चुनावी बिसात पर बुनियादी आय, घमासान की उल्टी गिनती हो गई शुरू
By भाषा | Updated: February 3, 2019 14:12 IST2019-02-03T14:12:41+5:302019-02-03T14:12:41+5:30
जोशी ने बताया, "शुरूआत में कुछ लोगों को यह आशंका भी थी कि बुनियादी आय का पैसा शराब के ठेकों में पहुंच जायेगा या लाभार्थी इसका कोई और दुरुपयोग करेंगे। लेकिन बुनियादी आय पाने वाले गांवों के अधिकतर लोगों ने इसका सही इस्तेमाल किया, जिससे उनके जीवनस्तर में बड़ा सुधार हुआ।"

चुनावी बिसात पर बुनियादी आय, घमासान की उल्टी गिनती हो गई शुरू
चुनावी घमासान की उल्टी गिनती शुरू होने के बीच प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस और नरेंद्र मोदी सरकार की दो सिलसिलेवार घोषणाओं के चलते "न्यूनतम आय" और "सार्वभौमिक बुनियादी आय" जैसे शब्द लोगों की जुबान पर हैं। इसके साथ ही, बिना शर्त नकदी समर्थन की अवधारणा को परखने से जुड़ी देश की संभवत: पहली विस्तृत प्रायोगिक परियोजना भी चर्चा में आ गयी है जिसके तहत यूनिसेफ ने एक गैर सरकारी संगठन की मदद से करीब आठ साल पहले मध्यप्रदेश के इंदौर जिले के 22 गांवों में अध्ययन किया था।
संगठन का दावा है कि बुनियादी आय के सामाजिक-आर्थिक प्रयोग के दायरे में आने वाले 6,000 से ज्यादा ग्रामीणों के जीवनस्तर में उल्लेखनीय सुधार हुआ। इस गैर सरकारी पहल को अमली जामा पहनाने वाले संगठन "सेवा भारत" की सचिव शिखा जोशी ने रविवार को बताया, "हमने यह परियोजना इंदौर जिले के 22 गांवों में जून 2011 से दिसंबर 2012 के बीच अलग-अलग अवधि में चलायी थी। इसके तहत कुल 6,012 ग्रामीणों को हर महीने बुनियादी आय के रूप में एक निश्चित रकम सीधे उनके खातों में प्रदान की गयी थी। इन ग्रामीणों को पूरी आजादी थी कि वे अपनी मर्जी के मुताबिक इस रकम का उपयोग कर सकते हैं।’’
जोशी ने बताया, "शुरूआत में कुछ लोगों को यह आशंका भी थी कि बुनियादी आय का पैसा शराब के ठेकों में पहुंच जायेगा या लाभार्थी इसका कोई और दुरुपयोग करेंगे। लेकिन बुनियादी आय पाने वाले गांवों के अधिकतर लोगों ने इसका सही इस्तेमाल किया, जिससे उनके जीवनस्तर में बड़ा सुधार हुआ।"
परियोजना खत्म होने के बाद किये गये विस्तृत सर्वेक्षण के हवाले से उन्होंने बताया कि गैर नकदी अंतरण वाले गांवों के मुकाबले बुनियादी आय वाले गांवों में भोजन और शिक्षा पर होने वाले खर्च, पक्के शौचालयों के उपयोग और स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता में इजाफा हुआ।
जोशी ने बताया, "बुनियादी आय के दायरे में आने वाले गांवों में बच्चों की सेहत, खासकर लड़कियों के पोषण स्तर में उत्साहजनक सुधार दर्ज किया गया।" परियोजना से जुड़े आदिवासीबहुल घोड़ाखुर्द गांव की राधाबाई ने बताया कि गैर सरकारी संगठन के जरिये मिली बुनियादी आमदनी से उनके परिवार ने दो बकरियां खरीदकर इन्हें पालना शुरू किया। कुछ साल में उनके घर पर बकरियों की तादाद बढ़ गयी।
ग्रामीण महिला ने बताया, "बकरी पालन से हुई अतिरिक्त कमाई से हमने छोटे-मोटे कर्जे चुकाये और खेती के लिये खाद-बीज खरीदे।" सेवा भारत की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रायोगिक परियोजना के पहले स्तर में 20 सामान्य गांव शामिल किये गये, जबकि दूसरे स्तर से आदिवासियों के दो गांवों को जोड़ा गया था।
तुलनात्मक अध्ययन के लिये 20 सामान्य गांवों में से आठ गांवों के लोगों के बैंक खातों में हर महीने बुनियादी आय के रूप में बगैर किसी शर्त के निश्चित रकम पहुंचायी गयी, जबकि 12 अन्य गांवों के किसी भी निवासी को यह नकदी समर्थन नहीं दिया गया। इसी तरह, आदिवासियों के दो गांवों में से एक गांव के निवासियों को बुनियादी आय प्रदान की गयी, जबकि दूसरे गांव के लोगों को नकदी समर्थन से जान-बूझकर दूर रखा गया।
प्रायोगिक परियोजना के तहत आठ सामान्य गांवों में प्रत्येक माह हर वयस्क को 200 रुपये और हर अवयस्क को 100 रुपये दिये गये। इसके एक साल बाद बुनियादी आय की यह राशि बढ़ाकर क्रमश: 300 रुपये और 150 रुपये कर दी गयी। बुनियादी आय पाने वाले एक आदिवासी गांव में प्रत्येक माह हर वयस्क को 300 रुपये और हर अवयस्क को 150 रुपये दिये गये। प्रायोगिक परियोजना के दौरान इस आदिवासी गांव में पूरे 12 महीने बुनियादी आय की यही दर बरकरार रखी गयी।
गौरतलब है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने रायपुर में किसान रैली में 28 जनवरी को वादा किया था कि अगले लोकसभा चुनावों में सत्ता में आने पर उनकी पार्टी देश के हर गरीब व्यक्ति के लिये न्यूनतम आय गारंटी योजना शुरू करेगी। इसके चार ही दिन बाद केंद्रीय वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने एक फरवरी को पेश अंतरिम बजट में छोटे किसानों के लिये नकदी समर्थन की ‘‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि" (प्रधानमंत्री किसान योजना) की घोषणा की थी। इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम के तहत सरकार दो हेक्टयेर तक की जोत वाले छोटे किसानों के खातों में साल भर में दो-दो हजार रुपये की तीन किश्तों में कुल 6,000 रुपये पहुंचायेगी।