लोकसभा चुनाव 2019: अटल, सुषमा की सीट पर अकेले जूझते रहे शिवराज, प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार करने नहीं पहुंचे राष्ट्रीय नेता
By राजेंद्र पाराशर | Updated: May 11, 2019 13:47 IST2019-05-11T13:47:28+5:302019-05-11T13:47:28+5:30
1971 में इस सीट पर रामनाथ गोयनका, 1991 में अटल बिहारी वाजपेयी और उनके बाद 2009 एवं 2014 के चुनाव में सुषमा स्वराज यहां से जीती है. जबकि एक बार 1997 में जनता पार्टी के प्रत्याशी राघवजी यहां से जीते थे 12 बार भाजपा के प्रत्याशी यहां से जीते हैं.

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मध्यप्रदेश की विदिशा संसदीय सीट जहां पर प्रत्याशी से ज्यादा पार्टी को महत्व मिलता रहा, उस सीट पर इस चुनाव में पार्टी की राष्ट्रीय इकाई ने महत्व नहीं दिया. यहां पर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके समर्थक प्रदेश के नेता ही सक्रिय नजर आए, मगर राष्ट्रीय नेताओं ने दूरी बनाए रखी. यहां तक की वर्तमान सांसद सुषमा स्वराज भी यहां नहीं आईं.
विदिशा संसदीय क्षेत्र जहां 12 मई को मतदान होना है. इस क्षेत्र के मतदाता प्रत्याशी से ज्यादा हमेशा पार्टी को महत्व देते रहे. यही वजह है कि यहां पर रामनाथ गोयनका, स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी और सुषमा स्वराज जैसे नेता भी चुनाव जीतते रहे.
रमाकांत भार्गव को मैदान में उतारा
2009 के बाद फिर यहां पर भाजपा ने स्थानीय प्रत्याशी रमाकांत भार्गव को मैदान में उतारा, भार्गव को शिवराज समर्थक माना जाता है, इसके चलते सुषमा स्वराज का नाराज होना स्वाभाविक भी था. वे अपनी पसंद का उम्मीदवार यहां नहीं दे पाई, इसके चलते उन्होंने प्रत्याशी की घोषणा के साथ ही इस क्षेत्र से दूरी सी बना ली थी.
सुषमा के अलावा भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में राष्ट्रीय नेताओं ने भी दूरी ही बनाए रखी. उनके समर्थन में कोई बड़ा नेता सभा के लिए नहीं पहुंचा. शिवराज सिंह चौहान जरुर यहां पर मेहनत करते रहे. उनके अलावा पूर्व मंत्री डा. गौरीशंकर शैजवार, रामपाल सिंह, करण वर्मा भी यहां सक्रिय रहे.
पूर्व मंत्रियों ने नुक्कड़ सभाएं तक की. इन नेताओं के अलावा प्रदेश संगठन के वरिष्ठ नेताओं के साथ राष्ट्रीय नेताओं ने भी दूरी बनाए रखी. इसके चलते भाजपा प्रत्याशी को खूब मेहनत भी करनी पड़ रही है.
सिर्फ दो बार जीती कांग्रेस
भाजपा का गढ़ बनी विदिशा संसदीय सीट पर अब तक दो उपचुनाव सहित 15 चुनाव हो चुके हैं, मगर कांग्रेस को केवल 2 बार ही यहां पर सफलता हासिल हुई है. दोनों बार 1980 एवं 1984 में यहां पर कांग्रेस के प्रतापभानु शर्मा को जीत हासिल हुई है.
इसके अलावा 1971 में इस सीट पर रामनाथ गोयनका, 1991 में अटल बिहारी वाजपेयी और उनके बाद 2009 एवं 2014 के चुनाव में सुषमा स्वराज यहां से जीती है. जबकि एक बार 1997 में जनता पार्टी के प्रत्याशी राघवजी यहां से जीते थे 12 बार भाजपा के प्रत्याशी यहां से जीते हैं.
भोजपुर, सांची, रायसेन, विदिशा, सिलवानी, बासौदा, बुधनी, इच्छावर और खातेगांव आठ विधानसभा क्षेत्रों को शामिल किए हुए इस संसदीय क्षेत्र में इस बार भाजपा के रमाकांत भार्गव का कांग्रेस के शैलेन्द्र पटेल से सीधा मुकाबला है.
दोनों ही दलों ने यहां स्थानीय प्रत्याशियों को महत्व दिया है. इस वजह से चुनाव रोचक भी हो गया है. कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री कमलनाथ यहां पर लगातार सभाएं की हैं.