राजनीति में चीजें जितनी सहज दिखती हैं उतनी होती नहीं है. मोदी सरकार को लोकसभा चुनाव में धूल चटाने के मकसद से एकजुट हुई विपक्ष का बिहार में लिस्ट जारी हो गया है. आरजेडी 20 और कांग्रेस 9 सीटों पर लड़ेगी. 5 सीटें उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी को मिली हैं. जीतन राम मांझी भी 3 सीटें लेने में कामयाब रहे हैं. सीट बंटवारे के पैटर्न को देखें तो लगता है कि नेताओं की धमकी काम आई है. कुशवाहा और मांझी को मन मुताबिक सीटें मिली हैं.
महागठबंधन के सीट बंटवारे में सीपीआई का नाम नहीं होने से कन्हैया कुमार की उम्मीदवारी पर स्थिति स्पष्ट हो गई है. पहले ऐसी ख़बरें आ रही थी कि कन्हैया कुमार को बेगुसराय सीट से महागठबंधन का उम्मीदवार बनाया जा सकता है.
बेगुसराय में सीपीआई की मजबूत मौजूदगी
महागठबंधन में सीपीआई को जगह नहीं मिली. सीट बंटवारे के एलान के साथ ही कन्हैया कुमार की राजनीतिक महत्वाकांक्षा थमती हुई दिख रही है. 2014 के चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार भोला सिंह ने इस सीट पर जीत हासिल की थी. राजद दूसरे स्थान पर था और सीपीआई के राजेंद्र सिंह तीसरे स्थान पर रहे थे. 2009 के चुनाव में मोनाजिर हसन जेडीयू के टिकट पर चुनाव जीते थे. उन्हें 2,05,000 वोट मिलें थे. सीपीआई के उम्मीदवार शत्रुघ्न प्रसाद सिंह दूसरे स्थान पर रहे और उन्हें 1,67,000 वोट प्राप्त हुए थे.
भूमिहार बहुल है बेगुसराय सीट
1967 के बाद इस सीट पर कभी भी वामपंथी पार्टियां लोकसभा चुनाव नहीं जीत पायी है. लेकिन हर चुनाव में सीपीआई की मौजूदगी इस सीट पर रही है. बेगुसराय सीट भूमिहार बहुल सीट मानी जाती है. इस सीट पर 6 लाख भूमिहार वोटर हैं. मुस्लिम वोटर 3.5 लाख और यादव 1.5 लाख हैं. कन्हैया कुमार बीहट गाँव से आते हैं और यह तेघरा विधानसभा क्षेत्र में आता है. इसे पूरब का लेनिनग्राद कहा जाता है. बेगुसराय को भूमिहारों ने ही वामपंथ का गढ़ बनाया. लेकिन लालू यादव के मुख्यमंत्री रहते माले और रणवीर सेना के बीच हुए लगातार संघर्षों के कारण यहां के लोगों का सीपीएम से मोहभंग होता चला गया.
लालू यादव का पैर छूना काम नहीं आया
लालू यादव के पैर छूकर आशीर्वाद लेने वाले कन्हैया को टिकट नहीं मिलना चर्चा का विषय है. इसके पहले ख़बरें आ रही थी कि कन्हैया ही बेगुसराय सीट से महागठबंधन के उम्मीदवार होंगे. ख़ुद कन्हैया भी इस बात को लेकर आश्वस्त दिख रहे थे. लेकिन लेकिन संसद पहुंचने की उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा का पतंग कटता हुआ दिख रहा है. बीजेपी ने गिरिराज सिंह को इस बार बेगुसराय से उम्मीदवार बनाया है. गिरिराज सिंह भूमिहार नेता हैं और उनकी छवि हिंदूवादी नेता की भी है.
चर्चा तो ये भी है कि तेजस्वी यादव के कारण कन्हैया कुमार को टिकट नहीं मिला है. क्योंकि कन्हैया भूमिहार हैं और अच्छे वक्ता भी हैं. भविष्य के राजनीतिक जमीन की संभावनाओं को देखते हुए तेजस्वी यादव ने बिहार में खुद को एक युवा नेता के रूप में स्थापित कर लिया है ऐसे में कन्हैया कुमार को खुद के समानांतर स्थापित होना उन्हें कतई पसंद नहीं आएगा.
बीजेपी और महागठबंधन के मुकाबले में अब अगर कन्हैया कुमार सीपीआई से खड़े भी होते हैं तो इससे बीजेपी को ही फायदा होगा. इस स्थिति में एंटी बीजेपी वोटों का बंटवारा होना तय दिख रहा है. और गिरिराज सिंह की राहें थोड़ी आसान हो गई है.