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लोकसभा चुनाव 2024ः कानपुर देहात को लेकर राजनीति तेज, ब्राह्मणों के उत्पीड़न को मुद्दा बनाएगी सपा, कांग्रेस और बसपा भी तैयार

By राजेंद्र कुमार | Updated: February 14, 2023 20:44 IST

Lok Sabha Elections 2024: सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कानपुर की घटना को ब्राह्मणों के उत्पीड़न से जोड़ते हुए निंदा की. कांग्रेस और सपा ने योगी सरकार पर हमला बोला.

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ठळक मुद्देघटना पर सूबे में सियासत शुरू हो गई.ब्राह्मण समाज को अपने साथ जोड़ने की राजनीति शुरू कर दी है.यूपी की सियासत का कई दशक पुराना मंडल-मुखी चरित्र इस बार बदल दिया है.

लखनऊः रामचरितमानस को लेकर जुड़े विवाद के बीच समाजवादी पार्टी (सपा) ने ब्राह्मणों के उत्पीड़न को मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है. प्रदेश के कानपुर देहात में गत सोमवार को अतिक्रमण हटाने के दौरान एक ब्राह्मण परिवार में मां-बेटी की जलकर मौत हो गई. इस घटना पर सूबे में सियासत शुरू हो गई.

 

कांग्रेस और सपा ने इस मामले को लेकर प्रदेश की योगी सरकार पर हमला बोला. वहीं, पीड़ित परिवार भी राज्य सरकार पर आरोप लगा रहा है. उन्होंने कहा है कि अभी तक आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हुई है. सरकार लीपापोती करने में लगी हुई है. ऐसे में सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कानपुर की घटना को ब्राह्मणों के उत्पीड़न से जोड़ते हुए निंदा की.

उन्होंने पार्टी के ब्राह्मण नेताओं को निर्देश दिया है कि जहां भी ब्राह्मणों के उत्पीड़न की घटना हो तत्काल इसकी सूचना प्रदेश कार्यालय को दें, ताकि संबंधित क्षेत्र में प्रतिनिधिमंडल भेज कर पूरे मामले की जांच कराई जा सके. प्रतिनिधिमंडल से मिले आंकड़ों को विधानसभा में भी पार्टी रखेगी. कुल मिलकर सपा ने ब्राह्मणों के उत्पीड़न को मुद्दा बनाते हुये ब्राह्मण समाज को अपने साथ जोड़ने की राजनीति शुरू कर दी है.

वास्तव में आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर यूपी में सभी दलों में वोट बैंक के विस्तार की मची होड़ ने यूपी की सियासत का कई दशक पुराना मंडल-मुखी चरित्र इस बार बदल दिया है. अब सूबे में गठबंधन राजनीति की दुश्वारियों से आजिज पार्टियां अपने बूते केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के लिए ऐसे विस्मयकारी सामाजिक प्रयोग कर रही हैं कि मंडल राजनीति के इस गढ़ में मुस्लिम वोट बैंक के बाद अब सवर्ण कार्ड मौजूदा सियासत का ट्रंप कार्ड बन गया है.

बीते लोकसभा चुनावों में ऐसा माहौल नहीं था, पर अब तो सत्ता पर काबिज होने के लिए सभी दलों के मुखिया मंदिरों में जाकर पूजा करते हुये अपनी फोटो जारी कर रहे हैं. कांग्रेस के नेता मंच से राहुल गांधी को पंडित बताने लगे हैं. केजरीवाल भी अयोध्या जाकर अपने को भगवान राम और हनुमान का भक्त बताने पर ज़ोर दे रहे हैं.

वही दूसरी तरफ मोदी सरकार अपने को ब्राह्मण हितैषी साबित करने के लिए गरीब सवर्णों के दस प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला करती है. आखिर अचानक ब्राह्मण सारे राजनीतिक दलों के लिए इतना खास क्यों हो गया? जो सूबे की राजनीति में सवर्णों को महत्व दिया जा रहा है? तो इसकी वजह है, दलित, पिछड़े और मुस्लिम के साथ ब्राह्मण समाज की एकजुटता.

वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक सूबे की अनुमानित आबादी 25 करोड़ है. इसमें सवर्णों की आबादी तकरीबन 20 फीसद आबादी मानी जाती है, जिसमें सर्वाधिक लगभग 12-13 फीसद ब्राह्मण, तीन-चार फीसद क्षत्रिय, दो-तीन फीसद वैश्य, एक-दो फीसद त्यागी-भूमिहार है. राज्य में अनुसूचित जाति की आबादी 4.14 करोड़ यानी लगभग 21 फीसद है.

अनुसूचित जनजाति की आबादी 11.34 लाख यानी 0.6 फीसद है. ओबीसी आबादी के भी अधिकृत आंकड़े तो नहीं है लेकिन जानकार 44 फीसद जनसंख्या ओबीसी की मानते हैं.19 फीसद मुस्लिम आबादी में दलित व पिछड़े मुस्लिम भी है. सपा राज्य में गैर यादव पिछड़े वर्ग और मुस्लिम तथा दलित समाज को अपने साथ जोड़ने की मुहिम में जुटी है.

इसी क्रम में अब सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कानपुर कांड के जरिये ब्राह्मण का हितैषी बनाते हुये उनके उत्पीड़न के मुद्दे उठाने की ठानी है. इसके तहत ही उन्होंने मुख्य सचेतक बजट मनोज पांडे के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल कानपुर भेजने का फैसला किया.

इसके साथ ही उन्होने पार्टी ने अन्य ब्राह्मण नेताओं को भी निर्देश दिया है कि जहां भी ब्राह्मणों के उत्पीड़न की घटना हो तत्काल इसकी सूचना प्रदेश कार्यालय को दें. ताकि संबंधित क्षेत्र में प्रतिनिधिमंडल भेज कर पूरे मामले की जांच कराई जा सके. और प्रतिनिधिमंडल से मिले आंकड़ों को विधानसभा में भी पार्टी रखेगी, ताकि ब्राह्मण को यह संदेश दिया जा सके कि सपा ही उनके हित की सोचती है, जबकि भाजपा उनके वोट पाने की सोचती है.

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