पार्टी का चेहरा स्‍टालिन को बनाने के लिए वाइको जैसे सहयोगी को पार्टी से बाहर निकलने के लिए मजबूर कर दिया।

परिवार को धोखा देने 
 करुणानिधि पर उनके भतीजे मुरोसिलिनी मारन को भी धोखा देने का आरोप है। कहते हैं मुरोसिलिनी मारन जैसे नेता को उन्होंने पार्टी में साइडलाइन किया था। इसके बाद उनके दोनों बेटों के साथ भी उन्होंने ये ही किया था। इसके बाद एक समय ऐसा भी आया जब कलानिधि मारन (मुरासोली मारन के पुत्र) की मदद करने का आरोप लगाया गया है। फोर्ब्स के मुताबिक कलानिधि भारत के 2.9 बिलियन डॉलर की संपत्ति वाले 20 सबसे बड़े रईसों में से हैं।

पांच बार रहे मुख्यमंत्री
करुणानिधि के नाम हर चुनाव जीतने का एक ऐसा रिकॉर्ड है जो पूरी राजनीति में किसी के पास नहीं है। वे पांच बार (1969–71, 1971–76, 1989–91, 1996–2001 और 2006–2011) मुख्यमंत्री रह चुके हैं। 60 साल के करियर में उन्होंने कभी चुनाव नहीं हारा था। उन्होंने 2004 के लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु और पुदुचेरी में डीएमके के नेतृत्व वाली डीपीए (यूपीए और वामपंथी दल) का नेतृत्व किया और 40 सीटों पर जीत दर्ज की। करुणानिधि को उनके समर्थक कलाईनार कहते है, जिसे तमिल में कला का विद्वान" कहते हैं।

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Web Title: M karunanidhi passed away: known fact about karunanidh, he never lost any election

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