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लोकसभा चुनाव 2019: ये है बिहार में चुनाव लड़ने की NDA की रणनीति, जानिए किन सीटों पर BJP लगा रही है दांव

By एस पी सिन्हा | Updated: October 27, 2018 17:51 IST

उल्लेखनीय है कि पूर्णिया और नालंदा की सीटें जदयू के पास हैं। इन दोनों के अलावा 2014 के लोकसभा चुनाव में दूसरे स्थान पर रहने वाली सीटें भी इस बार जदयू को मिल सकती है। अनुसूचित जाति के लिए लोजपा से बची आरक्षित सीटों पर जदयू के उम्मीदवार हो सकते हैं। 

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आगामी लोकसभा चुनाव 2019 के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और नीतीश कुमार की अगुआई वाली जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने तो समीकरण सुलझा लिये हैं। ऐसे में भाजपा के साथ बराबर-बराबर सीट मिलने से उत्साहित जदयू को बड़ा राजनीतिक आधार मिला है। मगर इस समझौते ने बिहार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के अन्य घटक दलों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है। हालांकि, लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) अपनी खुशी जाहिर कर रही है, लेकिन राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के अंदर ऊहापोह की स्थिती देखते बन रही है।

यहां उल्लेखनीय है कि पूर्णिया और नालंदा की सीटें जदयू के पास हैं। इन दोनों के अलावा 2014 के लोकसभा चुनाव में दूसरे स्थान पर रहने वाली सीटें भी इस बार जदयू को मिल सकती है। अनुसूचित जाति के लिए लोजपा से बची आरक्षित सीटों पर जदयू के उम्मीदवार हो सकते हैं। 

उत्तर बिहार की सुपौल  लोकसभा सीट पर जदयू दूसरे नंबर पर रहा था, यह सीट कांग्रेस की रंजीता रंजन ने जीती थी और भाजपा के कामेश्वर चौपाल तीसरे स्थान पर थे। इसी प्रकार चर्चित सीट मधेपुरा पर जदयू दूसरे स्थान पर था। 

यहां 2014 में जदयू अध्यक्ष शरद यादव उम्मीदवार थे। 2013 में भाजपा से अलग हो जाने के बाद शरद यादव  के खिलाफ भाजपा ने नीतीश सरकार में मंत्री रहीं रेणु कुमारी के पति विजय कुमार सिंह को उम्मीदवार बनाया था। 

राजद ने दबंग कहे जाने वाले पप्पू यादव को चुनाव मैदान में उतारा था। ऐसे में त्रिकोणत्मक लडाई में जीत का सेहरा पप्पू यादव के सिर बंधा और भाजपा तीसरे स्थान पर रही, जबकि शरद यादव 312728 वोट पाकर दूसरे स्थान पर थे। इसी प्रकार बांका, भागलपुर, कटिहार, किशनगंज, अररिया की सीटों पर भाजपा को पराजय का सामना करना पडा था। 

सूत्रों के मुताबिक इनमें जदयू के हिस्से दो से तीन सीटें आ सकती हैं। नीतीश सरकार के मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह के मुंगेर लोकसभा सीट से उम्मीदवार होने की चर्चा है। मुंगेर की सीट पर भाजपा के साथ 2014 में आई लोजपा की वीणा देवी का कब्जा है।

 वीणा देवी बाहुबली सूरजभान की पत्नी हैं। ललन सिंह भी 2014 में 243827 वोट लाकर दूसरे स्थान पर थे। ऐसी चर्चा है कि बेगूसराय पर जदयू अपना दावा करेगा। यहां से जदयू के मोनाजिर हसन पूर्व में सांसद थे। भाकपा के भीतर यहां से कन्हैया कुमार को उम्मीदवार बनाये जाने की चर्चा है। इसी प्रकार लोजपा की खगडिया की सीट पर भी बदलाव के संकेत मिल रहे हैं। 

यहां चौधरी महबूब अली कैसर लोजपा के टिकट पर 2014 में सांसद निर्वाचित हुए थे। कैसर के इस बार लोजपा के बदले किसी दूसरी पार्टी से चुनाव लडने की चर्चा है। ऐसी स्थिति में खगडिया की सीट जदयू के खाते में जाने के कयास लगाये जा रहे हैं। 

वहीं, सासाराम की सीट से भाजपा के छेदी पासवान सांसद हैं। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में इस सीट पर भी बदलाव की चर्चा है। जबकि नजर दरभंगा की सीट पर भी टिकी है। यहां के भाजपा सांसद कीर्ति आजाद पार्टी से नाराज चल रहे हैं। 2014 के चुनाव में जदयू के उम्मीदवार रहे संजय झा ने यहां से चुनाव लडने की पूरी तैयारी कर रखी है। ऐसे में इस सीट के जदयू में आने की चर्चा है।

वहीं, पटना साहिब के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा की भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति नाराजगी जगजाहिर है। ऐसे में जदयू की इच्छा राजधानी की इस महत्वपूर्ण सीट पर अपने उम्मीदवार उतारने की है। 

हालांकि, पटना जिले में लोकसभा की दूसरी सीट पाटलिपुत्र है। यहां से भाजपा के रामकृपाल यादव सांसद हैं। 2009 के चुनाव में जदयू ने यहां से जीत हासिल की थी। जदयू उम्मीदवार के रूप में रंजन  प्रसाद यादव ने राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यदव को शिकस्त दी थी। ऐसे में पटना की किसी एक सीट पर जदयू के दावे से इनकार नहीं किया जा सकता। 

हालांकि, इस समौझेते के बाद बिहार के सियासी गलियारों में अटकलों का बाजार गर्म हो गया है। चिराग पासवान का अचानक तेजस्वी यादव को फोन करना और एनडीए से नाराज बताए जा रहे उपेंद्र कुशवाहा का तेजस्वी यादव से मिलना, ये सब किसी बडे सियासी उठापटक के संकेत दे रहे हैं। माना जा रहा है कि भाजपा और जदयू के बीच इस समझौते से अन्य एनडीए सहयोगियों की सीटों में कटौती होगी। तब स्थिति कुछ और हो सकती है।

जदयू और भाजपा 17-17 सीटों पर लड़ेंगी चुनाव 

सूत्रों के मुताबिक जदयू और भाजपा 17-17 सीटों पर चुनाव लडेंगी। वहीं रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा को 5 सीटें दी जाएंगी और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी को एक सीट मिलेगी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में लोजपा को 7 सीटें मिलीं थीं। 

यही वजह है कि अब ऐसी उम्मीद की जा रही है कि रामविलास की पार्टी लोजपा को एनडीए में कमतर आंका जा रहा है और उसकी सीटों में कटौती कर जदयू की सीटें बढाई गई हैं। चर्चा यह भी है कि लोजपा प्रमुख व केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान इसबार लोकसभा का चुनाव नहीं लडेंगे। 

वह अब राज्यसभा में जाना चाहते हैं। यहां उल्लेखनीय है कि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को बिहार की 40 में से 22 सीटें मिलीं थीं, जबकि सहयोगी लोजपा और राष्‍ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) को क्रमश: छह और तीन सीटें मिलीं थीं। तब जदयू को केवल दो सीटें ही मिलीं थीं। 

वहीं, 2015 के विधानसभा चुनाव में बिहार की 243 सीटों में से जदयू को 71 सीटें मिलीं थीं। तब भाजपा को 53 और लोजपा एवं रालोसपा को क्रमश: दो-दो सीटें मिलीं थीं। उस चुनाव में जदयू, राष्‍ट्रीय जनता दल (राजद) तथा कांग्रेस का महागठबंधन था।

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