लोकसभा चुनावः मतगणना के नतीजों के साथ ही कई दिग्गजों के सियासी कद की जमीनी सच्चाई सामने आ जाएगी..
By प्रदीप द्विवेदी | Published: May 22, 2019 06:05 PM2019-05-22T18:05:23+5:302019-05-22T18:08:51+5:30
सीएम अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत के कारण जोधपुर, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह के कारण झालावाड़, तो बीजेपी के दिग्गज नेता रहे जसवंत सिंह के पुत्र मानवेंद्र सिंह के कारण बाड़मेर चर्चाओं में रहे हैं.
लोकसभा चुनाव के लिए मतगणना के नतीजों के साथ ही कई दिग्गजों के सियासी कद की जमीनी सच्चाई सामने आएगी. क्योंकि, राजस्थान में लोकसभा की 25 सीटों में से 2014 के चुनावों में बीजेपी ने सभी 25 सीटें जीत ली थी, इसलिए यह चुनाव जहां कांग्रेस के लिए अधिक-से-अधिक सीटें हांसिल करने का बेहतर अवसर था, वहीं बीजेपी के लिए सभी सीटें बचाने की बड़ी चुनौती थी.
जोधपुर में अशोक गहलोत की साख दांव पर
राजस्थान में इस बार कई दिग्गज नेताओं की सियासी प्रतिष्ठा दांव पर है, जिनमें कुछ केन्द्रीय मंत्री हैं, तो इनमें पूर्व एवं वर्तमान मुख्यमंत्री भी हैं, जिनके पुत्र चुनावी मैदान में हैं. सबसे दिलचस्प मुकाबला जोधपुर में है, जहां पीएम मोदी सरकार के मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत को सीएम अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत ने चुनौती दी है.
पिछली बार यहीं से गजेन्द्र सिंह शेखावत 4 लाख से ज्यादा वोटों से जीते थे. अब वे जीतते हैं या नहीं और कितने वोट से जीतते हैं, इस पर सबकी नजर रहेगी.
राज्यवर्धन सिंह राठौड़ बनाम कृष्णा पूनिया
जयपुर ग्रामीण सीट से केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ चुनाव लड़ रहे हैं, जहां उन्हें कांग्रेस विधायक कृष्णा पूनिया चुनौती दे रही हैं. राठौड़ को बीजेपी में भावी प्रादेशिक नेतृत्व के तौर पर देखा जा रहा है, इसीलिए सवाल यह है कि क्या वे पिछली बार की तरह 3 लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव जीत पाएंगे?
इसी तरह केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल बीकानेर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, जहां उनका मुकाबला कांग्रेस के मदन गोपाल मेघवाल से है. इस बार चुनाव में उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती बीकानेर क्षेत्र के बीजेपी के दिग्गज नेता रहे पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी की रही है, जिन्होंने मेघवाल को फिर से टिकट मिलने की संभावनाओं के चलते पहले ही बीजेपी से इस्तीफा दे दिया था और वे खुलकर मेघवाल के खिलाफ सियासी मैदान में आ गए थे.
सीएम अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत के कारण जोधपुर, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह के कारण झालावाड़, तो बीजेपी के दिग्गज नेता रहे जसवंत सिंह के पुत्र मानवेंद्र सिंह के कारण बाड़मेर चर्चाओं में रहे हैं. जोधपुर में तो पीएम मोदी ने सीएम अशोक गहलोत पर अमर्यादित आक्रामक तरीके से सियासी हमला भी किया.
झालावाड़ से हैं वसुंधरा के बेटे
झालावाड़-बारां लोस सीट पर बड़ी सतर्कता और सक्रियता के साथ पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने नजर बनाए रखी, तो बाड़मेर में मानवेन्द्र सिंह को घेरने में बीजेपी ने कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन चुनावी नतीजों में ही यह साफ होगा कि जनता ने किसकी बात मानी.
जयपुर शहर की सियासी जंग भी कम रोमांचक नहीं है, जहां कांग्रेस की ज्योति खंडेलवाल पिछली बार सर्वाधिक 5 लाख से ज्यादा वोटों से जीते बीजेपी के रामचरण बोहरा के सामने चुनावी मैदान में हैं. यहां बीजेपी को अपना गढ़ बचाने की चुनौती है.
दौसा में दो महिला नेताओं की दिलचस्प चुनावी जंग है. बीजेपी ने यहां से जसकौर मीणा को टिकट दिया है, तो कांग्रेस ने सविता मीणा को चुनावी मैदान में उतारा है. उधर, अलवर में कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव जितेंद्र सिंह मैदान में हैं, जिनका बीजेपी उम्मीदवार मस्तनाथ मठ, रोहतक, हरियाणा के महंत बाबा बालकनाथ से मुकाबला है.
हनुमान बेनीवाल का प्रभाव
लोकसभा चुनाव के ऐलान के बाद एनडीए में शामिल होने वाले राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल नागौर लोस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, जहां कांग्रेस से ज्योति मिर्धा उम्मीदवार हैं.
श्रीगंगानगर सीट पर बीजेपी के निहालचंद मेघवाल और कांग्रेस के भरत मेघवाल के बीच मुकाबला है, तो झुझुनूं में कांग्रेस ने श्रवण कुमार और बीजेपी ने नरेंद्र खीचड़ के बीच चुनावी जंग है.
करौली-धौलपुर में बीजेपी के मनोज राजोरिया एक बार फिर चुनावी मैदान में हैं, वहीं कांग्रेस की ओर से संजय जाटव को चुनावी मैदान में उतारा गया है.
दक्षिण राजस्थान के आदिवासी क्षेत्र में नई क्षेत्रीय पार्टी- बीटीपी का असर भी चुनावी नतीजों में नजर आएगा, जिसके कारण ही इस बार चुनाव में इस क्षेत्र में त्रिकोणात्मक संघर्ष की स्थिति बनी है.
याद रहे, लंबे समय से दक्षिण राजस्थान में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही होता रहा है, लेकिन पिछले विस चुनाव 2018 के दौरान उदयपुर संभाग में बीटीपी ने अपनी प्रभावी मौजदूगी दर्ज करवाते हुए दो सीटें जीती ली थी.
लोकसभा चुनाव की मतगणना के बाद नतीजे सामने आते ही यह साफ हो जाएगा कि प्रदेश में किस दल की वाकई क्या स्थिति है और कई दिग्गज नेताओं के सियासी कद की जमीनी सच्चाई क्या है?