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लोकसभा चुनाव 2019: क्या पश्चिम बंगाल में राजस्थानियों का साथ मिलेगा बीजेपी को?

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: February 13, 2019 06:15 IST

सीएम अशोक गहलोत, गिरिजा व्यास, भंवरलाल शर्मा, राजकुमार शर्मा आदि नेता राजस्थान के बाहर रहने वाले राजस्थानियों के बीच लोकप्रिय तो हैं ही, संपर्क में भी हैं, लिहाजा पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में कांग्रेस ऐसे नेताओं के प्रभाव का उपयोग कर सकती है.

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राजस्थान विस चुनाव में भले ही बीजेपी हार गई हो, लेकिन पश्चिम बंगाल सहित कुछ गैर-भाजपाई प्रदेशों में राजस्थानियों का साथ बीजेपी को सियासी फायदा दे सकता है, यदि सीएम अशोक गहलोत (मारवाड़), पूर्व केन्द्रीय मंत्री डाॅ. गिरिजा व्यास (मेवाड़), पूर्व मंत्री भंवरलाल शर्मा (शेखावाटी), पूर्व मंत्री राजकुमार शर्मा (शेखावाटी) आदि को पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में सक्रिय नहीं किया गया.

वैसे तो राजस्थान के शेखावाटी, मारवाड़, मेवाड़, वागड़ आदि क्षेत्रों के लोग लंबे समय से देश-विदेश में कार्य-व्यवसाय कर रहे हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल और आसपास के राज्यों में शेखावाटी, मारवाड़, मेवाड़ आदि इलाकों के लोग सर्वाधिक हैं.

इन राज्य की जनसंख्या के सापेक्ष राजस्थानियों की संख्या भले ही बहुत कम हो, लेकिन यह ऐसा प्रेरक वर्ग है, जिसका प्रभाव क्षेत्र बहुत बड़ा है, यही वजह है कि राजनीतिक जानकारों का मानना है कि लोस चुनाव में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है.

सीएम अशोक गहलोत, गिरिजा व्यास, भंवरलाल शर्मा, राजकुमार शर्मा आदि नेता राजस्थान के बाहर रहने वाले राजस्थानियों के बीच लोकप्रिय तो हैं ही, संपर्क में भी हैं, लिहाजा पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में कांग्रेस ऐसे नेताओं के प्रभाव का उपयोग कर सकती है.

उत्तर भारत में कमजोर पड़ी बीजेपी, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में संभावनाएं तलाश रही है, लिहाजा ऐसे राज्यों पर खासतौर पर फोकस है. यूपी, महाराष्ट्र के बाद पश्चिम बंगाल में ही सबसे ज्यादा लोस सीटें हैं. जहां यूपी में 80, महाराष्ट्र में 48 लोस सीटें हैं, वहीं पश्चिम बंगाल में 42 सीटें हैं. वर्ष 2014 के लोस चुनाव में पश्चिम बंगाल से टीएमसी को 34 सीटें मिली थीं, बीजेपी को 2, कांग्रेस को 4 तो वाम दलों को भी 2 ही सीटें मिली थी, लेकिन बीजेपी के हौंसले इसलिए बुलंद हैं कि पश्चिम बंगाल में उसका वोट प्रतिशत बढ़ता नजर आ रहा है.

वर्ष 2014 में पश्चिम बंगाल में बीजेपी को लगभग 17 प्रतिशत वोट मिले थे, जो कि पिछली बार से करीब 11 प्रतिशत ज्यादा थे. यह बात अलग है कि टीएमसी का वोट प्रतिशत भी करीब आठ प्रतिशत बढ़ा था और उसे 39 प्रतिशत वोट मिले थे.

हालांकि, इसके बाद 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 10 प्रतिशत वोट ही मिले, परन्तु इसके बाद हुए विभिन्न चुनावों में बीजेपी, टीएमसी को मात तो नहीं दे पाई, कांग्रेस और वामदलों को पछाड़ कर दूसरे नंबर पर जरूर पहुंच गई.

क्योंकि, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी का अपने राज्य में जोरदार प्रभाव और पकड़ है, इसलिए विस चुनावों सहित स्थानीय चुनावों में तो टीएमसी को मात देना आसान नहीं है, किन्तु लोस चुनाव में बीजेपी के लिए संभावनाएं बन सकती हैं. 

इसीलिए, विभिन्न रैलियों, सभाओं, निर्णयों, बयानों आदि के जरिए बीजेपी पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अपना आधार बढ़ाने के लिए पसीना बहा रही है. ऐसी कोशिशों की कामयाबी पर ही निर्भर हैं, बीजेपी के लिए उत्तर भारत की लोस सीटों की कमी को पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से पूरा करना!

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