नयी दिल्ली, तीन अगस्त विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अफगानिस्तान में तालिबान की हिंसा का परोक्ष रूप से हवाला देते हुए मंगलवार को कहा कि बड़े पैमाने पर हिंसा, डराने-धमकाने या छिपे हुए एजेंडे के जरिए 21वीं सदी में वैधता प्राप्त नहीं की जा सकती है।
एक ऑनलाइन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री ने आतंकवाद से निपटने के लिए ‘‘स्पष्ट, समन्वित और एक समान’’ रुख की जरूरत को रेखांकित करते हुए कहा कि इसकी ‘नर्सरी’ संघर्ष प्रभावित क्षेत्र में तैयार होती है। जयशंकर ने कहा कि ढांचागत जड़ता, असमान संसाधन जैसे मुद्दों ने बहुपक्षीय संस्थानों को नुकसान पहुंचाया है, जिसके परिणामस्वरूप कुछ खाई पैदा होती है। उन्होंने कहा, ‘‘इनमें से कुछ अंतराल में आतंकवाद पनपता है। इसकी ‘नर्सरी’ संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में है जो दुर्भावनापूर्ण मंसूबे वाली ताकतों द्वारा कट्टरवाद को प्रश्रय देने से और फलती फूलती है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘आज अफगानिस्तान में हम संक्रमण काल देख रहे हैं और इस जंग ने फिर से उसके लोगों के लिए चुनौतियां पैदा कर दी है। अगर इसे ऐसे ही छोड़ दिया जाए तो ना केवल अफगानिस्तान में बल्कि उससे बाहर भी इसके गंभीर असर होंगे।’’ जयशंकर ने कहा कि सभी पक्षों को इन चुनौतियों से निपटने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘21 वीं सदी में बड़े पैमाने पर हिंसा, डराने-धमकाने या छिपे हुए एजेंडा के जरिए वैधता प्राप्त नहीं की जा सकती है। प्रतिनिधित्व, समावेश, शांति और स्थिरता का अटूट संबंध है।’’
अमेरिकी सैनिकों की वापसी शुरू होने के बाद से अफगानिस्तान में तालिबान की हिंसा बढ़ गयी है। भारत अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता में बड़ा हितधारक है। देश में सहायता और अन्य कार्यक्रमों में भारत तीन अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश कर चुका है। भारत एक राष्ट्रीय शांति और सुलह प्रक्रिया का समर्थन करता रहा है जो अफगान-नेतृत्व वाली, अफगान-स्वामित्व वाली और अफगान-नियंत्रित हो।
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